संसद की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे सांसदों को सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है। सोमवार को कुल 33 विपक्षी सांसदों को लोकसभा से निलंबित किया गया है, राज्यसभा से सस्पेंड किए गए सांसदों की संख्या 45 है। निलंबन के मामले में अब तक सस्पेंड किए गए सांसदों की यह संख्या ऐतिहासिक तौर पर सबसे ज्यादा है। यह तादाद 1989 के राजीव गांधी के दौर से भी ज्यादा है, जब एक दिन में 63 सांसदों को बाहर जाने के लिए कहा गया था।
इतनी बड़ी तादाद में सांसदों को बाहर किए जाने के अहम कारण क्या हैं? पहले ऐसा क्यों हुआ था? और किस नियम के तहत सांसद सदन से बाहर किए जाते हैं। ऐसे सवालों के जवाब यहां हैं…
सांसदों को इतनी बड़ी तादाद में बाहर किए जाने का मामला ऐसा नहीं है कि आज पहली बार सामने आया है। 1989 में भी ऐसा हो चुका है। जब राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे और 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। उस वक्त भी सदन में ठीक ऐसे ही आंकड़े के साथ राजीव सरकार सत्ता में थी और कांग्रेस के पास 400 से ज्यादा सांसद थे। सवाल यह है कि उस वक्त हुआ क्या था?— बात 15 मार्च, 1989 को पीएम इंदिरा गांधी हत्या पर जस्टिस ठक्कर जांच आयोग (जस्टिस एम.पी. ठक्कर के अधीन एक जांच आयोग) के पटल पर रखे जाने को लेकर हुए हंगामे से जुड़ी थी। जब हंगामा काफी बढ़ गया तो 63 सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया। हालांकि आज में और तब में फर्क यह है कि इस बार निलंबन पूरे सत्र के लिए है जबकि तब सिर्फ हफ्ते के बचे हुए दिनों के लिए सांसद निलंबित किए गए थे।
सदन के प्रोसेस से जुड़े नियम संख्या 373 में कहा गया है कि आगर लोकसभा स्पीकर की राय है कि किसी सदस्य का व्यवहार बहुत ज्यादा अव्यवस्थित है, तो वह उस सदस्य को तुरंत बाहर जाने का आदेश दे सकते हैं। अगर सदन में सांसद उस लाइन को क्रॉस कर देते हैं जिसे नियमों के तहत बनाया गया है, वे वेल में आ जाते हैं, हंगामा करते हैं, नियमों का दुरुपयोग करते हैं और जानबूझकर नारे लगाते हैं, स्पीकर की बातों को सरासर नकार देते हैं तो स्पीकर के पास यह पावर होती है कि वह उस सदस्य या ऐसे कई सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। स्पीकर को यह पावर नियम संख्या 374ए के तहत मिलती है। ठीक ऐसा ही राज्यसभा में नियम संख्या 255 के तहत सभापति कर सकते हैं।