Justice Rohinton Nariman On Collegium System: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने जजों की नियुक्ति के लिए रिटायर जजों का एक कॉलेजियम बनाने का सुझाव दिया। नरीमन ने प्रस्ताव दिया कि इन जजों का चयन हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं द्वारा किया जाए।
जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने चुटकी लेते हुए कहा कि मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली “सबसे खराब प्रणाली है लेकिन इससे बेहतर कुछ भी नहीं है। मैं केवल सुझाव दूंगा, और यह निकट भविष्य के लिए नहीं है, यह दूर के भविष्य के लिए है, कि आपके पास सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का कॉलेजियम है, लेकिन अब उन रिटायर जजों का चयन कौन करेगा?’
जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने यह भी कहा कि राज्यसभा द्वारा पारित मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डालता है।
उन्होंने कहा कि हमें अब यह देखना होगा कि यह विधेयक कैसे अधिनियम बनता है और मुझे यकीन है कि इसे चुनौती दी जाएगी। मेरे अनुसार, इसे मनमाना कानून मानकर रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह चुनाव आयोग के कामकाज की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डालता है।
कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नहीं है। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक पैनल जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश (दूसरी बार भेजने पर) मानना सरकार के लिए जरूरी होता है।
कॉलेजियम बहुत पुराना सिस्टम नहीं है और इसके अस्तित्व में आने के लिए सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले जिम्मेदार हैं, जिन्हें ‘जजेस केस’ के नाम से जाना जाता है।
पहला केस 1981 का है, जिसे एसपी गुप्ता केस नाम से भी जाना जाता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए चीफ़ जस्टिस के पास एकाधिकार नहीं होना चाहिए और इस बात की ओर इशारा किया गया कि इसमें सरकार की भी भूमिका होनी चाहिए। 1993 में दूसरे केस में नौ जजों की एक बेंच ने कहा कि जजों की नियुक्तियों में चीफ जस्टिस की राय को बाकी लोगों की राय के ऊपर तरजीह दी जाए। इसके बाद 1998 में तीसरे केस में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम का आकार बड़ा करते हुए इसे पांच जजों का एक समूह बना दिया।