Surrogacy Case: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ‘कोई भी नहीं चाहता कि भारत कोख किराये पर देने की इंडस्ट्री बन जाए’। कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी की प्रक्रिया को विनियमित करने वाले कानून का उद्देश्य सरोगेसी के शोषण पर अंकुश लगाना है।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनी पुष्करणा की खंडपीठ ने कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के एक जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। जिसमें सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम में संशोधन करके दाता सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र द्वारा जारी 14 मार्च की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने सरोगेसी विनियमन अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों के बयान की ओर इशारा किया और कहा, ‘यह एक लाभकारी अधिनियम है और इसका मुख्य उद्देश्य सरोगेसी के शोषण पर अंकुश लगाना है। भारत अभी भी एक विकासशील देश है। आर्थिक कारणों से कई लोग इसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं। माना जाता है कि सीआईआई (भारतीय उद्योग परिसंघ) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि एक समय में भारत में सरोगेसी उद्योग लगभग 2.3 बिलियन डॉलर का था। इस ‘प्रजनन आउटसोर्सिंग’ पर कानून द्वारा अंकुश लगाया जाना चाहिए था।’
जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कपल भारतीय नागरिक हैं, तो पीठ ने कहा, “लेकिन वे कनाडा में रह रहे हैं। यदि वे वहां रह रहे हैं तो उपलब्ध सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। हर कोई भारत आ रहा है, क्योंकि यहां आर्थिक असमानता है कि लोग कोख किराए पर ले सकते हैं। कोई नहीं चाहता कि यह देश कोख किराये पर देने की इंडस्ट्री बन जाए। यह कोई ऐसी इंडस्ट्री नहीं है, जिसे आप बढ़ावा देना चाहते हैं। सुप्रीम के आदेश पर विधायिका ने इस पर फैसला लिया है।’
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं जिन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार कानूनी रूप से शादी की है और भारत के स्थायी निवासी हैं। उन्होंने कहा कि वे निःसंतान दंपत्ति हैं और उनकी एक चिकित्सीय स्थिति है, जिसके कारण गर्भकालीन सरोगेसी की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से वे माता-पिता बनना चाहते थे।
याचिका में कहा गया है कि दंपति ने अंडाणु दान के साथ सरोगेसी का अनुरोध किया था, जहां भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाना था। भ्रूण डोनर ओसाइट्स और पति के शुक्राणु से बनाया जाना था।
इसमें कहा गया है कि दंपत्ति को दिसंबर 2022 में एक दाता अंडाणु के साथ सरोगेसी के लिए चिकित्सा संकेत का प्रमाण पत्र दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि वे बांझपन के उन्नत उपचार के रूप में सरोगेसी प्रक्रिया से गुजर सकते हैं। हालांकि, 14 मार्च, 2023 को केंद्र ने सरोगेसी नियमों में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की और डोनर सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया।
अधिकारियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिसूचना के अंतर्गत नहीं आते हैं, और जोड़े के मामले में, “सरोगेसी की केवल सलाह दी जाती है” जबकि “कोई सरोगेसी प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई है”।
इसके बाद हाई कोर्ट ने कहा कि वह समयपूर्व याचिका पर विचार नहीं करेगा। कुछ दलीलों के बाद, याचिकाकर्ता के वकील ने जरूरत पड़ने पर नए सिरे से याचिका दायर करने की छूट के साथ याचिका वापस ले ली, उच्च न्यायालय ने कहा कि सभी पक्षों के अधिकार और तर्क खुले हैं।
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं के पास गोद लेने जैसे विकल्प उपलब्ध थे, जिन्हें “प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है”। इसके बाद पीठ ने कहा, ”यहां कोई भी बच्चों को गोद नहीं ले रहा है। कृपया इन बच्चों की दुर्दशा देखें। अगर कुछ अच्छे जोड़े उन्हें अपनाने को तैयार हों तो उनका जीवन बदल जाएगा। कानून ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है, इस अधिनियम के पीछे कुछ मंशा है और इसे मनमाना, तर्कहीन या संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।