कविता जोशी
हिंद-प्रशांत महासागर के इलाके में चीन और पाकिस्तान से मिल रही साझा चुनौती का मुकाबला करने के लिए नौसेना पूरी तरह से कमर कस चुकी है। इसमें एक ओर आइएनएस विक्रमादित्य अपने तमाम जंगी अस्त्र-शस्त्र के साथ मोर्चा संभाले हुए है। वहीं अब भारत का पहला स्वदेश में निर्मित विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रांत भी तेजी से समुद्री तैनाती की ओर कदम बढ़ा रहा है। इसे फिलहाल नौसेना की तरफ से अंतिम परिचालन मंजूरी (एफओसी) मिलने का इंतजार है।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि पहले नौसेना की योजना विक्रांत को नवंबर 2023 तक अंतिम परिचालन मंजूरी (एफओसी) लेकर समुद्र में तैनात करने की थी। लेकिन अब इसमें पांच महीने का समय और लग सकता है। इसे देखते हुए विक्रांत की नौसेना के जंगी बेड़े में एफओसी के साथ अगले वर्ष अप्रैल 2024 तक ही समुद्री तैनाती संभव हो पाएगी।
सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल सितंबर महीने में कोच्चि में विक्रांत को राष्ट्र को समर्पित किया था। इसके तुरंत बाद इसे समुद्री परिचालन के लिए शुरुआती परिचालन मंजूरी (आइओसी) मिल गई थी। लेकिन समुद्री तैनाती से पहले एफओसी अत्यंत आवश्यक है। इसे लेकर नौसेना की कोशिशें जारी हैं। हालांकि इनके बीच नौसेना विक्रांत की तैनाती में लगने वाले पांच महीने के अतिरिक्त समय को देरी नहीं मानती।
उसका कहना है, बाकी देशों की नौसेनाओं से तुलना करते हुए देखें तो विमानवाहक युद्धपोत जैसे विशालकाय और बेहद महत्त्वपूर्ण रक्षा हथियार प्रणाली की पूर्ण समुद्री तैनाती से पहले समय लगता है। ब्रिटेन, अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के उदाहरण इस मामले में भारत के सामने हैं। इनमें से कुछ देशों के विमानवाहक युद्धपोत नौसेना के बेड़े में कमीशन होने के चार साल बाद पूरी तरह से समुद्री परिचालन के साथ तैनात किए गए थे। इसके मुकाबले विक्रांत की तैनाती की प्रक्रिया काफी तेज गति से चल रही है।
जानकारों के मुताबिक, भारत को हिंद-प्रशांत के इलाके में दुश्मन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए तीन विमानवाहक युद्धपोतों की आवश्यकता है। वर्तमान में उसके पास रूस में निर्मित आइएनएस विक्रमादित्य ही पूरी तरह से समुद्री तैनाती पर है। आइएनएस विक्रांत की तैनाती में अभी कुछ वक्त और लगेगा। इसके अलावा नौसेना को सरकार से देश के दूसरे स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत आइएसी-2 के निर्माण की मंजूरी मिलने का इंतजार है। इसे लेकर रक्षा मंत्रालय में नौसेना का एक प्रस्ताव विचाराधीन है।
20 हजार करोड़ रुपए की लागत से निर्मित विक्रांत का कुल वजन 45 हजार टन है। इसकी लंबाई 262 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर है। चार गैस टरबाइन इंजन लगे हैं, जिनसे इसे 88 मेगावाट की क्षमता मिलेगी। आकार में इसमें कुल 15 मंजिलें, 600 से ज्यादा कक्ष हैं। इनमें 1700 नौसैनिक रह सकते हैं। महिला अधिकारियों के लिए विशेष कक्ष बनाए गए हैं। विक्रांत समुद्र में एक चलते फिरते एयरफील्ड के समान है।
इसके फ्लाइट डेक पर कुल 30 लड़ाकू विमान, हेलिकाप्टर (मिग-29के, कामोव-31 हेलिकाप्टर, एमएच-60आर मल्टी रोल हेलिकाप्टर) को एक साथ तैनात किया जा सकता है। समुद्र में इसकी अधिकतम गति 28 नाटिकल माइल्स यानी 56 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। विक्रांत को बराक और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों से लैस किया गया है।
विक्रांत में कुल 2 हजार 400 किलोमीटर की केबल लगी है। निर्माण पर चार एफिल टावर के बराबर लोहे का इस्तेमाल किया गया है। आठ पावर जनरेटर, चिकित्सकीय सुविधा के लिए 15 बेड का एक आधुनिक अस्पताल, दो आपरेशन थिएटर,आधुनिक किचन है। इसका फ्लाइट डेक फुटबाल के दो मैदानों जितना है। विक्रांत में डैमेज कंट्रोल सिस्टम व आधुनिक कमांड-कंट्रोल सेंटर भी मौजूद है।
युद्धपोत में 76 फीसद स्वदेशी सामग्री लगाई गई है।बाकी देशों की स्थिति सबसे ज्यादा 11 विमानवाहक युद्धपोत अमेरिका के पास हैं, जबकि ब्रिटेन के पास दो, चीन के पास दो, जापान के पास दो, इटली के पास दो, रूस के पास एक, फ्रांस के पास एक, ब्राजील के पास एक और स्पेन के पास एक विमानवाहक युद्धपोत है।