3 दिसंबर को घोषित हुए राजस्थान चुनाव के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित जीत मिली। पार्टी ने राज्य की 200 में से 115 सीटों पर कब्जा जमाया। राजस्थान में जीत के बाद अब भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री चुनना है। बीजेपी चुनावी नतीजों के एक हफ्ते बाद भी मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं कर सकी है। पार्टी को डर है कि मुख्यमंत्री पद के ऐलान के बाद पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह बढ़ जाएगी और इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।
बीजेपी ने तीन वरिष्ठ नेताओं को पर्यवेक्षक बनाकर राजस्थान भेजा है। बीजेपी ने राजस्थान के लिए केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, सांसद सरोज पांडे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को पर्यवेक्षक बनाया है। भाजपा के अपने राजनीतिक समीकरण को संतुलित करने के लिए और तीन प्रमुख समुदायों तक पहुंचने के लिए राजस्थान में दो डिप्टी के साथ एक मुख्यमंत्री के फार्मूले को फॉलो करने की संभावना है।
पार्टी सूत्रों ने कहा कि वे शीर्ष तीन पदों के लिए राजपूत, ब्राह्मण, मीना और जाट समुदायों के विधायकों पर विचार कर रहे हैं। स्पीकर पद के लिए एससी (दलित) महिला विधायक को सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा माना जा रहा है। वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि ऐसी चर्चाएं चल रही हैं और केंद्रीय नेताओं की मंजूरी का इंतजार है।
एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “पार्टी को पता है कि प्रमुख जातियां और समुदाय शीर्ष पद के लिए अपने उम्मीदवारों को खड़ा कर रहे हैं। यह उनके पास सोशल इंजीनियरिंग के हिस्से के रूप में प्रमुख समुदायों को टारगेट करने के लिए कम से कम दो प्रतिनिधियों का एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है। एक बार जब मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार फाइनल हो जाता है और राज्य इकाई को सूचित कर दिया जाता है तो वे दो डिप्टी सीएम की तलाश करेंगे।”
पार्टी पर जाति-आधारित नेताओं का भी दबाव है जो सक्रिय रूप से शीर्ष पद के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम आगे बढ़ा रहे हैं। एक्स पर हैशटैग चलाकर सोशल मीडिया पर ध्यान आकर्षित करना भी एक पसंदीदा तरीका है। राज्य के नेताओं ने केंद्रीय नेताओं से बातचीत की है कि प्रमुख जातियों और समुदायों के साथ संतुलन की आवश्यकता है क्योंकि उनमें से कुछ ने इसे गर्व का विषय बना लिया है।
सूत्रों के मुताबिक, “पार्टी की नजर लगातार तीसरी बार सभी 25 लोकसभा सीटों पर है। राज्य में लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी हैं और आदर्श आचार संहिता लागू होने में 100 दिन से भी कम समय बचा है। ऐसे में बीजेपी जोखिम लेना नहीं चाहती, खासतौर पर तब जब 2023 के चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच 2.16% वोटों का अंतर है।”
पार्टी के एक सूत्र ने कहा, “2018 के पिछले चुनावों में दोनों पार्टियों के बीच 0.5% का अंतर था, बावजूद इसके कि बीजेपी ने 2019 के चुनावों में लगातार दूसरी बार सभी 25 सीटें जीतीं। पार्टी मौजूदा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है क्योंकि सात में से तीन सांसदों ने विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए।”