बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। कहा जाता है कि भारत युवाओं का देश है। आज इन्हीं युवाओं के हाथ खाली हैं। उनको रोजगार नहीं मिल पा रहा। एक अनुमान के अनुसार देश में हर नौ व्यक्तियों में से एक, बेरोजगारी की मार झेल रहा है। ‘सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनोमी’ (सीएमआइई) के बेरोजगारी संबंधी आंकड़ों के अनुसार मार्च 2023 में भारत में बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ी।
बेरोजगारी दर दिसंबर 2022 में बढ़ कर 8.30 फीसद हो गई थी, लेकिन जनवरी 2023 में घट कर 7.14 फीसद हो गई। फरवरी 2023 में फिर से बढ़ कर 7.45 फीसद तक पहुंच गई। मार्च 2023 के नए आंकड़ों के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर 7.8 फीसद के उच्च स्तर पर है।
देश में उपलब्ध रोजगार के अवसरों को गुणवत्तापूर्ण रोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। भारत सहित दुनिया भर में कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है। कई बड़ी कंपनियां लोगों को नौकरी से निकाल चुकी हैं और यह सिलसिला अभी रुका नहीं है। सीएमआइई के आंकड़ों के अनुसार मार्च में भारत के शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 8.4 फीसद तक पहुंच गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 7.5 फीसद है।
सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में निरंतर कमी आ रही है। केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों में बड़ी संख्या में पद रिक्त हैं। जो जरूरी पद भरे भी जा रहे हैं वे संविदा आधार पर हैं, जिनमें न तो स्थायित्व है न ही पर्याप्त वेतन तथा सुविधाएं, और न ही सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभ।
निजी क्षेत्र में उपलब्ध अधिकांश रोजागारों में न वेतन भत्तों के संबंध में उपयुक्त प्रावधान है और न ही सामाजिक सुरक्षा और कल्याण योजनाएं हैं। सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन या तो है ही नहीं या नई पेंशन योजना है, जिसमें कर्मचारियों और मालिकों के अंशदान से बने एक कोष में निवेशित राशि के आधार जमा राशि के अनुसार पेंशन देने की व्यवस्था है, जिसमें नाममात्र की राशि पेंशन के रूप में मिलती है। देश के असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए तो गुणवत्तापूर्ण रोजगार दिवास्वप्न ही है।
गुणवतापूर्ण रोजगार का अर्थ है कि जहां व्यक्ति और उसके परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त भुगतान की व्यवस्था हो। व्यक्ति के कामकाजी जीवन और घरेलू जीवन के बीच संतुलन बनाने हेतु कार्य के घंटों का निर्धारण इस प्रकार हो कि वह अपने रोजगार और पारिवारिक जीवन में पर्याप्त संतुलन रख सके। काम का वातावरण सकारात्मक हो, ताकि व्यक्ति बिना तनाव के कार्य कर सके और उसका कौशल विकास हो सके।
सेवानिवृत्ति की दशा में पर्याप्त पेंशन और अन्य लाभ मिलें, जिससे उसको अपना शेष जीवन जीने में कठिनाई का सामना न करना पड़े। मगर कारखाना अधिनियम में श्रम सुधारों के नाम पर अधिकांश कारखानों को श्रमिक कल्याण और सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों के पालन से मुक्त कर दिया गया है। इन प्रावधानों का लाभ उठाते हुए औद्योगिक इकाइयां दो सौ से अधिक व्यक्तियों को नियुक्त करने के बावजूद उनको अपने दस्तावेज में दिखाती ही नहीं हैं।
देश में असंगठित क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में कार्यबल कार्यरत है। उनका देश की अर्थव्यवस्था में पचास फीसद से अधिक का योगदान है और इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों का कुल कार्यबल में हिस्सा अस्सी फीसद है। इसमें अधिकतर वे लोग होते हैं, जो गांवों में परंपरागत कार्य करते हैं। भूमिहीन और छोटे किसान भी इसी श्रेणी में आते हैं।
शहरों में ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं। इनमें अधिकतर ऐसे लोग हैं, जो फसल की बुआई और कटाई के समय अपने गांव चले जाते हैं और बाकी समय शहरों और महानगरों में आजीविका तलाशते हैं।
भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने असंगठित श्रम बल को व्यवसाय, रोजगार की प्रकृति, पीड़ित श्रेणी और सेवा श्रेणी के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया है। इसके अंतर्गत व्यावसायिक श्रेणी में छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, पशुपालक, बीड़ी बनाने वाले श्रमिक, निर्माण और आधारभूत संरचनाओं में कार्यरत श्रमिक, बुनकर आदि आते हैं। विशेष रूप से पीड़ित वर्ग में सफाईकर्मी, सिर पर मैला ढोने वाले लोग आते हैं। सेवा श्रेणी में घरेलू कामगार, महिलाएं, नाई, सब्जी और फल विक्रेता, समाचार-पत्र विक्रेता आदि आते हैं।
असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम है, बल्कि कई बार तो यह जीवन के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। इसके अलावा, अक्सर कृषि और निर्माण क्षेत्र में पूरे वर्ष काम न मिलने की वजह से वार्षिक आय और भी कम हो जाती है। इस क्षेत्र में न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। वैसे भी हमारे देश में न्यूनतम मजदूरी की दरें वैश्विक मानकों की तुलना में बहुत कम हैं।
इस क्षेत्र में रोजगार गारंटी न होने के कारण रोजगार का स्वरूप अस्थायी होता है, जो इस क्षेत्र में लगे कामगारों को हतोत्साहित करता है। अधिकांश असंगठित श्रमिक ऐसे उद्यमों में काम करते हैं, जहां श्रमिक कानून लागू नहीं होते। इसलिए इनकी कार्य दशा भी सुरक्षित नहीं होती और इनके लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे अधिक होते हैं। बाल श्रम, महिलाओं के साथ असमानता और उनका शारीरिक, मानसिक तथा यौन-शोषण की स्थिति बनी रहती है।
कई व्यवसायों में स्वास्थ्य मानकों के अभाव में जान का खतरा बना रहता है। माचिस के कारखानों, कांच उद्योग, हीरा तराशने, कीमती पत्थरों पर पालिश करने, कबाड़ बीनने, पीतल और कांसे के बर्तन बनाने तथा आतिशबाजी बनाने वाले उद्यमों में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक काम करते हैं। वे खतरनाक और विषाक्त रसायनों तथा जहरीले धुएं आदि के संपर्क में आकर श्वास संबंधी बीमारियों का शिकार बन जाते हैं।
केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए पेंशन की व्यवस्था हेतु प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना बनाई। वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में पंद्रह हजार रुपए तक मासिक आय वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए पेंशन योजना शुरू करने का प्रस्ताव था। इस योजना में असंगठित क्षेत्र के कामगार एक छोटी-सी राशि के मासिक अंशदान करके साठ साल की आयु के बाद तीन हजार रुपए की निश्चित मासिक पेंशन प्राप्त कर सकते हैं।
मगर इन सबके बावजूद आज भी असंगठित वर्ग की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों में आजीविका असुरक्षा, बाल श्रम, मातृत्व सुरक्षा, छोटे बच्चों की देखरेख, आवास, पेयजल, सफाई, अवकाश से जुड़े लाभ और न्यूनतम मजदूरी जैसे मामलों में स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती।
आज स्थति यह है कि युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसर निरंतर सिकुड़ते जा रहे हैं। जब युवाओं को अच्छा रोजगार नहीं मिलेगा, तो पर्याप्त आय भी नहीं होगी। आय न होने के कारण बाजार में पैसा नहीं आएगा। खर्च करने के लिए धन नहीं होगा, तो बाजार में मांग भी नहीं होगी। मांग नहीं होगी तो उत्पादन भी नहीं होगा। उत्पादन न होने पर जीडीपी भी नहीं बढ़ेगी। इस कारण आर्थिक विकास की गति भी नहीं बढ़ेगी। यह एक ऐसा चक्र चलता जाएगा, जो देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को प्रभावित करेगा।
इसलिए जरूरत इस बात की है कि देश में रोजगार के अवसर बढ़ें और उनमें पर्याप्त गुणवत्ता हो। विदेशी निवेश को आकर्षित करने, व्यवसाय करने की आसानी, तेज औद्योगीकरण आदि के नाम पर उपलब्ध रोजगार मानवीय दृष्टिकोण वाला न हो, इस बात की छूट नहीं दी जा सकती।