जम्मू-कश्मीर से 2019 में अनुच्छेद 370 और 35A का खात्मा कर दिया गया था। इसके साथ-साथ जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। लेकिन कश्मीर की ही कई पार्टियों ने, कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इतना बड़ा फैसला लेते वक्त कई नियमों का उल्लंघन किया गया, उनकी नजरों में सरकार का ये कदम पूरी तरह असंवैधानिक रहा। अब सरकार की नीयत कितनी सही थी, कितनी गलत, सुप्रीम कोर्ट इसका फैसला करने जा रहा है।
असल में पांच दिसंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी सुनवाई पूरी की है। सुनवाई के दौरान सरकार से लेकर याचिकाकर्ताओं के तर्कों को सुना गया है। अब 11 दिसंबर यानी कि सोमवार को सर्वोच्च अदालत अपना फैसला सुनाने जा रहा है। अगस्त में जब इस मामले में सुनवाई हुई थी, तब याचिकाकर्ताओं ने दो टूक कहा था कि केंद्र ने अपने फायदे के लिए सब कुछ कर दिया, हर नियम की अनदेखी की गई।
आरोप तो ये भी केंद्र पर लगाया गया कि उन्होंने राज्यपाल से कोई परामर्श नहीं किया। उस समय सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, ऐसे में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस पूरे मामले में राज्यपाल को भी अंधेरे में रखा गया। लेकिन इन सभी तर्कों के बीच इस पूरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां कीं, उन्हें समझना जरूरी है।
अगस्त में एक सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने कहा था कि भारत में जम्मू कश्मीर का विलय परिपूर्ण था और भारत में कश्मीर का विलय बिना किसी शर्त के हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विलय परिपूर्ण था लेकिन यह कहना मुश्किल है कि आर्टिकल 370 को कभी निरस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि आर्टिकल 370 के बाद भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में संप्रभुता (Sovereignty) के कुछ तत्व बरकरार रखता है। जम्मू कश्मीर की संप्रभुता पूरी तरह से भारत को सौंप दी गई थी।