मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में एक बार फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी। बीजेपी ने एमपी में 160 से ज्यादा सीटें जीतकर कांग्रेस के सपनों को तोड़ दिया। कांग्रेस के सपनों को चकनाचूर करने के लिए वैसे तो बीजेपी ने रणनीति के तहत मिलकर काम किया लेकिन इसमें कांग्रेस से ही बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी बड़ा योगदान रहा।
5 साल पहले साल 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी में थे। वह पूरे राज्य में जमकर प्रचार कर रहे थे। चुनाव परिणाम से पहले उनकी गिनती कांग्रेस के संभावित सीएम चेहरों में होती थी। राहुल गांधी से उनकी नजदीकी की वजह से यह मानकर चला जा रहा था कि वो ही सीएम बनेंगे। हालांकि चुनाव परिणाम के बाद गांधी परिवार ने पुराने वफादार कमलनाथ पर दांव चला।
इसके बाद साल 2020 में सिंधिया और उनके समर्थकों ने विद्रोह कर दिया और कांग्रेस की सरकार गिर गई। सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा और एमपी में शिवराज एकबार फिर सरकार में आ गए। इस बार बीजेपी ने ज्योदिरादित्य सिंधिया को उनके ही क्षेत्र की जिम्मेदारी दी थी। उनके सामने दो चैलेंज थे, पहला अपने क्षेत्र में बीजेपी की सीटें बढ़ाना और दूसरा अपने सियासी विरोधियों को ठिकाने लगाना।
इस बार बीजेपी ने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए 13 नेताओं को टिकट दिया था। इनमें से हालांकि 7 ही जीतने में सफल हो पाए लेकिन ग्वालियर – चंबल क्षेत्र में बीजेपी के ग्राफ में जबरदस्त इजाफा हुआ। इस क्षेत्र में पिछले चुनाव में बीजेपी को 34 सीटों में से सिर्फ 7 नसीब हुईं थीं लेकिन इस बार उसे 18 पर जीत नसीब हुई। कांग्रेस इस बार यहां 26 से 16 सीटों पर आ गई।
2018 चुनाव के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने सिंधिया को ‘नुकसान’ पहुंचाया था। पिछले चुनाव में दमदार प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस इस बार गिरकर 66 सीटों पर आ गई। कमलनाथ और दिग्विजय दोनों ही एमपी में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे थे। कमलाथ को कांग्रेस के जीतने पर राज्य का मुख्यमंत्री माना जा रहा था। इन दोनों ही नेताओं के लिए पार्टी आलाकमान को इस बुरी हार का जवाब देना आसान न होगा। कहीं न कहीं सिंधिया का यही मकसद था और बीजेपी के साथ आकर वह यह करने में सफल भी रहे।