इसे कहते हैं असली सुखांत! सत्रह दिन लंबा संशय कि सुरंग में फंसे 41 मेहनतकशों की जिंदगियां बचेंगी कि नहीं। हर दिन नई आशा, फिर निराशा। ‘आगर’ मशीन से आशा और फिर उसके ब्लेड का छड़ों में फंसना टूटना और फिर घोर निराशा। क्या पता हमारे भाई अब निकलेंगे कि नहीं, कि तभी ‘रैट माइनर्स’ का साहस, उनका कमाल और 22 घंटे में ‘आगर’ के ‘ब्लेड’ को निकालना। कई मीटर मलबे को खोदना और सुरंग में 17 दिनों तक फंसे मजदूरों के पास तक पहुंचना फिर निकलना और देश विदेश के दर्शकों में एक नए किस्म की खुशी की लहर।
सत्रहों दिन दिन-रात कवर करते चैनलों एंकरों और खबरनवीसों के चेहरे पहली बार चमके। मुख्यमंत्री धामी निकलने वालों को माला पहनाकर उनका स्वागत करते दिखे व जनरल वीके सिंह उनको शाल पहनाते दिखे। सबके चेहरों पर असंभव को संभव कर डालने की अनोखी दीप्ति दिखी। एक नया इतिहास रचा जा चुका था।
चैनलों के लिए भी सभी सुरक्षा अभियानों की सारी कहानी को लाइव बताने का काम काफी चुनौतीपूर्ण रहा। क्षैतिज पाइप डालने में आई बाधा को पार पाने के बाद कई विकल्पों की शुरुआत और अंतत: ‘रैट माइनर्स’ का कमाल। ढाई फुट की परिधि की पाइप में बैठ सब बाधाओं को पार करना।
समन्वय करने और कर्मियों का हौसला बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री धामी व जनरल पीके सिंह ने प्रधानमंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को सहज किंतु आकंठ भाव से श्रेय दिया।
सुरंग से बाहर आए सभी 41 लोगों से प्रधानमंत्री का टेलीफोन पर बात करना, उनके समूह के नेतृत्वकर्ता गब्बर सिंह नेगी की हिम्मत और धैर्य की सराहना करना, उनके परिवार वालों के पुण्यों व बाबा केदारनाथ व बदरीनाथ की कृपा का उल्लेख करना, अपनी चिंता की बात करना कि कहीं कुछ बुरा हो गया होता…और अपने भावुक होने की बात कहना। सब कुछ सहज दिखा। अगले रोज चैनलों में प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा किए जाते संयोजन को और ‘रैट माइनर्स’ को विशेष श्रेय दिया जाता दिखा।
दोपहर तक हम विपक्ष के किसी एक नेता या किसी प्रवक्ता की एक लाइन को तरसते रहे। शाम को चैनलों ने अपनी दैनिक बहसों में विपक्ष के प्रवक्ताओं को बुलाया। कई विपक्षी प्रवक्ता पूछते रहे कि बताइए हिमालय जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में सुरंग बनाने के काम की किसने अनुमति दी? सुरंग बनाने से पहले क्या जरूरी रिसर्च की गई? सुरंग से निकलने के लिए आपात रास्ता क्यों नहीं बनाया गया?
एक पक्षधर कहता रहा कि इजराइल में इतना हो गया, लेकिन किसी विपक्षी ने सरकार की टांग नहीं खींची। यहां विपक्ष टांग खींचने का काम ही जानता है। एक विपक्षी प्रवक्ता कहने लगा कि हम विपक्ष हैं, हमारा काम सवाल करना है? हमारे चैनलों ने सुरंग में से निकालने के प्रयत्नों को पूरे विस्तार से कवर किया, लेकिन कई बार उनके एंकर और खबरनवीस अनजाने ही जल्दबाजी की पत्रकारिता करते दिखे।
एक समय ऐसा आया, जब मंगलवार की दोपहर कई चैनलों के खबरनवीसों ने बताना शुरू किया कि अब किसी भी समय मजदूर बाहर आ सकते हैं। तभी एनडीएमए के जनरल अता हसनैन ने प्रेस कांफ्रेंस कर स्पष्ट किया कि जो कहा जा रहा है कि ‘जल्दी ही सबको सुरंग से निकाल लिया जाएगा’, इसमें ‘जल्दी’ शब्द के उपयोग में ‘जल्दबाजी’ नहीं दिखानी चाहिए। ऐसे कामों में ‘जल्दी’ का मतलब बहुत बातों पर निर्भर करता है, इसलिए हम दुआ करें कि जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाए।
और जब रात के आठ बजे के आसपास पहले ‘रैट माइनर्स’ अपने छोटे- छोटे छैनी हथौड़ों फावड़ों से रास्ता बनाते, मलबा हटाते सुरंग के अंदर पहुचे तो फंसे मजदूरों की खुशी का ठिकाना न रहा। सुरंग के अंदर पहले पहल पहुंचे एक ‘रैट माइनर’ ने एक चैनल को बताया कि जैसे ही हम पहुंचे उन्होंने हमको गले लगा लिया कहने लगे कि आप हमारे लिए भगवान बनकर आए हैं और चाकलेट खाने को दी।
एक बार फिर वही ‘कंट्रास्ट सीन’ दुहरे। एक ओर एंकर बेहद साफ- सुथरे व सुरक्षित अपने स्टूडियों से सवाल करते कि आपने यह सब कैसे किया तो कैमरे पर बात करने के अनभ्यासी ‘रैट माइनर्स’ अपनी सादगी के साथ जवाब देते कि उनमें कुछ करने का जज्बा था। वे अपने मजदूर भाइयों के लिए कुछ भी कर सकते थे। फिर एक ने कहा कि हम ‘रैट माइनर्स’ की हालत खराब ही रहती है।
हमें अब बहुत काम नहीं मिलता। काम मिलता है तो पैसे नहीं मिलते। हम यही चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए भी कुछ करे। ‘सुरंग वीर’ जो 17 दिन तक जिंदगी मौत के बीच झूलते रहे, लेकिन निकलने की आशा न छोड़ी और हिम्मती ‘रैट माइनर्स’ जो उनको बचाने के आखिर के कठिनतम दौर में कामयाब हुए! ऐसे सुरंग वीरों को कोटि कोटि नमन!