जब मैं इस स्तंभ को लिखने के लिए बैठ रहा हूं, तो यह गुरुवार, 30 नवंबर है, तेलंगाना में मतदान का दिन, जो नई राज्य विधानसभा का चुनाव करने वाले पांच राज्यों में से आखिरी है। आप इसे रविवार तीन दिसंबर को सभी राज्यों में मतगणना के दिन पढ़ेंगे। यह अवधि सभी के लिए आशा के दिन और एक को छोड़कर सभी के लिए निराशा के दिन के बीच की है!
पांचों राज्यों में कांग्रेस के लिए काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। भाजपा केवल तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुकाबले में है, जहां उसकी सीधी टक्कर कांग्रेस से है। भारत में इसकी किस्मत तेजी से खराब हुई है। तेलंगाना में बीआरएस (निवर्तमान पार्टी) और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। मिजोरम में, दो क्षेत्रीय दल – एमएनएफ (वर्तमान) और जेडपीएम प्रमुख खिलाड़ी हैं। पिछले नतीजों को देखते हुए, कांग्रेस तीसरे स्थान पर है। यहां भाजपा एक बहुरूपिया है।
महंगाई और बेरोजगारी की लंबी छाया चुनावों पर पड़ी है। मोदी ने दोनों से परहेज किया, लेकिन कांग्रेस ने दोनों ही विषयों को लेकर कड़ा प्रहार किया। कर्नाटक में आजमाए गए सफल माडल के बाद कांग्रेस की गारंटी शक्तिशाली हथियार बन गए थे। जाति सर्वेक्षण के वादे ने बिल्ली के गले में घंटी बांध दी। मोदी का एकमात्र मुद्दा भ्रष्टाचार था। जबकि राज्य चुनावों के परिणाम महत्त्वपूर्ण हैं, हम राष्ट्रीय चुनाव के अग्रदूत के रूप में परिणामों की अधिक व्याख्या नहीं कर सकते हैं। वर्ष 2018 और 2019 के सबक हर किसी के दिमाग में ताजा हैं।
छत्तीसगढ़ में हर किसी को लगता है कि यह सबसे आसान चुनाव है। मिजोरम के साथ यहां पहले चरण में सात नवंबर को मतदान हुआ था। भाजपा ने लगातार तीन बार (2003-2018) राज्य में शासन किया था। वर्ष 2017-18 के आखिर में, छत्तीसगढ़ भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक था : 39 फीसद आबादी गरीबी में रह रही थी। कांग्रेस को 2018 में सत्ता मिली।
कृषि को दी गई प्राथमिकता ने राज्य को ‘भारत का चावल का कटोरा’ बना दिया है। प्रति व्यक्ति आय 88,793 रुपए (2018) से बढ़कर 133,897 रुपए (2023) हो गई है। पांच वर्षों में लगभग 40 लाख लोग गरीबी से बाहर आए हैं। भाजपा बिना किसी नेता के चेहरे के चुनाव में उतरी थी। हर जगह मोदी थे। समृद्धि में वृद्धि का निर्णायक असर होगा। कांग्रेस विजेता बनेगी।
मध्य प्रदेश में बदलाव होना है। मौजूदा भाजपा सरकार (शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में) को व्यापक रूप से दलबदल कराने वाली सरकार माना जाता है। यह मार्च 2020 में सत्ता में आई थी। लोग यह भी जानते हैं कि भाजपा का नेतृत्व अब चौहान पर भरोसा नहीं करता और उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगा। भाजपा ने कई केंद्रीय मंत्रियों और मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारा है और सत्ता के खिलाफ असंतोष को कम करने की कोशिश की है।
वहां शिवराज सिंह चौहान का 14 साल का कार्यकाल बनाम लाडली बहना योजना की स्थिति है। कभी हार न मानने वाले कमलनाथ से उम्मीद की जा रही है कि वह कांग्रेस को जीत की ओर आधी दूरी तक तो खींच ही लेंगे। दोनों पक्ष जीत का दावा कर रहे हैं और इसका सेहरा मजबूत संगठन और बेहतर बूथ प्रबंधन कौशल वाली पार्टी से सिर सज सकता है।
राजस्थान एक पहेली है। वर्ष 1993 में 10 वें आम चुनाव के बाद से राज्य में भाजपा और कांग्रेस की सरकारें अदल-बदल कर आती रही हैं। परंपरा के लिहाज से कहा जा रहा है कि सरकार फिर से बदल जाएगी। हालांकि, अशोक गहलोत आश्वस्त हैं और ‘निर्दलीयों’ पर भरोसा कर सकते हैं। विडंबना यह है कि भाजपा (बिना किसी स्थानीय चेहरे के, यह हर जगह मोदी की चिरपरिचित कहानी है) भी ‘निर्दलीयों’ पर भरोसा करती दिख रही है।
निर्दलीय कोई और नहीं बल्कि वे उम्मीदवार हैं, जिन्हें दोनों पार्टियों ने टिकट देने से इनकार कर दिया था। माना जा रहा है कि वे दोनों दलों के ‘गुप्त हथियार’ हैं। कोई भी पार्टी अपने दम पर आधा के आंकड़े को पार नहीं कर सकती है। तीन दिसंबर के बाद कौन किसकी मदद करेगा, यह जयपुर में सबसे गर्म मुद्दा बना हुआ है। चुनाव के बाद का नाटक, चुनावी दौड़ की तुलना में अधिक दिलचस्प होने वाला है।
तेलंगाना की अपनी तरह की अलग श्रेणी है। तेलंगाना के लिए संघर्ष करने वाले पुराने योद्धा चंद्रशेखर राव को अब ‘फार्महाउस मुख्यमंत्री’ कहा जाता है। सरकार एक परिवार द्वारा चलाई जा रही है; यह बीआरएस की ताकत और कमजोरी दोनों है। निर्भीक नेता माने जाने वाले रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उल्लेखनीय बढ़त हासिल की है और बीआरएस को पुरजोर चुनौती दे रही है।
पर्यवेक्षकों ने ग्रामीण तेलंगाना में सरकार के खिलाफ लहर की आशंका जताई है। भाजपा के प्रचार अभियान में दम नहीं था, लेकिन कुछ सीटों पर उसकी संभावना है। अगर बीआरएस को बढ़त मिलती है, तो यह मामूली मंतर से होगा। बीआरएस को उम्मीद है कि एआइएमआइएम (6-7 सीटें) और भाजपा (6 सीटों तक) इसकी मदद करेंगी। अगर कांग्रेस बीआरएस को हराती है, तो यह ग्रामीण और युवा वोटों के कारण होगा। हम चौंकाने वाले नतीजे की उम्मीद कर सकते हैं।
मिजोरम के चुनाव में एक मुद्दा छाया रहा – मणिपुर के कुकी प्रवासी – और एमएनएफ और जेडपीएम दोनों ने जोमोस और कुकी के बीच भाईचारे के बंधन को भुनाया। लोगों के गुस्से को भांपते हुए मोदी ने मिजोरम का अपना प्रचार दौरा रद्द कर दिया। (उन्होंने 3 मई, 2023 को हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर का दौरा नहीं किया है)। वहां एमएनएफ और जेडपीएम के बीच की लड़ाई है। जो भी जीतेगा, उससे उम्मीद की जाती है कि वह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करेगा।
पांच राज्यों के चुनाव इस सवाल पर निर्णायक होंगे कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए प्रमुख चुनौती कौन होगा। यह उन मुद्दों को भी सामने लाएगा जो लोगों के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय हैं।