चाहती तो थी इस सप्ताह उत्तरकाशी के उस सुरंग में हुए चमत्कार के बारे में लिखना। वास्तव में चमत्कार था कि 41 मजदूर इतने दिन पहाड़ के नीचे दबे रहने के बाद सही-सलामत निकाले गए। लेकिन जिस दिन चुनावों के नतीजे आते हैं किसी और विषय पर लिखना बेकार है। जाहिर है कि इस लेख को नतीजों से पहले लिखने को मजबूर थी मैं तो नतीजों के विश्लेषण की उम्मीद ना रखें। वैसे भी मेरी राय में नतीजों से ज्यादा दिलचस्प है उन वादों का विश्लेषण करना जो देश के आला राजनेताओं ने किए थे इस बार भी अपनी आम सभाओं में चुनाव प्रचार के दौरान।
इन चुनावों में ऐसे वादे किए गए हैं जो तकरीबन रिश्वत के बराबर हैं। राहुल गांधी ने तेलंगाना में कहा कि ‘हमने आपको तेलंगाना देने का वादा किया था जो हमने पूरा किया और अब छह वादे और कर रहे हैं, जिनको भी हम पूरा करके दिखाएंगे’। राहुल गांधी ने कहा, कांग्रेस की सरकार बनाओ और हम रोज मुख्यमंत्री के दफ्तर में प्रजा दरबार करवाएंगे।
हर महिला विद्यार्थी को इलेक्ट्रिक स्कूटर मिलेगा, सब विद्यार्थियों के लिए इंटरनेट मुफ्त में मिलेगा, चार आइआइटी बनेंगे। उनकी बहन ने अपनी आम सभाओं में याद दिलाया कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस किस्म के किए गए सारे वादे पूरे किए गए हैं। तेलंगाना में प्रचार के आखिरी दिन ‘सोनिया अम्मा’ ने अपना एक वीडियो डाला सोशल मीडिया पर, जिसमें उन्होंने ‘हाथ जोड़’ कर महिलाओं से उनका वोट मांगा।
ऐसा नहीं है कि ‘रेवड़ियां’ बांटने में भारतीय जनता पार्टी पीछे रही है बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री ने रेवड़ियां बांटने के खिलाफ आवाज उठाई थी। भाजपा के प्रवक्ताओं से जब टीवी की चर्चाओं में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनके चुनावी वादे आम जनता के कल्याण के लिए होते हैं सो उनको रेवड़ियों की श्रेणी में नहीं गिनना चाहिए। सच तो यह है कि मतदाताओं को गलत आदत डालने का काम कर रहे हैं देश के सारे आला नेता, यानी मुफ्तखोरी की आदत।
हाल में बंगलुरु गई थी मैं और वहां जब कांग्रेस सरकार के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि अच्छा काम कर रही सरकार। जब पूछा कैसे, तो जवाब मिला कि महिलाओं को अब हर महीने पैसे मिल रहे हैं और बसों में वो बिना टिकट के सवारी कर सकती हैं। जब पूछा मैंने कि भ्रष्टाचार कम हुआ है क्या? तो मालूम हुआ कि बिल्कुल कम नहीं हुआ है लेकिन लोग खुश हैं मुफ्त में मिलने वाली चीजों से। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए छह महीने पहले महिलाओं को हर महीने 1200 रुपए देना शुरू कर दिया था। लेकिन ऐसे गांव अभी भी हैं आदिवासी क्षेत्र में जहां न तो बिजली आई है, न ही पानी। ऐसा हाल मैंने देखा है राजस्थान के भी कई दूरदराज गांवों में।
कहने का मतलब यह है कि गरीबी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए जो औजार दिए जाने चाहिए लोगों को उनके बदले रेवड़ियां बांटी जा रही हैं। जो पैसा निवेश होना चाहिए बिजली, पानी, स्कूल, सड़कों पर, वह मुफ्तखोरी पर खर्च हो रहा है जो देश के लिए नुकसानदेह है। इस गलत प्रथा को रोकेगा कौन जब चुनावों के समय ऐसा एक भी राजनीतिक दल नहीं है जो गलत वादे करने में नहीं लगा हुआ है।
हैरत की बात यह है कि रेवड़ियों की इस दौड़ को चुनाव आयोग क्यों नहीं रोक रहा है। एक जमाना वह था जब चुनावों से पहले शराब और पैसे बांटे जाते थे, जब तक इसे चुनाव आयोग ने आचार संहिता बनाने का काम नहीं किया था। समझ में नहीं आता कि इस आचार संहिता के तहत मुफ्तखोरी क्यों नहीं आती?
इतनी बेशर्मी से ये वादे किए गए हैं इन चुनावों में कि कांग्रेस जब गैस सिलेंडर का दाम घोषित करती है उसके अगले दिन भाजपा के प्रचारक उस दाम को कम करने का वादा करते हैं। सवाल कोई नहीं पूछ रहा कि अगर लोगों को असली राहत देना चाहते हैं राजनेता तो क्यों नहीं सिलेंडर का दाम पहले से ही कम रखा जाता। असली राहत देना चाहते हैं महिलाओं को तो क्यों नहीं उनको रोजगार देने का काम हो रहा है मुफ्त में पैसे देने के बदले। मतदाताओं को रिश्वत देकर जो वोट मांग रहे हैं राजनेता भूल गए हैं कि एक बार ये आदत जब लग जाती है तो उसको तोड़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन
होता है।
किसानों को मुफ्त बिजली-पानी देने की आदत बहुत पहले से डाली गई है और इसका नतीजा ये है कि अब जब उनसे इन सेवाओं के लिए पैसे मांगे जाते हैं तो इसको जुल्म की तरह लेते हैं, गरीबी का वास्ता देते हैं। किसानों को मुफ्त बिजली-पानी देने पर सरकारें इतना पैसा लगाती हैं कि इन सुविधाओं को सही तरीके से उपलब्ध कराने के लिए पैसा नहीं बचता है। नतीजा यह कि आज तक भारत के आम आदमी को पीने का पानी इतना प्रदूषित मिलता है कि अमीर लोग अपने घरों में अक्वागुआर्ड लगाने पर मजबूर हैं। मुंबई और दिल्ली के सबसे पाश रिहाइशी इलाकों में भी नल से पानी पीना खतरनाक है।
विकसित देशों में बिजली और पानी के बिल जरूर भरने पड़ते हैं लेकिन इसका नतीजा ये है कि नलों में पीने लायक पानी आता है और बिजली भरोसेमंद तरीके से आती है। इन चुनावों में जिस किस्म के वादे किए हैं राजनेताओं ने उनको देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले साल लोक सभा चुनावों में भी यही होने वाला है। विकसित भारत का सपना दूर क्षितिज पर भी दिखना बंद हो जाएगा, इसलिए कि विकास पर जो पैसा निवेश होना चाहिए उससे हमारे आला नेता खैरात बांट कर वोट खरीद रहे हैं।