पांच राज्यों- मध्य प्रेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में मतदान के बाद अब पूरा देश यहां के चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहा है। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इन पाचों ही राज्यों में मतदान प्रतिशत काफी अच्छा रहा। किसी भी चुनावी राज्य में जब मतदान ज्यादा होता है तो सभी दलों का गणित डगमगाने लगता है।
आमतौर पर माना जाता है कि बढ़ता वोट प्रतिशत एंटी इनकंबेंसी का इशारा करता है। लेकिन हाल के वर्षों में हुए कुछ चुनावों पर नजर डालें तो मालूम चलता है कि हर बार ऐसा नहीं होता। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग हुई थी और फिर चुनाव नतीजों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला। राज्य के चुनावों में एक गौर करने वाली बात यह भी है कि इनमें लोकसभा चुनावों से ज्यादा मतदान हो रहा है।
बढ़ते मतदान प्रतिशत की सबसे बड़ी वजह चुनाव आयोग और बड़े सियासी दलों द्वारा जागरूकता के लिए किए गए प्रयास हैं। इसके अलावा शहरीकरण और साक्षरता भी इसके पीछे की वजह बताए जाते हैं लेकिन ये दोनों बहस के मुद्दे हैं क्योंकि कई बार शहरी इलाकों में देहात से कम वोटिंग देखी गई है। इसके पीछे कई एक्सपर्ट्स बढ़ती आमदनी और सरकारी योजनाओं पर घटती निर्भरता बताते हैं। इसी समय एक नोटिस करने वाली बात यह भी है कि वोटर टर्न आउट सैचुरेशन पॉइंट (70% के आसपास) पर पहुंचता मालूम पड़ता है। इसमें अगर इजाफा हो भी रहा है तो महज कुछ फीसदी का।
छत्तीसगढ़ में साल 2003 में पहला चुनाव हुआ। तब से यहां वोटिंग प्रतिशत 70% से नीचे नहीं गिरा है। यहां लगातार तीन जीत हासिल करने के बाद BJP को साल 2018 में हार का सामना करना पड़ा। साल 2003 में 77.12% मतदान हुआ था जबकि साल 2018 में 76.45% वोटिंग हुई। एंटी इनकंबेसी वाले लॉजिक के उलट यहां कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया। यहां इस बार भी वोटर टर्न आउट पिछली बार की अपेक्षा मामूली गिरा है। यहां इस बार 76.31% मतदान हुआ।
एमपी में आज तक 15 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1952 से 2018 तक यहां सिर्फ 6 बार ऐसा हुआ है कि मौजूदा सरकार सत्ता में न लौटी हो। इनमें से चार चुनावों में पिछले चुनाव की अपेक्षा वोटिंग में इजाफा हुआ था। जैसे साल 2003 में बीजेपी ने कांग्रेस को हराया था, तब पिछले चुनाव की अपेक्षा वोटिंग में 7% का इजाफा हुआ था। हालांकि आठ मौकों पर राज्य में मौजूदा सरकार की वापसी हुई। इनमें से छह बार मतदान में इजाफा हुआ था। यहं पिछली बार बढ़े हुए मतदान के बाद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी लेकिन कांग्रेस को बहुत मामूली मार्जिन मिला था। इसके बाद 2020 में कांग्रेस पार्टी की सरकार गिर गई। इस बार भी राज्य में पिछली बार की अपेक्षा मतदान प्रतिशत बढ़ा है। पिछले चुनाव में 74.97% वोट डाले गए थे, इस बार 76.22% वोटिंग हुई।
मिजोरम में आज तक 12 चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में चार चुनाव मौजूदा सरकार ने जीते हैं। इनमें से तीन चुनावों में मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। दूसरी तरफ सात चुनावों में मौजूदा सरकार वापसी करने में नाकाम रही, इनमें से चार बार मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर कहें तो राज्य में मतदान प्रतिशत सिर्फ चार बार कम हुआ है।
राजस्थान में साल 1993 के बाद से कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई है। यहां साल 2008 और साल 2018 को छोड़कर हर चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है। इन चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की है। साल 1993 से पहले तीन चुनावों में मौजूदा सरकार रिपीट करने में फेल हुई औऱ इनमें से दो चुनावों में वोटिंग में इजाफा हुआ था। राजस्थान में 1993 से पहले 6 मौकों पर मौजूदा सरकार वापसी करने में सफल रही, इनमें से 5 चुनाव में वोटिंग बढ़ी थी। राज्य में 8 चुनावों में मौजूदा सरकारों को हार का सामनना करना पड़ा। इनमें से चार बार वोटिंग में इजाफा हुआ था। इस बार राजस्थान में वोटिंग में मामूली इजाफा हुआ है। राज्य में इस बार 74.96% मतदान हुआ है जबकि 2018 में 74.06% वोटिंग हुई है।
तेलंगाना में 2023 से पहले दो विधानसभा चुनाव हुए हैं। साल 2014 में 72% वोटिंग हुई थी जबकि 2018 में 73.37% वोटिंग हुई। इन दोनों ही चुनावों में बीआरएस ने न सिर्फ जीत दर्ज की बल्कि उसकी सीटों में भी इजाफा हुआ। बात अगर संयुक्त आंध्र प्रदेश की करें तो वहां सिर्फ चार चुनाव में मौजूदा सरकार को सत्ता से हटना पड़ा है। इनमें से तीन मौकों पर मतदान में इजाफा हुआ था। दूसरी तरफ चार मौकों पर मौजूदा सरकार वोटिंग बढ़ने के बाद सत्ता में लौटने में सफल रही। इस बार तेलंगाना में 70.71% मतदान हुआ है जो पिछले चुनाव से कम है।