उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और समाजवादी पार्टी (SP) अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच विवाद ने लोकसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। एक तरफ बीजेपी का कहना है कि यह मुद्दा संसदीय चुनावों से पहले उसके एजेंडे में नहीं है, हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि आम चुनावों के बाद कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी हो सकती है क्योंकि यह पार्टी कैडर के भावनाओं की प्रतिध्वनि है।
2021 के यूपी विधानसभा चुनावों के समय जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पहले से ही चल रहा था, मौर्य ने यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया था कि मथुरा में मंदिर बीजेपी के एजेंडे में अगला कदम है। इस बार उन्होंने यादव को चुनौती दी है कि वे साफ करें कि क्या वह मथुरा में कृष्ण मंदिर चाहते हैं। हिंदू दक्षिणपंथियों के लिए मथुरा और वाराणसी (जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है) में मंदिर विवाद एक बड़ी वैचारिक परियोजना का हिस्सा हैं, जैसा कि नारे में कहा गया है, “अयोध्या तो बस झांकी है, काशी, मथुरा बाकी है।”
यूपी के डिप्टी सीएम ने 26 नवंबर को एक्स पर पोस्ट किया, अल्पसंख्यकों के वोट की ख़ातिर अपने हिंदुओं का खून बहाने वाली सपा भगवान श्रीकृष्ण के वंशजों का वोट चाहती है, परंतु श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर नहीं चाहती। सपा बहादुर अखिलेश यादव इस मामले में अगर आज़म खान और उनके समाज के दबाव में नहीं हैं तो अपना रुख स्पष्ट करें।”
यह पोस्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मानी जाने वाली मथुरा यात्रा के ठीक बाद आया। यहां उन्होंने कहा था, “मथुरा और ब्रज भी विकास की दौड़ में पीछे नहीं रहेंगे। वह दिन दूर नहीं जब भगवान को ब्रज क्षेत्र में और भी अधिक दिव्यता के साथ देखा जाएगा।”
फैजाबाद संसदीय क्षेत्र, अयोध्या जिसका हिस्सा है, से बीजेपी सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि यह मुद्दा पार्टी के आधिकारिक एजेंडे में नहीं है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पार्टी का रुख यह है कि हमारा ऐसा कोई एजेंडा नहीं है और हमें अभी इस पर जोर नहीं देना चाहिए। लेकिन समाज की मांगें हैं, इसीलिए नेता इसके बारे में बात कर रहे हैं।”
जब 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तो आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत से पूछा गया कि क्या उनका संगठन वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और मथुरा में शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि विवाद को आगे बढ़ाएगा? तब उन्होंने कहा, ”ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण संघ इस आंदोलन (अयोध्या) से एक संगठन के रूप में जुड़ा। यह एक अपवाद है। अब हम फिर से मानव विकास से जुड़ेंगे और यह आंदोलन हमारे लिए चिंता का विषय नहीं रहेगा।”
उत्तर प्रदेश के एक अन्य भाजपा नेता ने कहा, “यह पार्टी की आधिकारिक लाइन नहीं है लेकिन यह कैडर के लोकाचार और भावनाओं से मेल खाती है।” उन्होंने कहा कि एक बार यह मुद्दा सामने आने पर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आ सकता है क्योंकि इसका असर सपा के मूल समर्थन आधार मुस्लिम-यादव पर पड़ सकता है।