रंजना मिश्रा
हालांकि भारत में भी जलवायु संबंधी राष्ट्रीय ढांचे की चर्चा कई वर्ष पहले से हो रही है, लेकिन अभी तक इसको क्रियान्वित नहीं किया जा सका है। इसे एक केंद्रित, समयबद्ध और उच्च प्राथमिकता वाला प्रयास बनाने के लिए, सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकायों और कार्यालयों को इससे जोड़ना जरूरी होगा, तभी इसका सही रूप से क्रियान्वयन संभव हो पाएगा। इससे मौसम के स्वरूप में हो रहे लगातार बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति से न केवल निपटने में, बल्कि उन घटनाओं के प्रति अनुकूलित होने में भी मदद मिलेगी।
हाल के वर्षों में भारत सहित दुनिया भर के देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के मिजाज में बदलाव आ रहा है, जिससे बाढ़, सूखा, चक्रवात और भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। इन आपदाओं से देशों की अर्थव्यवस्थाओं और लोगों के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
इसलिए जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों और अवसरों को समझने और उनसे निपटने के लिए सभी देश प्रयास कर रहे हैं कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध ‘डेटाबेस’ का उपयोग करके इस तरह से सूचनाएं संगृहीत की जा सकें, जिससे भविष्य की घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान संभव हो और उसके आधार पर अलग-अलग संस्थाओं को अनुकूलित करके, भविष्य में जलवायु परिवर्तन से होने वाली घटनाओं से निपटने की व्यवस्था की जा सके। इसीलिए अलग-अलग देशों के स्तर पर राष्ट्रीय ढांचा बनाने की तैयारी चल रही है। भारत भी जलवायु सेवाओं के लिए एक राष्ट्रीय ढांचे की शुरुआत कर रहा है।
जलवायु सेवाओं के लिए वैश्विक ढांचे यानी जीएफसीएस की स्थापना वर्ष 2009 में जिनेवा में तीसरे विश्व जलवायु सम्मेलन के दौरान की गई थी। यह वैश्विक स्तर पर सरकारों और संगठनों को एक साथ लाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय पहल है। वैश्विक ढांचा दुनिया भर की सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों के साथ काम करता है। यह जलवायु सेवाओं के विकास और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक मंच है।
जीएफसीएस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्रोतों से उच्च गुणवत्ता वाला जलवायु आंकड़ा एकत्र करेगा, जिसमें तापमान, वर्षा, हवा, मिट्टी की नमी, समुद्र की स्थिति तथा अन्य मौसम मापदंडों की जानकारी शामिल होगी। इस डेटा के माध्यम से दीर्घावधिक मौसम और जलवायु परिवर्तन संबंधी पूर्वानुमान की पृष्ठभूमि तैयार की जाएगी, उसका एक मानचित्र बनाया जाएगा और प्रारंभिक तौर पर दशकीय आधार पर एक पूरा ढांचा तैयार करके इसे विभिन्न हितधारकों से जोड़ा जाएगा, ताकि दीर्घावधिक रूप से एक बेहतर निर्णय लिया जा सके।
अलग-अलग देशों के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान विभाग और जल विज्ञान सेवाएं अपने-अपने देशों में इसे क्रियान्वित करेंगे। जीएफसीएस का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए लोगों को जलवायु सूचना और सेवाएं प्रदान करना है। इसका प्रमुख लक्ष्य जलवायु सूचना और सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार करना, जलवायु सेवाओं के लिए मांग और आपूर्ति को बढ़ावा देना तथा जलवायु सेवाओं के लिए क्षमता निर्माण करना है।
‘नेशनल फ्रेमवर्क फार क्लाइमेट सर्विसेज’ जलवायु सूचना और सेवाओं के उत्पादन को अलग-अलग स्तर पर सभी हितधारकों को समय पर उपलब्ध कराकर, उन्हें जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से लड़ने और उनके अनुरूप ढलने में सक्षम बनाएगा। इसके लिए एक कार्यशील मंच तैयार करेगा, जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के नेतृत्व में काम करेगा।
यह भारत का पहला राष्ट्रीय स्तर का ढांचा होगा, जो जलवायु सेवाएं और उससे संबंधित जानकारी प्रदान करेगा। यह इस क्षेत्र के हितधारकों यानी इस क्षेत्र से संबंधित शोधकर्ताओं और जलवायु सूचना के उपयोगकर्ताओं को एक साथ इस मंच पर आने और दीर्घकालिक बेहतरी हेतु कार्य करने की सुविधा प्रदान करता है।
दरअसल, किसी क्षेत्र विशेष में जलवायु की क्या स्थिति है, उसमें क्या परिवर्तन आ रहा है, पिछले सौ सालों में क्या परिवर्तन आया है और आगे किस तरह के परिणाम देखे जा सकते हैं, इससे संबंधित अगर एक उच्च गुणवत्ता का डेटा प्राप्त होगा, तो उसके आधार पर आगे निर्णय लेने में आसानी होगी। इस डेटा के माध्यम से आकलन, दीर्घकालिक अनुमान तथा एक परिदृश्य बनाया जा सकता है कि भविष्य में यहां पर क्या परिवर्तन हो सकता है।
जलवायु सेवाओं के लिए राष्ट्रीय ढांचे के विभिन्न घटक हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाओं का अवलोकन करना, उनकी लगातार निगरानी, अनुसंधान, कंप्यूटर माडलिंग तैयार करना और जलवायु परिवर्तन से संबंधित भविष्यवाणी करना। इसके आधार पर एक पूरा मंच तैयार होगा, जो जलवायु सेवा सूचना प्रणाली से संबंधित होगा।
जलवायु प्रभावित होने से कृषि प्रभावित होती है और कृषि प्रभावित होगी तो खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होगी। ऐसी स्थिति में उपलब्ध आंकड़े कृषि क्षेत्र को उपलब्ध कराए जा सकेंगे, ताकि पता चले कि कृषि प्रणाली में क्या सुधार करने की आवश्यकता है। साथ ही स्वास्थ्य, ऊर्जा, जल और आपदा जोखिम को कम करने के क्षेत्र में भी इन जानकारियों का उपयोग किया जा सकेगा।
यह राष्ट्रीय ढांचा वैश्विक ढांचे के अनुरूप कार्य करेगा, लेकिन प्रमुख रूप से इसका ध्यान देश के मौसम पर होगा। जलवायु परिवर्तन को रोकने या उससे उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए मौजूद एजंसियों में परस्पर समन्वय नहीं है। एक के पास आंकड़े होते हैं, लेकिन वह दूसरे को उपलब्ध नहीं कराती। ऐसे में अगर उनमें समन्वय होगा तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। इसके लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है और सह-डिजाइन, सह-उत्पाद, संचार और वितरण इन सबको आसान बनाना जरूरी है।
इसमें केंद्र, राज्य और अन्य विभिन्न एजंसियां शामिल होंगी, जैसे जल विज्ञान, बिजली, नवीकरणीय ऊर्जा, परिवहन, बांध, सिंचाई और स्वास्थ्य से संबंधित एजंसियां आदि। जलवायु परिवर्तन से लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। अगर स्वास्थ्य के क्षेत्र से आंकड़े प्राप्त होंगे तो स्वास्थ्य समस्याओं का बेहतर निवारण हो सकेगा।
इसी तरह परिवहन व्यवस्था, बांध, सिंचाई आदि विभिन्न क्षेत्रों से आंकड़े प्राप्त करके उनके माध्यम से एक बेहतर निष्कर्ष निकाला जा सकता है। प्रमुख रूप से कृषि, ऊर्जा, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य और जल प्रबंधन के क्षेत्रों को इससे जोड़ा गया है, लेकिन भविष्य में परिवहन, पर्यटन और अन्य उभरते हुए क्षेत्रों को भी इससे जोड़ा जाएगा।
जलवायु सेवाओं के लिए राष्ट्रीय ढांचे का उपयोग बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मौसम और जलवायु संबंधी आंकड़ों का आज भी अभाव है। हालांकि भारत मौसम विज्ञान विभाग ने पिछले कुछ दशकों में अपनी क्षमता में लगातार बढ़ोतरी की है और इसी का परिणाम है कि मौसम के पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ी है।
चाहे मानसून से संबंधित घटनाएं हों या चक्रवात, लू, शीतलहर, बाढ़ और सूखे की आवृत्तियों का पूर्वानुमान हो, सभी में इसकी सटीकता का स्तर बढ़ा है। इसके बावजूद अलग-अलग क्षेत्रों में, खासतौर से हिमालयी क्षेत्रों और सामुद्रिक परिस्थितियों में इसके अवलोकन तंत्र के कमजोर होने की वजह से, जलवायु परिवर्तन से संबंधित दीर्घावधिक पूर्वानुमान बहुत सीमित हो जाते हैं। एनएफसीएस इस समस्या को दूर करेगा।
एनएफसीएस सभी हितधारकों चाहे वे योजनाकार हों, नीति निर्माता हों, निवेशक या जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले कमजोर वर्ग हों, सबको जोड़कर इनकी जलवायु परिस्थितियों के लिए तैयारी को एक समर्थन प्रदान करेगा। यह राष्ट्रीय ढांचा जलवायु, जलापूर्ति, स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता के बुनियादी ढांचे पर उनके प्रभावों को अनुकूलित करने के प्रयासों को भी समर्थन प्रदान करेगा।
चीन, जर्मनी, स्विटजरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों ने वर्ष 2009 के ‘वैश्विक ढांचा’ के बाद ही अपना ‘राष्ट्रीय ढांचा’ शुरू कर दिया था। कई देश तो अब इसके क्रियान्वयन में बेहद उन्नत चरण में हैं, जिनमें अफ्रीका के देश सबसे आगे हैं। हालांकि भारत में भी जलवायु संबंधी राष्ट्रीय ढांचे की चर्चा कई वर्ष पहले से हो रही है, लेकिन अभी तक इसको क्रियान्वित नहीं किया जा सका है।
इसे एक केंद्रित, समयबद्ध और उच्च प्राथमिकता वाला प्रयास बनाने के लिए, सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकायों और कार्यालयों को इससे जोड़ना जरूरी होगा, तभी इसका सही रूप से क्रियान्वयन संभव हो पाएगा। इससे मौसम के स्वरूप में हो रहे लगातार बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति से न केवल निपटने में, बल्कि उन घटनाओं के प्रति अनुकूलित होने में भी मदद मिलेगी।