उत्तरकाशी की सिल्कयारा टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया है। 17 दिन तक सुरंग में फंसी 41 जिंदगियों के बाहर आने की उम्मीद पूरा देश लगाए बैठा था। भारतीय सेना के साथ एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सभी ने कड़ी मेहनत के बाद यह कामयाबी हासिल की है। इस कामयाबी का क्रेडिट उन रैट माइनर्स को भी दिया जाना चाहिए जो अपने हाथो से मलबा निकाल रहे थे। यही वे लोग थे जो सबसे पहले वहां पहुंचे जहां मजदूर इंतज़ार की राह तक रहे थे। इन रैट माइनर्स के चेहरों पर मुस्कुराहट उस तंग सुरंग में खुदाई करने की सारी थकान को छिपा रही थी, जहां सांस लेना भी एक चुनौती बन जाता है।
वहां काम रहे एक मजदूर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “जब हम वहां पहुंचे तो मजदूर हमें देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने हमें गले लगाया और बादाम दिए। एक अन्य ने कहा, “हमने 15 मीटर की दूरी तय की। जब हम वहां पहुंचे और उनकी एक झलक देखी तो हम बहुत खुश हुए।”
रैट माइनर्स के एक लीडर ने कहा कि यह बहुत मेहनत का नतीजा है, उन्होंने कहा, “हम आश्वस्त थे कि हमें फंसे हुए मजदूरों को बचाना होगा। यह हमारे लिए जीवन में एक बार मिलने वाला मौका था। उन्हें बाहर निकालने के लिए हमने 24 घंटे लगातार काम किया।” उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने सभी मजदूरों को निकाले जाने के बाद मीडिया से बात करते हुए भी रैट माइनर्स का जिक्र किया और धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, “मशीनें खराब होती रहीं, लेकिन मैं हाथ से खनन करने वालों को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं फंसे हुए श्रमिकों से भी मिला। उन्होंने कहा कि उन्हें सुरंग के अंदर कोई समस्या नहीं हुई।”
दो दिन पहले भारी ड्रिलिंग मशीन के खराब हो जाने के बाद मामला काफी गंभीर हो गया था और मजदूरों को बाहर निकाले जाने को लेकर दूसरे तरीके खोजे जाने लगे थे। उसके बाद रैट माइनर्स को बुलाया गया।
रैट माइनर्स के लिए यह काम इतना आसान नहीं होता है। जो मजदूर भीतर गए होते हैं उनके लिए भी कई तरह के खतरों की संभावना बनी होती है। खनन के इस तरीके को कई घटनाओं के सामने आने के बाद काफी खतरनाक माना जाता रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था एनजीटी का कहना था कि ऐसे कई मामले हैं जहां बरसात के मौसम के दौरान कई मजदूर मारे गए हैं।