ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निजी सचिव के रूप में कार्यरत रहे वीके पांडियन ने सोमवार को औपचारिक रूप से बीजू जनता दल (बीजेडी) की सदस्यता ले ली। नवीन पटनायक ने एक्स पर लिखा कि वीके पांडियन कई सालों से ओडिशा के लोगों के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं और जनता का सम्मान और विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे हैं। उनके बीजेडी जॉइन करने के बाद कई तरह की सियासी चर्चाएं शुरू हो गई हैं। वह तमिलनाडु में जन्मे थे और अपना सियासी सफर ओडिशा से शुरू कर रहे हैं। लेकिन वह ऐसा करने वाले पहले राजनेता नहीं हैं बल्कि कई ऐसी बड़ी हस्तियां हुईं जिनका सियासी सफर अपने गृह राज्य में ना होकर बाहर ही रहा और वह कामयाब भी हुए। भारतीय राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं। यहां हम ऐसे ही कुछ उदाहरण आपके सामने पेश कर रहे हैं।
तमिलनाडु की राजनीति के प्रतीकों में से एक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और जे जयललिता के गुरु एमजी रामचंद्रन तमिलनाडु के नहीं थे। उनका जन्म श्रीलंका के कैंडी में एक मलयाली नायर परिवार में हुआ था। खुद जयललिता का पालन-पोषण कर्नाटक में हुआ था, क्योंकि उनके दादा मैसूर रियासत में दरबारी चिकित्सक के तौर पर ट्रांसफर हो गए थे। हालांकि अपना बचपन मैसूर और बेंगलुरु में बिताने के बाद वह 1958 में 10 साल की उम्र में तमिलनाडु में बस गईं।
उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का नाम आते ही पहला चेहरा कांशीराम का सामने आता है। वह पंजाब से थे उन्होंने पुणे की एक सरकारी लैब में काम किया लेकिन दो दशकों तक यूपी की राजनीति की दिशा बदलने में सफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पंजाब में अपने परिवार को त्याग दिया था। इसके बाद कांशीराम ने बसपा का गठन किया और उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका नाम हमेशा के लिए बन गया।
जॉर्ज फर्नांडिस की सियासत तो तीन राज्यों से होकर गुजरती है। वह मंगलुरु के मूल निवासी थे लेकिन उनके परिवार ने उन्हें पुजारी बनने के लिए बेंगलुरु भेज दिया था। वे यहां मजदूरों के मुद्दों की ओर आकर्षित हुए और एक ट्रेड यूनियन के नेता बन गए। जब मुंबई में ट्रांसफर हुए तो उन्होंने कई हड़तालें कीं और 1967 के लोकसभा चुनावों में मुंबई से महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज एसके पाटिल को हराया। इसके बाद उनका अगला केंद्र बिहार था। 1977 में जेल से बिहार की मुजफ्फरपुर सीट लगभग 3 लाख वोटों के अंतर से जीती। मुजफ्फरपुर चुनाव में जो नारा सर्वव्यापी हो गया वह था – ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा’ का नारा था। बाद में राजनीति से उनका जुड़ाव काफी हद तक बिहार से ही रहा।
1977 में मुजफ्फरपुर में फर्नांडिस के लिए प्रचार करने वालों में एक युवा सुषमा स्वराज भी थीं – जिनके पति स्वराज कौशल फर्नांडिस से जुड़े थे। खुद सुषमा स्वराज ने भी अपना राजनीतिक करियर 1977 में हरियाणा से शुरू किया था और 1990 के दशक के अंत में दक्षिण दिल्ली से और फिर 2009 से मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा चुनाव जीतकर आगे बढ़ीं। 1998 में वह दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में भी बहुत संक्षिप्त कार्यकाल के लिए रहीं।
ऐसे और भी कई नाम हैं, जैसे मध्य प्रदेश भी इस घटना से अछूता नहीं है। इसका प्रमुख कांग्रेस चेहरा और पार्टी के संभावित सीएम उम्मीदवार कमल नाथ एक व्यवसायी परिवार से आते हैं जो कानपुर में स्थित था। आंध्र प्रदेश की रहने वाली फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से जुड़ी थीं और उन्होंने उत्तरी राज्य में अपनी राजनीति की। उन्होंने लोकसभा सांसद के रूप में रामपुर का भी प्रतिनिधित्व किया। हेमा मालिनी भी तमिलनाडु के अयंगर ब्राह्मण परिवार से आती हैं, लेकिन लोकसभा में यूपी के मथुरा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
कांग्रेस नेता सचिन पायलट भले ही राजस्थान की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हों, लेकिन वह एक गुर्जर परिवार से आते हैं, जिसकी जड़ें पश्चिमी यूपी के ग्रेटर नोएडा में हैं। उनके पिता राजेश पायलट ने राजस्थान के दौसा को अपना गढ़ बनाया और राज्य को अपना राजनीतिक घर बनाया।