मणिपुर में मई 2023 को भड़की हिंसा की आग अब तक ठंडी नहीं हुई है। हिंसा में मारे गए लोगों में से आधे से ज्यादा के शव मणिपुर के मुर्दाघरों में लावारिस पड़े हैं। हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल का मानना है कि पीड़ितों के रिश्तेदारों पर नागरिक समाज संगठनों का दबाव है। पैनल ने शीर्ष अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
जानकारी के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाले पैनल ने सुझाव दिया है कि पीड़ितों के रिश्तेदारों को अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। पैनल ने कहा कि ऐसा न होने पर मणिपुर सरकार को अंतिम संस्कार करना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट को नागरिक अधिकारों पर रोक लगा देनी चाहिए और समाज संगठनों को हस्तक्षेप करने से रोका जाना चाहिए। इस मामले की सुनवाई मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जातीय हिंसा के मानवीय पहलुओं की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शालिनी पी जोशी और दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आशा मेनन शामिल हैं। पैनल ने पिछले सोमवार को अपनी तेरहवीं अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पीड़ितों के रिश्तेदारों पर नागरिक समाज संगठनों का दबाव है कि वे अंतिम संस्कार के लिए शव स्वीकार न करें। इसमें कहा गया है कि ये संगठन निहित स्वार्थों के कारण और राज्य के अधिकारियों की अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए अंतिम संस्कार में बाधा डाल रहे हैं।
शवों पर दावा करने और उनके निपटान का सवाल मौजूदा संघर्ष में सबसे संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दों में से एक रहा है। 3 मई को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में 7 अक्टूबर तक 175 लोगों के मारे जाने की सूचना थी। राज्य के रिकॉर्ड बताते हैं कि राज्य के तीन बड़े मुर्दाघरों – जेएनआईएमएस, रिम्स इंफाल और चुराचांदपुर जिला अस्पताल में 94 शव लावारिस पड़े हैं। इनमें छह शव अज्ञात हैं। शेष 88 पहचाने गए लावारिस शव कुकी समुदाय से हैं।