ब्रह्मदीप अलूने
डेढ़ दशक पहले मालदीव में बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना हुई थी और उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने समुद्र के बढ़ते स्तर और कार्बन उत्सर्जन के खतरों से दुनिया को आगाह करने के लिए समुद्र के तल पर कैबिनेट बैठक आयोजित की थी। तब माना गया था कि पर्यटकों की खास पसंद बना तथा भारत की समुद्री सीमा से लगे हिंद महासागर में स्थित यह छोटा-सा देश विश्व शांति और प्रगति में महती भूमिका निभाने को तैयार है।
समुद्री प्राकृतिक जटिलताओं से जूझने वाले मालदीव को वैश्विक पहचान दिलवाने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मगर पिछले कुछ वर्षों में इस देश की घरेलू राजनीति और विदेश नीतियों में गहरे परिवर्तन हुए हैं। इसके प्रमुख कारणों में देश में राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक कट्टरपंथ को राजनीतिक संरक्षण, लोकतांत्रिक शक्तियों को कुचलने की कोशिशें, खाड़ी देशों से आयातित चरमपंथ, पाकिस्तान का भारत विरोधी दुष्प्रचार और चीन की कर्ज नीति का मकड़जाल है। इसका प्रभाव भारत मालदीव संबंधों पर भी पड़ा है, जो लगातार जटिल होते जा रहे हैं।
मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नेतृत्व में आई नई सरकार ने भारत से अपील की है कि वह मालदीव से भारतीय सैनिकों को वापस बुलाए। मालदीव लंबे समय से भारत के प्रभाव में रहा है, मगर मुइज्जू का यह रुख भारत विरोधी तथा चीन समर्थक माना जा रहा है। हालांकि भारत विरोध के संकेत मुइज्जू के राजनीतिक गुरु यामिन की सरकार में ही देखने को मिल गए थे, जब मालदीव और चीन के रिश्ते बेहद गहरे हो गए थे।
उन्होंने भारत की एक कंपनी का हवाई अड्डा बनाने का करार खारिज करके ठेका चीन की कंपनी को दे दिया था। इसके साथ ही 2018 में मालदीव ने बहुराष्ट्रीय आठ दिवसीय नौसैनिक अभ्यास मिलन में शामिल होने के भारत के निमंत्रण को ठुकरा दिया था।
मालदीव, हिंद महासागर में सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील स्थान पर स्थित है और यही कारण है कि भारत उससे मित्रवत संबंध बनाए रखने की लगातार कोशिशें करता रहा है। वहीं पिछले कुछ दशकों में चीन ने दक्षिण एशिया समेत हिंद महासागर के देशों में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए सहायता कूटनीति को अपना हथियार बनाकर सामरिक बढ़त बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। 1980 के दशक के अंत में चीनी नौसेना ने समुद्री इलाके पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने की एक रणनीति बनाई थी।
उसके अनुसार अपने जल क्षेत्र से बाहर काम करने में सक्षम पनडुब्बी और अत्याधुनिक हथियार बनाना, हिंद महासागर में उसका संचालन करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी धाक जमाना था। इस योजना को अमल में लाने के लिए चीन ने अपने रक्षा बजट में भी बेहताशा बढ़ोतरी की। इस समय चीन की नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना शक्तियों में शुमार है। वह पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और यूरोप के आसपास के व्यापक जलक्षेत्रों में अभियान चला रही है।
दक्षिण चीन सागर पर अधिक नियंत्रण या प्रभुत्व प्राप्त करना, चीन की वाणिज्यिक समुद्री संचार लाइनों की रक्षा करना, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करना और अग्रणी क्षेत्रीय शक्ति तथा एक प्रमुख विश्व शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिशों से क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर सामरिक चुनौतियां बढ़ गई हैं।
मालदीव और चीन के बीच 2017 में मुक्त व्यापार समझौता हो चुका है। वहां बड़े पैमाने पर चीन ने निवेश किया है और वह ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ में भागीदार बन गया है। ‘स्ट्रिंग आफ द पर्ल्स’ पहल के हिस्से के रूप में मालदीव में बंदरगाहों, हवाई अड्डों, पुलों और अन्य महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास सहित विभिन्न परियोजनाओं के वित्तपोषण और निर्माण में चीन ने भूमिका निभाई है। इस रणनीति के मुताबिक जरूरत पड़ने पर इनका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
मालदीव द्वीपों का एक बड़ा समूह है, जिसमें करीब बारह हजार टापू हैं। इसमें सिर्फ दो सौ द्वीपों पर लोग बसते हैं। मालदीव के सबसे नजदीकी पड़ोसियों में से एक भारत है और उसकी चिंता यह है कि मालदीव के सैकड़ों निर्जन द्वीपों पर समुद्री डाकू, तस्कर और चरमपंथी ठिकाना न बना लें।
समुद्री रास्तों से हथियारों, नशीले पदार्थों और मानव तस्करी, संगठित अपराध के रूप में एक बड़ी सामुद्रिक सुरक्षा चुनौती है। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अधिकांश हिस्सा समुद्री मार्ग से संचालित होता है। इसलिए भारत की आर्थिक क्षमताओं को मजबूत करने और सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण अवयव है।
भारत की हिंद महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है। उस पर चीन का बढ़ता प्रभाव आशंकाएं बढ़ा रहा है। चीन को रोकने और उसके सामरिक खतरों से निपटने के लिए भारत क्वाड का सदस्य बना है। 2007 में स्थापित क्वाड के सदस्य भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका खुले और स्वतंत्र हिंद महासागर की बात कहते रहे हैं। इन राष्ट्रों द्वारा चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए नियमित सैन्य अभ्यास भी किए जाते हैं।
हालांकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की संख्या और गतिविधियां जिस तरह से बढ़ती दिख रही हैं, ऐसा लगता है कि उसे रोकने में क्वाड भी बहुत सफल नहीं हो रहा है। इन क्षेत्रों में चीन नियंत्रित बंदरगाहों और सैन्य सुविधाओं के विकास से भारत के रणनीतिक हितों और क्षेत्रीय सुरक्षा को लगातार चोट पहुंच रही है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का प्रमुख भागीदार है। श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, बांग्लादेश का चिटगांव बंदरगाह, म्यांमा की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों को चीनी कब्जे से भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई हैं।
इस समय मुइज्जू सरकार का रुख भारत विरोधी प्रतीत हो रहा है। वे मालदीव के सामाजिक और आर्थिक विकास में चीन की भूमिका की सराहना कर रहे हैं, फिलीस्तीन को आक्रामक समर्थन देकर अपने देश की कट्टरपंथी ताकतों को खुश कर रहे हैं, तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन से मिलने को आतुरता तथा भारत से रिश्तों को लेकर ठंडापन दिखा रहे हैं। ऐसे में यह आशंका गहरा गई है कि मालदीव के सैकड़ों निर्जन द्वीपों की सुरक्षा को लेकर मुइज्जू सरकार संसाधनों का हवाला देकर अपनी असमर्थता जता सकती है। यह स्थिति चीन के लिए मुफीद हो सकती है।
पिछले वर्ष चीनी जहाज युआन वांग 5 ने समुद्र में शोध करने के नाम पर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर डेरा डाला था। यह चीन के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्ष ट्रैकिंग जहाजों में से एक है, जिसका उपयोग उपग्रह, राकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल की निगरानी के लिए किया जाता है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ‘लांच बेस इंफ्रास्ट्रक्चर’ देने वाला सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा में स्थित है, जो हंबनटोटा से करीब ग्यारह सौ किलोमीटर की दूरी पर है। मालदीव से कोच्चि की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है। भारतीय नौसेना के दक्षिणी नौसैनिक कमान का केंद्र तथा भारतीय तटरक्षक का राज्य मुख्यालय भी यहीं स्थित है। केरल के एर्नाकुलम जिले में लक्षद्वीप सागर से तटस्थ स्थित यह एक बड़ा बंदरगाह नगर है।
चीन हिंद महासागर से जुड़े देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर भारत के करीब आता जा रहा है। इससे यह आशंका गहराने लगी है कि चीन अत्याधुनिक टोही जहाजों का उपयोग करके भारत की सामरिक ताकत का न केवल अंदाजा लगा सकता है, बल्कि भविष्य में जरूरत पड़ने पर अपने युद्धपोतों और खासकर पनडुब्बियों की सुरक्षित तरीके से तैनाती कर सकता है। जाहिर है, श्रीलंका के बाद अब मालदीव सरकार की नीतियां भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ा रही हैं।