आज फिर आया है वह दिन जो याद दिलाता है कि जिहादी आतंकवाद के मायने क्या हैं। हम जो मुंबई में रहते हैं 26/11 को कभी भुला नहीं पाते हैं, जब भी हम गुजरते हैं उन गलियों से जहां वे होटल, रेस्तरां, अस्पताल और रेलवे स्टेशन हैं और जहां बेगुनाह, निहत्थे लोगों को उन दस पाकिस्तानी जिहादियों ने गोलियों से भून डाला था।
इस वर्ष आज के दिन हमको खासतौर पर उन यहूदियों को याद करना चाहिए, जिनको हबाद हाउस में तड़पा-तड़पा कर मारा गया था। इसलिए कि जिहादी मानसिकता के लोग खास दुश्मनी रखते हैं यहूदियों के साथ। ऐसा हमने देखा अक्तूबर सात को जब इजराइल में घुस कर हमास के दरिंदों ने यहूदी बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को बर्बरता से मारा।
मुंबई के 26/11 वाले जिहादी हमले पर किताबें लिखी गई हैं, फिल्में बनी हैं। मैंने वे सारी किताबें पढ़ी हैं और फिल्में भी देखी हैं, इस उम्मीद से कि शायद समझ में आए कि इतनी नफरत मजहब के नाम पर लोग पैदा क्यों करते हैं। धर्म-मजहब के ज्ञानी अक्सर कहते हैं कि ईश्वर-अल्लाह उनको पसंद करते हैं जो उनके नाम पर प्यार-मोहब्बत बांटते हैं।
तो फिर इतनी नफरत आती कहां से है कि इस्लाम के नाम पर बर्बर हिंसा हो रही है दुनिया में? मैं जब इस बात को कहती हूं, मुझे मेरे मुसलिम दोस्त याद दिलाते हैं कि हिंदू भी तो पागल हो जाते हैं हिंदुत्व के नाम पर। सिख भी खालिस्तान को लेकर इतनी हिंसा फैला चुके हैं। पिछले सप्ताह धमकी दी एक खालिस्तानी आतंकवादी ने कि एअर इंडिया का कोई विमान उड़ाया जाने वाला है। अपने ‘पंथिक’ भाइयों को सावधान किया।
इस धमकी को गंभीरता से लेना पड़ता है इसलिए कि खालिस्तानियों ने पहले भी ऐसा किया था 1985 में, सो फिर से कर सकते हैं। जिस खालिस्तानी ने वीडियो पर यह धमकी देकर उसको फैलाया था, वह वही है जिसके बारे में अमेरिकी सरकार ने भारत सरकार से शिकायत दर्ज की है कि भारतीय गुप्तचर संस्थाओं ने इस आतंकवादी की हत्या करने की साजिश रची है।
शिकायत इसलिए की अमेरिकियों ने, ताकि गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या अमेरिकी भूमि पर न की जाए, जैसे कुछ महीने पहले कनाडा में एक दूसरे खालिस्तानी की हुई थी। सवाल यह है कि ऐसे लोग जो खुलकर आतंकवाद फैलाते हैं, अभी से जेलों में बंद क्यों नहीं हैं? माना कि खालिस्तानी आतंकवादी जिहादियों की तरह सारी दुनिया के लिए समस्या नहीं हैं।
ऐसा शायद इसलिए है कि सिखों की संख्या बहुत थोड़ी है विश्व में और मुसलमानों की इतनी ज्यादा कि दुनिया के तकरीबन आधे देश इस्लामी हैं। साथ में यह भी याद रखना जरूरी है कि इस्लामी देशों में पनाह मिलती हैं जिहादी आतंकवादियों को और हर तरह की आर्थिक और राजनीतिक मदद। कोई इत्तिफाक नहीं है कि कतर में रहते हैं हमास के बड़े सरदार।
कोई इत्तिफाक नहीं है कि इजराइली बंधकों की रिहाई में कतर की भूमिका बहुत अहम है। यह भी याद रखना जरूरी है कि सात अक्तूबर के हमास द्वारा किए गए बर्बर हमले के बाद ईरान के अयातुल्लाह ने हमलावरों को शाबाशी दी थी और यहां तक कहा था कि जिन्होंने इस दरिंदगी को अंजाम दिया था, उनके वे हाथ चूमना चाहते हैं।
मेरी समझ में यह नहीं आता है कि मुसलिम देश क्यों हमेशा जिहादी आतंकवादियों के समर्थन में या तो खुलकर निकल आते हैं या चुपके से साथ देते हैं। इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने लगी तो देखा कि सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने कुरान की कुछ आयतें डाल रखी हैं, जिनमें गैर-मुसलिम लोगों के खिलाफ हिंसा वाली कई बातें कही गई हैं।
कुछ आयतों में इस्लाम को कबूल न करने वालों के बारे में भी आक्रामक बातें कहीं गर्इं। ऐसी बातें इन दिनों न्यूयार्क और लंदन की गलियों में वे लोग कह रहे हैं जो जुलूस निकाल रहे हैं गाजा में युद्ध विराम की मांग को लेकर। अगर साथ में हमास के उस हमले को भी गलत कहा होता तो शायद उनकी बात में थोड़ा दम होता। ऐसा नहीं किया है फिलिस्तीन के इन समर्थकों ने।
याद है मुझे कि 26/11 वाले हमले के बाद मुझे एक पढ़ा-लिखा, सभ्य पाकिस्तानी मिला, जिसने मुंबई पर किए गए आतंकवादी हमले के बारे में गर्व से कहा, ‘भई इतना तो आपको भी मानना पड़ेगा कि दस पाकिस्तानी नौजवानों ने तीन दिन तक भारत की सेना और तमाम सुरक्षा संस्थाओं को हिला दिया था’।
याद मुझे यह भी है कि इस हमले के कुछ महीने बाद जब मैं दुबई गई थी तो मुझे कई आम पाकिस्तानी मिले, जिन्होंने कहा था कि इस हमले को मुसलमान कभी नहीं कर सकते हैं और उनकी राय में इसके पीछे भारत सरकार की गुप्तचर संस्थाओं का हाथ दिखता है, ताकि कश्मीर घाटी में तशद्दुद बढ़ सके। बिल्कुल इस तरह की बातें मुसलिम लोगों से मैंने सुनी हैं नाजियों द्वारा किए गए यहूदियों के जनसंहार के बारे में। शिक्षित, समझदार, उदारवादी मुसलमानों से मैंने सुना है बहुत बार कि हिटलर ने कोई मौत के कारखाने नहीं खोले थे और ये सब सिर्फ झूठी बातें हैं जो यहूदियों ने फैलाई हैं।
कई उदारवादी मुसलिम ऐसे हैं जो मानते हैं कि इस्लाम शांति का मजहब है, इसलिए मुसलमान कभी भी हिंसा नहीं कर सकते हैं। ऐसी बातें हमास के हमले के बाद भी मैंने सुनी हैं बहुत बार और सुनकर मैं हैरान रह गई हूं। आज के दिन लेकिन हम सबको इतना जरूर करना चाहिए कि पूजा के समय उनको याद करें जो शहीद हुए थे जिहादी इस्लाम के नाम पर।