अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों की जांच के लिए गठित समिति के सदस्यों के खिलाफ हितों के टकराव के आरोपों पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा कि वह यह नहीं मान सकता कि रिपोर्ट विश्वसनीय है या नहीं जब तक कि अधिकारी इसकी जांच नहीं कर लेते।
पीठ ने कहा, “हिंडनबर्ग रिपोर्ट में बताई गई बातों को हमें अपने-आप ‘मामले की सच्ची स्थिति’ मानने की ज़रूरत नहीं है। इसीलिए हमने सेबी को जांच करने का निर्देश दिया। क्योंकि हमारे लिए किसी रिपोर्ट में दर्ज ऐसी चीज को स्वीकार करना, जो हमारे समक्ष नहीं है और जिसकी सत्यता का परीक्षण करने का हमारे पास कोई साधन भी नहीं है, वास्तव में अनुचित होगा।”
पीठ ने एक याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण की तरफ से सेबी की भूमिका पर संदेह जताने पर यह बात कही। भूषण ने कहा था कि सेबी के पास अडानी समूह की गड़बड़ियों के बारे में वर्ष 2014 से ही तमाम जानकारी उपलब्ध थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, “सेबी अपनी जांच पूरी कर ली है। उनका कहना है कि अब यह उनके अर्द्ध-न्यायिक क्षेत्राधिकार में है। कोई कारण बताओ नोटिस जारी करने के पहले क्या उन्हें जांच का खुलासा कर देना चाहिए।”
इस पर भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत को इस पर भी गौर करना होगा कि क्या सेबी की जांच विश्वसनीय है और क्या इसकी जांच का जिम्मा किसी स्वतंत्र संगठन या एसआईटी को सौंपा जाना चाहिए। इस पर पीठ ने सवाल उठाते हुए कहा, “सेबी के काम पर संदेह करने वाला तथ्य हमारे समक्ष कहां है?” इसके साथ ही पीठ ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के दो सदस्यों पर ‘हितों के टकराव’ का आरोप लगाने पर भी कड़ी टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, “आपको काफी सतर्क होने की जरूरत है। आरोप लगाना बहुत आसान है लेकिन हमें निष्पक्षता के बुनियादी सिद्धांत का भी ध्यान रखना है।” पीठ ने सेबी की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने पर कहा, “हमें यह ध्यान रखना होगा कि सेबी एक वैधानिक निकाय है जिसे शेयर बाजार नियमों के उल्लंघन की जांच का अधिकार है। आज देश की सर्वोच्च अदालत के लिए किसी तथ्य के बगैर क्या यह कहना उचित है कि हम आपको जांच नहीं करने देंगे और अपनी तरफ से एक एसआईटी बनाएंगे? ऐसा बहुत जांच-परख के साथ करना होगा।”