मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में उन डाक्टरों को सख्त चेतावनी दी है, जो लोग दुष्कर्म के मामले में पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट करते हैं। एक केस में पीड़ित लड़की पर किए गए टू-फिंगर टेस्ट का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने डॉक्टरों को फटकार लगाई और उन्हें कदाचार की कार्रवाई का सामना करने की चेतावनी दी।
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट पहले ही कह चुके हैं कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म का पता लगाने के लिए ऐसा परीक्षण न तो स्वीकार्य है और न ही जरूरी है। न्यायमूर्ति एसएस सुंदर और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया कि इस तरह की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही रोक लगाई हुई है। इसके बाद भी ऐसे मामले सामने आने पर संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले साल नवंबर में रिपोर्ट दी थी कि राजस्थान में बाल संरक्षण तंत्र की स्थिति पर किए गए एक विश्लेषण के निष्कर्षों में पाया गया था कि कई मामलों में बाल यौन पीड़ितों की मेडिकल जांच में टू फिंगर टेस्ट का हवाला दिया गया था। राजस्थान हाई कोर्ट की किशोर न्याय समिति (JJC) के तत्वावधान में रिसोर्स इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन राइट्स (RIHR) और यूनिसेफ राजस्थान (UNICEF Rajasthan) के सहयोग से किए गए एक अध्ययन के विश्लेषण में कहा गया है कि कई मामलों में मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट में ‘टू फिंगर टेस्ट’ के संदर्भ शामिल थे। इसके अलावा पीड़िता को ‘सेक्स की आदत थी’ समेत ये तथ्य भी शामिल थे कि तय मानकों के उलट बलात्कार या यौन हमले के कोई संकेत नहीं मिले।
एक या दो उंगली से रेप पीड़िता की वर्जिनिटी टेस्ट करने की प्रक्रिया को टू-फिंगर टेस्ट कहा जाता है। यह टेस्ट महिला के साथ शारीरिक संबंध होने या न होने, महिला के शारीरिक संबंधों की आदत और वर्जिनिटी से जुड़े सबूत के तौर पर माना जाता रहा है। मॉडर्न साइंस भी टू-फिंगर टेस्ट को नकारता है और जानकारों का मानना है कि यह टेस्ट महज एक मिथ है।
मद्रास हाईकोर्ट की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा, “निस्संदेह, टू-फिंगर टेस्ट और इसकी व्याख्या बलात्कार पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है।”