जयंतीलाल भंडारी
सरकार का खाद्य सबसिडी खर्च वर्तमान आकलन के मुताबिक दो लाख करोड़ रुपए है, यह आगामी वर्षों में बढ़ेगा। इस समय भारतीय खाद्य निगम को गेहूं और चावल पर क्रमश: करीब 27 रुपए और 39 रुपए प्रति किलोग्राम का आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। सरकार इस बात पर भी गंभीरतापूर्वक विचार कर सकती है कि जरूरतमंदों तक मुफ्त अनाज की जगह उसकी कीमत के बराबर प्रत्यक्ष नगद सहायता पहुंचाई जाए।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसद से घटकर 15 फीसद पर आ गई है, लेकिन आय की असमानता बढ़ी हुई है। हालांकि भारत में प्रतिव्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रुपए थी, वहीं वर्ष 2022 में बढ़कर करीब दो लाख रुपए हो गई है, लेकिन अब भी भारत दुनिया के उन प्रमुख दस देशों में शामिल है, जहां बीते बीस वर्षों में लोगों की आय में असमानता बढ़ी है। स्थिति यह है कि भारत के दस फीसद अमीर लोगों के पास देश की आधी संपत्ति है। जिस तरह भारत में सरकार अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों को हर महीने मुफ्त खाद्यान्न दे रही है, उससे भी जाहिर होता है कि भारत में आय की असमानता काफी गहरी है।
ऐसे में निश्चित रूप से भारत में गरीबों के सशक्तीकरण के लिए निशुल्क खाद्यान्न की जरूरत बनी हुई है। पिछले पांच वर्षों में तेरह करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं और देश के बाकी गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने अस्सी करोड़ से अधिक पात्र लोगों को निशुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना आगामी पांच वर्षों तक के लिए बढ़ा दी।
गौरतलब है कि भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 10 सितंबर, 2013 को अधिसूचित हुआ। इसका उद्देश्य नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए वहनीय मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की पांच किलोग्राम मात्रा उपलब्ध कराना है। इसके तहत राशन कार्ड धारकों को चावल तीन रुपए, गेहूं दो रुपए और मोटे अनाज एक रुपए किलो की दर पर देने की शुरुआत की गई।
कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त अनाज दिया गया। अब वर्ष 2028 तक एक बार फिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाली देश की दो तिहाई आबादी को मुफ्त अनाज देने की पहल दुनिया भर में रेखांकित की जा रही है।
यह कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों द्वारा भारत की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आइएमएफ द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित अध्ययन में कोविड की पहली लहर 2020-21 के प्रभावों को भी शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाई गई पूर्णबंदी के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है।
आइएमएफ के अध्ययन में कहा गया है कि खाद्य सबसिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्त वर्ष 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है। दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोविड-19 के बीच भारत में खाद्यान्न के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के अस्सी करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बच गए।
गौरतलब है कि डिजिटल माध्यम से लाभार्थियों को भुगतान के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर- डीबीटी) से भी गरीबों का सशक्तीकरण हुआ है। सरकार ने वर्ष 2014 से लेकर अब तक डीबीटी के जरिए करीब 29 लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि सीधे लाभान्वितों तक पहुंचाई है। दुनिया भर में रेखांकित हो रहा है कि गरीबों के सशक्तीकरण में करीब 47 करोड़ से अधिक जनधन खातों, करीब 134 करोड़ आधार कार्ड तथा 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं की शक्ति वाले बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है।
निश्चित रूप से देश में लगातार बढ़ता खाद्यान्न उत्पादन भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान करता दिखाई दे रहा है। मगर देश में खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ बढ़ती जनसंख्या के लिए अधिक खाद्यान्न की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है।
चूंकि खाद्यान्न के केंद्रीय पूल में सालाना 780 से 800 लाख टन गेहूं और चावल की खरीद होती है। पीडीएस के तहत अनाज देने के लिए 500 से 590 लाख टन अनाज की जरूरत होती है। वर्ष 2023-24 में केंद्र ने एनएफएसए में 600 लाख टन गेहूं और चावल का आबंटन किया है। ऐसे में गरीबों के लिए बढ़े हुए खाद्यान्न के आबंटन और देश की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए रणनीतिक कदम आगे बढ़ाने होंगे।
देश में लागू की गई सामुदायिक रसोई, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी, स्वास्थ्य और भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। मगर उनके क्रियान्वयन में अभी अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। गरीबों की आय बढ़ाने के लिए भी नए सिरे से अधिक प्रयास करने होंगे। देश में अल्प बेरोजगारी, बेरोजगारी और श्रम की कम उत्पादकता भी गरीबी और आय असमानता का एक प्रमुख कारण है। समय पर पर्याप्त रोजगार का सृजन न हो पाने के कारण भी आय की असमानता दिखाई देती है।
इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि गरीब या आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे लोगों को मुफ्त खाद्यान्न सुविधा देनी चाहिए, लेकिन निशुल्क खाद्यान्न योजना जिस तरह अस्सी करोड़ से अधिक यानी आबादी के सत्तावन फीसद लोगों तक विस्तारित है, इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। तात्कालिक आवश्यकता यह है कि लाभार्थियों को नए सिरे से परिभाषित किया और पता लगाया जाए कि वास्तव में किन लोगों को निशुल्क खाद्यान्न की आवश्यकता है और किन लोगों को रियायती दरों पर खाद्यान्न दिया जाना उपयुक्त होगा।
दरअसल, जिस तरह सत्तावन फीसद आबादी मुफ्त अनाज की छतरी में हैं, उसमें से आबादी के अत्यधिक जरूरतमंद हिस्से को मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति निश्चित करते हुए बाकी आबादी को रियायती दर पर खाद्यान्न की आपूर्ति की जाए। साथ ही सरकार खाद्यान्न के पूर्व निर्धारित रियायती केंद्रीय निर्गम मूल्य में समुचित संशोधन कर सकती है, क्योंकि ये कीमतें एक दशक पहले निर्धारित की गई थीं। ऐसा करने से सरकार का खाद्य सबसिडी बिल भी उतना बड़ा बोझ नहीं रह जाएगा।
सरकार का खाद्य सबसिडी खर्च वर्तमान आकलन के मुताबिक दो लाख करोड़ रुपए है, यह आगामी वर्षों में बढ़ेगा। इस समय भारतीय खाद्य निगम को गेहूं और चावल पर क्रमश: करीब 27 रुपए और 39 रुपए प्रति किलोग्राम का आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। सरकार इस बात पर भी गंभीरतापूर्वक विचार कर सकती है कि जरूरतमंदों तक मुफ्त अनाज की जगह उसकी कीमत के बराबर प्रत्यक्ष नगद सहायता पहुंचाई जाए। इससे जहां भारतीय खाद्य निगम का खाद्यान्न खरीद संबंधी आबंटन कम होगा, वहीं खाद्यान्न भंडारण का खर्च भी कम होगा।
इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि गरीबों की आमदनी में वृद्धि के लिए जहां गरीब वर्ग के युवाओं को रोजगार के मौके जुटाने के लिए डिजिटल शिक्षा के रास्ते पर आगे बढ़ाने के कारगर प्रयास करने होंगे, वहीं उन्हें निशुल्क कौशल प्रशिक्षण के साथ नए हुनर सिखाने होंगे। रोजगार के अवसरों के लिए भी अधिक प्रयास करने होंगे। ऐसे रणनीतिक प्रयासों से देश में गरीबी और आय की असमानता कम करने में मदद मिल सकेगी।