उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में एक हफ्ते से फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचाव करने वाले अब भगवान की शरण में पहुंच गए हैं। सुरंग के मुहाने पर एक छोटा सा मंदिर स्थापित किया गया है। इसकी शुरुआत नारियल फोड़कर और झंडा लगाकर किया गया। कुछ लोगों का मानना है कि सुरंग की स्थापना करने के दौरान एक मंदिर ढहा दिया गया था। इससे स्थानीय देव बाबा बौखनाग नाराज हो गए और उनके प्रकोप की वजह से ही सुरंग के अंदर यह हादसा हो गया।
सुरंग का एक हिस्सा ढहने से उसके अंदर फंसे श्रमिकों की संख्या 40 से बढ़कर अब 41 हो गई है। आपातकालीन परिचालन केंद्र (Emergency Operations Center) की ओर से जारी नई सूची में सुरंग में फंसे मजदूरों की संख्या 41 बताई गई है। बचाव अभियान के छठे दिन निर्माण कंपनी को पता चला कि यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही सुरंग में फंसे मजदूरों में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के निवासी दीपक कुमार पटेल भी शामिल हैं।
इस बीच उत्तरकाशी जिला आपातकालीन नियंत्रण कक्ष ने शनिवार सुबह मीडिया को दी जानकारी में बताया कि फिलहाल सुरंग में ड्रिलिंग का काम रुका हुआ है। इसके अनुसार इंदौर से एक और भारी एवं शक्तिशाली ऑगर मशीन के आने का इंतजार किया जा रहा है। यह मशीन देहरादून के जौलीग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंच चुकी है, जहां से इसे ट्रक के जरिए सिलक्यारा लाया जा रहा है।
इससे पहले सुरंग में मलबे को भेदने के लिए दिल्ली से एक अमेरिकी ऑगर मशीन लाई गई थी, जिसने शुक्रवार दोपहर तक 22 मीटर तक ड्रिलिंग कर चार पाइप डाल दिए थे। हालांकि बाद में ड्रिलिंग का काम रुक गया। 12 नवंबर की सुबह हुए हादसे के बाद से लगातार चलाए जा रहे बचाव अभियान की जानकारी देते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NHIDCL) के निदेशक अंशु मनीष खाल्को ने शुक्रवार शाम कहा था कि मलबे में ड्रिलिंग कर छह मीटर लंबे चार पाइप डाल दिए गए हैं जबकि पांचवें पाइप को डालने की कार्रवाई चल रही है।
उन्होंने बताया कि चौथे पाइप का अंतिम दो मीटर हिस्सा बाहर रखा गया है जिससे पाचवें पाइप को ठीक तरह से जोड़कर उसे अंदर डाला जा सके। बताया जा रहा है कि सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है जिसमें ड्रिलिंग की जानी है । यह पूछे जाने पर कि मशीन प्रति घंटा चार-पांच मीटर मलबे को भेदने की अपनी जरूरी गति क्यों नहीं हासिल कर पाई, इस पर उन्होंने कहा कि पाइप को डालने से पहले उनका एलाइनमेंट करने तथा जोड़ने में समय लगता है।
खाल्को ने यह भी दावा किया कि डीजल से चलने के कारण ड्रिलिंग मशीन की गति धीमी है। उन्होंने कहा कि बीच-बीच में ड्रिलिंग को रोकना भी पड़ता है क्योंकि भारी मशीन को हवा का आवागमन चाहिए और मशीन में कंपन होने से आसपास का संतुलन खराब होने से मलबा गिरने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।