अखिलेश यादव अब संभलकर चल रहे हैं। प्रबंधन के स्तर पर फोकस किया है। एक तरफ जातीय जनगणना के सवाल को उठाकर पिछड़ों को लामबंद करने की रणनीति है तो दूसरी तरफ संगठन को बूथ प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की हिदायत दी है। अगले लोकसभा चुनाव को वे हवा में नहीं लड़ना चाहते। पहली बार समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश में मतदाता सूचियों को लेकर चौकस दिख रहे हैं। नए मतदाता बनवाने से ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि मतदाता सूचियों से उनके समर्थकों के नाम कटने न पाएं।
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी ताकत लगाई है। एक-दो सीटें भी मिल गई तो हौसला बुलंद होगा। अपने साथ-साथ डिंपल यादव को भी मध्यप्रदेश में प्रचार में लगाया। डिंपल अभी लोकसभा सदस्य हैं। चर्चा है कि यादव परिवार अगले चुनाव में एकजुट होकर उतरेगा। रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव का उपयोग रणनीति बनाने और संगठन को मजबूत रखने में करेंगे।
अखिलेश ने समझा है कि उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव और उपचुनावों में उनसे चूक हुई। तभी तो आजमगढ़ व रामपुर की लोकसभा और रामपुर की विधानसभा जैसी सुरक्षित सीटों पर सपा हारी। इसके उलट खतौली में जयंत चौधरी ने ताकत झोंककर उपचुनाव में सीट भाजपा से छीनी। ओमप्रकाश राजभर की काट में अखिलेश ने उन्हीं के चेले महेंंद्र राजभर को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाई है।
नीतीश कुमार ने अपने बर्ताव से अपने हितैषियों तक को चकित कर दिया है। पहले विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण में स्त्री शिक्षा के महत्त्व को रेखांकित करने के चक्कर में अश्लील संकेतों और भाषा का इस्तेमाल किया। इस घटना के बाद जीतनराम मांझी के प्रकरण में भी उनकी बौखलाहट ही सामने आई। मांझी एक तो उम्र में नीतीश से बड़े हैं। दूसरे वे महादलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। मांझी के प्रति नीतीश ने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया वैसा राजनीति में अशिष्ट ही माना जाता है।
बेवजह भाजपा को मुद्दा थमा दिया, दलितों के अपमान का। इसमें कोई दो राय नहीं कि मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश ने ऐतिहासिक कदम उठाया था। लेकिन अब ऊटपटांग बोलकर सब गुड़ गोबर कर दिया। भाजपाई कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री पद की अपनी हसरत परवान चढ़ने की संभावनाएं क्षीण हो जाने से बौखला गए हैं बिहार के मुख्यमंत्री।
महाराष्ट में आरक्षण का मसला पेचीदा है। मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि मराठों को आरक्षण देते समय अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए मौजूदा आरक्षण में कटौती नहीं की जानी चाहिए। ओबीसी समुदायों की एक रैली में राकांपा नेता भुजबल ने पूछा कि अचानक मराठों को कुनबी जाति से संबंधित दिखाने वाले कई रिकार्ड कैसे मिल जा रहे हैं।
भुजबल ने कहा, ‘ओबीसी को संवैधानिक रूप से और उच्चतम न्यायालय की मंजूरी के बाद आरक्षण मिला। वह (जरांगे) कहते हैं कि हमने उनका (मराठा समुदाय का) 70 साल से आरक्षण छीन रखा है। क्या हम जरांगे के परिवार का कुछ छीन रहे हैं? हम मराठा आरक्षण का विरोध नहीं करते, लेकिन ओबीसी कोटे पर कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।’
येदियुरप्पा ने अपनी बात मनवा ही ली। भाजपा आलाकमान ने उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को आखिर कर्नाटक में पार्टी का सूबेदार बना दिया। दूसरा बेटा बीवाई राघवेंद्र शिमोगा सीट से लोकसभा सदस्य है। खुद येदियुरप्पा पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाना घाटे का सौदा साबित हुआ।
आलाकमान का सोचने समझने का अपना नजरिया है। गुजरात और उत्तराखंड में उसी नजरिए के तहत स्थापित नेताओं की छुट्टी कर नए नेताओं को सरकार की कमान सौंपी गई थी। पांच राज्यों के विधानसभा में भी बेशक किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया पर आखिर में राजस्थान में तो वसुंधरा राजे के करीबियों को टिकट देने ही पड़े। कर्नाटक में येदियुरप्पा को उखाड़ने के पीछे संगठन महासचिव बीएल संतोष और आरएसएस के सरकार्यवाह की भूमिका भी नजर आई थी।
लेकिन येदियुरप्पा ने दिखा दिया कि उनकी अनदेखी पार्टी को महंगी पड़ेगी। मंशा तो येदियुरप्पा की बेटे को विधायक दल का नेता बनवाने की थी। पर इस पद के लिए फैसला अभी लटका है। मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का आरोप था कि राज्य में चुनाव कांगे्रस सत्ता के लिए नहीं लड़ रही। अलबत्ता दो बड़े नेता अपने बेटों को स्थापित करना चाहते हैं। हालांकि वह कर्नाटक का उदाहरण भूल जाती है, वंशवाद के संदर्भ में।
इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस बनाम अन्य दलों की रार जारी है। केरल कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के नेतृत्व वाले ‘नव केरल सदास’ अभियान पर आरोप लगाया कि यह वाम मोर्चे की सरकार का राजनीतिक अभियान है। यह विजयन की छवि को मजबूत करने के उद्देश्य से एक जनसंपर्क प्रयास है। मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट मंत्रियों की अध्यक्षता में ‘नव केरल सदास’ (केरल के नए सदस्य) अभियान केरल के सभी 140 निर्वाचन क्षेत्रों में चलाया जाएगा।
इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य माकपा के नेतृत्व वाली वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार द्वारा पिछले सात वर्षों में की गई प्रगति के बारे में जनता की राय जानना है। एक महीने से अधिक समय तक चलने वाला यह अभियान 18 नवंबर को उत्तरी कासरगोड जिले के मंजेश्वरम निर्वाचन क्षेत्र में शुरू होने वाला है।
केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के सुधाकरन ने आरोप लगाया कि यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री के लिए एक जनसंपर्क एवं प्रचार अभियान है। सुधाकरन ने कहा कि मुख्यमंत्री अपने परिवार के बारे में अधिक चिंतित हैं। सुधाकरन ने आरोप लगाया कि करदाताओं के पैसे का उपयोग करके इस तरह का अभियान आयोजित करना जनता का मजाक उड़ाना है।
संकलन : मृणाल वल्लरी