Telangana Assembly Elections: देश की राजनीति में इस वक्त अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की चर्चा काफी जोरों पर हो रही है। तेलंगाना विधानसभा का चुनाव प्रचार भी इसी वर्ग के इर्द-गिर्द घूम रहा है। मैदान में तीन प्रमुख दल- सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), कांग्रेस और भाजपा हैं, लेकिन ओबीसी की वकालत के बीच सभी राजनीतिक पार्टियों ने ओबीसी की अपेक्षा बड़ी संख्या में उच्च जाति (सवर्ण जाति) के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी है। मुख्य रूप से रेड्डी समुदाय राज्य में प्रभावशाली है, लेकिन आबादी या संख्या के लिहाज से यह कम है। बीआरएस और कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची में उच्च जाति के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी ओबीसी से ज्यादा है।
उदाहरण तौर पर, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जिसने सत्ता में आने पर एक ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। ऐसे में भाजपा ने कुछ अन्य उच्च जाति के उम्मीदवारों के बीच 30 रेड्डी उम्मीदवारों (27%) को मैदान में उतारा है। पार्टी 119 में से राज्य में 111 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, बाकी सीटें अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के लिए छोड़ी गई हैं।
दूसरी ओर, कांग्रेस को अपने ओबीसी नेताओं के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो अधिक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं। 15 अक्टूबर को पार्टी की पहली सूची जारी हुई थी, जिसमें रेड्डी समुदाय का वर्चस्व था, पार्टी नेताओं ने ओबीसी के लिए कुल 51 सीटों की मांग की थी। हालांकि, पार्टी ने अभी भी उच्च जाति के 11 अन्य उम्मीदवारों के बीच 26 रेड्डी (25%) उम्मीदवारों को टिकट दिया है। सबसे पुरानी पार्टी 119 सीटों में से 116 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि तीन सीटें उसके वामपंथी सहयोगियों के लिए छोड़ी हैं।
बीआरएस, जिसे अपनी सरकार द्वारा ओबीसी की उपेक्षा को लेकर विपक्ष के लगातार हमलों का सामना करना पड़ा है। उसने भी उच्च जातियों को टिकट बंटवारे में प्राथमिकता दी है, जिसमें 35 रेड्डी (29%) उम्मीदवारों टिकट दिया है। इसके अलावा, पार्टी ने वेलामा (केसीआर की जाति), कम्मा और ब्राह्मण जैसी अन्य ऊंची जातियों के 16 अन्य उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। राज्य की सत्ता पर काबिज केसीआर के नेतृत्व वाली पार्टी सभी 119 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
तेलंगाना में ओबीसी को सभी पार्टियों की तरफ कितनी टिकट दी गईं। उसमें बीजेपी ने 39 (35%) के साथ सबसे ज्यादा टिकट दिया है। सत्तारूढ़ बीआरएस ने 24 ओबीसी (20%) उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस 20 (18%) टिकट ओबीसी को दिए हैं।
2014 के घरेलू सर्वे के अनुसार, तेलंगाना की आबादी में 52% ओबीसी शामिल हैं, जबकि रेड्डी आबादी का लगभग 7% हिस्सा है। अनुसूचित जाति (एससी) लगभग 17% हैं जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) लगभग 9% हैं।
हाल ही में, तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) के प्रमुख रेवंत रेड्डी ने बीआरएस पर महिलाओं को दरकिनार करने का आरोप लगाया और कांग्रेस के सत्ता में आने पर महिलाओं को चार मंत्री पद देने का वादा किया। हालांकि, उनकी पार्टी ने भाजपा के विपरीत केवल 11 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिसने 15 महिलाओं को टिकट दिया है। बीआरएस ने आगामी चुनावों के लिए सबसे कम संख्या (8) महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
2014 में राज्य के विभाजन तक मुसलमानों के बीच सबसे अधिक समर्थन रखने वाली कांग्रेस ने 2018 में 7 की तुलना में 4 मुसलमानों को मैदान में उतारा है, जबकि बीआरएस ने पिछली बार की तरह ही समुदाय से दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। हालांकि, एआईएमआईएम, जो 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और एक गैर-मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, उसको बीआरएस के साथ गठबंधन के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा के पास पिछली बार की तरह इस बार भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं है। तेलंगाना की आबादी में 13% मुस्लिम हैं। तीनों दलों ने केवल आरक्षित सीटों पर एससी और एसटी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। तेलंगाना में 19 एससी-आरक्षित सीटें हैं और 11 एसटी के लिए रखी गई हैं।