CJI DY Chandrachud: मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अधिवक्ता लक्ष्मना चंद्र विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति के कॉलेजियम के फैसले का सीजीआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बचाव किया। सीजेआई ने कहा कि वकील के रूप में उनके विचारों के आधार पर किसी व्यक्ति को ‘पक्षपाती’ नहीं मानना चाहिए। बता दें, मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ के समक्ष केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील को पदोन्नत करने का प्रस्ताव उनके भाजपा से जुड़े होने के आरोपों के बाद विवादों में घिर गया है।
हाई कोर्ट के कुछ बार सदस्यों मे सीजेआई को पत्र लिखकर गौरी को कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश को वापस लेने की मांग की थी। साथ ही आरोप लगाया था कि उन्होंने ईसाइयों और मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए थे। हार्वर्ड लॉ स्कूल सेंटर में बोलते हुए सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायाधीश के कथित भाषण की प्रकृति को “बहुत ध्यान से” देखा और केंद्र सहित सभी हितधारकों के साथ प्रतिक्रिया साझा की गई।
सीजेआई ने कहा, ‘हमने इसे बहुत ध्यान से देखा। न्यायाधीश द्वारा कथित तौर पर दिए गए भाषण की प्रकृति को बहुत ध्यान से देखा गया। जिन प्रक्रियाओं का हम पालन करते हैं उनमें से एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगना है और हम मांगते हैं, हम फीडबैक लें और फीडबैक को सरकार के साथ साझा करें।’
चंद्रचूड़ ने कहा, ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक काफी जटिल प्रक्रिया है जिसमें संघीय प्रणाली की विभिन्न परतें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि राज्य और खुफिया ब्यूरो जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियां। यह एक व्यापक आधार वाली सहयोगात्मक प्रक्रिया है, जिसमें किसी एक पक्ष की निर्णायक भूमिका नहीं होती है।’ अपने विचार व्यक्त करते हुए सीजेआई ने कहा कि जो वकील विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे महान जज बनते हैं।’
सीजेाई ने कहा कि हमारे सबसे महान न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर थे। जिन्होंने कुछ बेहतरीन फैसले दिए, उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि थी। मेरा अपना अनुभव यह रहा है कि जो न्यायाधीश विभिन्न राजनीतिक विचारों के विभिन्न वर्गों के लिए पेश होते हैं, वे अद्भुत न्यायाधीश बनते हैं।
सीजेआई ने कहा, “किसी को केवल उनके विचारों के आधार पर किसी व्यक्ति को “निष्पक्ष रूप से बुलाना” (cold calling) नहीं चाहिए। क्योंकि मेरा मानना है कि हमारे न्याय करने के पेशे में कुछ ऐसा है कि एक बार जब आप न्यायिक पद ग्रहण कर लेते हैं, जो आपको निष्पक्ष बनाता है।” उन्होंने कहा कि वकील अपने करियर में विभिन्न वर्गों के मुवक्किलों की ओर से पेश होते हैं।
चंद्रचूड़ ने कहा कि वकील अपने क्लाइंट को नहीं चुनते हैं। एक वकील के रूप में वास्तव में यह मेरा भरोसा है। जो कोई भी कानूनी सहायता की तलाश में आपके पास आता है, उसके लिए उपस्थित होना आपका कर्तव्य है, ठीक उसी तरह जैसे एक डॉक्टर को चिकित्सा सहायता प्रदान करनी होती है। चंद्रचूड़ ने कार्यक्रम में एक कानून के छात्र के सवाल का जवाब भी दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले गौरी को मद्रास हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से रोकने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा उनके नाम की सिफारिश करने से पहले एक “परामर्शी प्रक्रिया (Consultative Process)” हुई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि गौरी को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है और यदि वह शपथ के प्रति सच्ची नहीं है या शपथ के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करती हैं, तो कॉलेजियम उस पर विचार करने का हकदार है। ऐसे उदाहरण हैं जहां लोगों को स्थायी न्यायाधीश नहीं बनाया गया है।
शीर्ष अदालत द्वारा गौरी की नियुक्ति के खिलाफ याचिकाएं खारिज करने से कुछ मिनट पहले, उन्हें 7 फरवरी को मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश द्वारा अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पद की शपथ दिलाई गई थी।
जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर (15 नवम्बर 1915 – 4 दिसम्बर 2014) भारत के न्यायधीश रहे। 1970 के दशक में वो लगभग सात साल तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के सबसे बड़े न्यायालय तक आम आदमी की पहुंच को सुलभ बनाया। उन्होंने भारतीय दंड विधान में बहुत से सुधार किए तथा जेल एवं पुलिस में साहसिक परिवर्तन किए। उन्होंने विचाराधीन कैदियों के हित में ‘जेल नहीं ज़मानत ही नियम है’ का निर्णय दिया था।
उन्होंने अपने समय में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास के सबसे ऐतिहासिक निर्णय दिए थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अपील तक ठुकरा दी थी, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध की गई थी। वे केरल की ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार में कानून मंत्री रहे थे। मंत्री के रूप में उन्होंने केरल में 1950 के दशक में भूमि सुधार क़ानून लागू किए थे।