सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत रॉय ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। 75 साल की उम्र में मुंबई के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। सुब्रत रॉय की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव वाली रही, एक ऐसा सफर जिया जहां पर संघर्ष देखा, सफलता की पराकाष्ठा देखी और फिर जेल यात्रा भी करनी पड़ गई। यानी कि एक ऐसा उद्योगपति जिसने फर्श से अर्श और फिर बाद में विवादों की वजह से फिर फर्श तक का सफर तय किया।
सुब्रत रॉय की तकदीर में सफल होना लिखा था। लकीरों ने संघर्ष का अंदाजा बता दिया था, लेकिन मेहनत और कर्मों के बल पर उन्होंने उस संघर्ष से ही सफलता की सीढ़ियों को चढ़ा। बात 1978 की है जब सुब्रत रॉय कोई उद्योगपति नहीं बल्कि एक आम आदमी थे। उस दौर में उनका एक करीबी दोस्त था जिसके साथ मिलकर उन्होंने नमकीन बेचना शुरू कर दिया। स्कूटर पर दोनों दोस्त बैठकर नमकीन बेचा करते थे। कुछ सालों तक ऐसा ही चलता रहा।
उस नमकीन के धंंधे ने इतना तो बता दिया था कि सुब्रत रॉय में बिजनेस करने के सागे गुण थे। इसी वजह से बाद में अपने उसी दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सुब्रत ने अपनी जिंदगी का पहला सबसे बडा दांव चला। ये दांव था एक चिटफंड कंपनी खोलने का। उस कंपनी के खुलने के बाद सुब्रत ने अपने दोस्त के साथ मिलकर पैरा बैंकिंग की शुरुआत की। उस दौर में 100 रुपये कमाने वाला शख्स में उनकी कंपनी में 20 रुपये इनवेस्ट करवाने लगा।
ये स्कीम पूरे देश में फेमस हो गई, आम आदमी, गरीब जनता ने तो इस पर जरूरत से ज्यादा भरोसा जताया। ये कंपनी ही सहारा थी जिसने छप्पड़फाड़ बिजनेस करना शुरू कर दिया था। देखते ही देखते सहारा ने अपना विस्तार कई क्षेत्रों तक किया, फिर चाहे वो हाउसिंग डेवलपमेंट सेक्टर रहा हो या हो मीडिया, एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी। ये वो समय था जब सहारा मुनाफा कमाती रही, सुब्रत की कमाई चौगुनी हो चली।
उस सफलता की वजह से ही दो दशक के करीब तक भारतीय क्रिकेट टीम की सबसे बड़ी स्पॉन्सर भी सहारा ही रही।एक रिपोर्ट में यहां तक दावा हुआ भारतीय रेल के बाद सबसे ज्यादा नौकरियां देने में सहारा का हाथ रहा। ऐसे में सुब्रत रॉय ना सिर्फ एक सफल उद्योगपति के रूप में स्थापित हो रहे थे, बल्कि गरीब तबके के बीच में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। उस लोकप्रियता के दम पर ही सुब्रत की आलीशान जिंदगी के दर्शन भी कई लोगों को जाया करते थे। अमेरिका में आलीशान होटल लेने से लेकर बेटों की शादी 500 करोड़ से ज्यादा उड़ाने तक, हर वो काम किया गया जो उन्हें बहुत अमीर होने का तमगा देता।
लेकिन उनकी इस सफलता के बीच कुछ ऐसे विवाद आए कि उनका पतन शुरू हो गया। इसकी सबसे पहले शुरुआत साल 2009 में तब हुई सहारा ने फैसला किया कि वो अपना खुद का आईपीओ लेकर आएगा। लेकिन सेबी को संतुष्टि नहीं हो रही थी, ऐसे में मामले की जांच शुरू कर दी गई। तमाम कागज जब कंपनी समझे गए, तब कहा गया कि निवेशकों का पैसा गलत तरह से इस्तेमाल हुआ। सहारा की जो भी कंपनियां थी, वो सभी शेयर बाजार में भी लिस्टेड नहीं दिखीं। इसी वजह से तब सेबी ने सहारा पर 12000 हजार करोड़ का जुर्माना लगाया और अरबों रुपये की कंपनी अपने पतन की ओर बढ़ चली।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां पर उन्हें कोई खास राहत नहीं मिली। सर्वोच्च अदालत ने उल्टा 12000 करोड़ के जुर्माने पर 15 फीसद ब्याज लगा दिया और निवेशकों को 24000 करोड़ देने की बात हुई। जब सुब्रत रॉय ने कोर्ट के आदेश को नहीं माना, उन्हें दो साल की जेल सजा हुई और उन्हें तिहाड़ में रहना पड़ा। ये वो समय था जब सहारा का डूबना शुरू हो चुका था। दो साल तक सुब्रत को जेल में रही रहना पड़ा और बाद में कुछ शर्तों पर रिहाई दी गई।