त्रिपुरा का एक परिवार पिछले 10 सालों से दिवाली के दिन मां काली की पूजा कर रहा है। इस बार पूजा के दौरान इस परिवार ने पूजा में भाग लेने वाले 1500 से अधिक लोगों को भोजन कराया। यह पूजा कराने वाले शख्स का नाम काशेम है। काशेम के पिता मोहम्मद मोहन मियां का कहना है कि पूजा कराने के लिए उन्होंने किसी पुजारी को शामिल नहीं किया था। अपने परिवार के साथ मिलकर उन्होंने खुद ही देवी मां की पूजा की थी।
धार्मिक अलगाव और इस्लाम में आस्था रखने वाले होने के बावजूद काशेम मियां पिछले 10 सालों से दिवाली के दिन मां काली की पूजा कर रहे हैं। वे अगरतला के अमताली इलाके में रहते हैं। उन्होंने अपने घर पर रविवार रात दिवाली के शुभ अवसर पर मां काली की पूजा का आयोजन किया। इतना ही नहीं काशेम ने पूजा में भाग लेने वाले 1500 लोगों को भोजन भी कराया।
काशेम के पिता मोहम्मद मोहन मियां ने कहा “यह हमारे घर में मां काली पूजा का 10वां साल था। हम 2014 से यह पूजा कर रहे हैं। जब से मेरे बेटे काशेम को सपने में दिवाली पर मां काली की पूजा करने का आदेश मिला था। हम शुरू में काशेम की बात मानने को तैयार नहीं थे। आखिरकार हमें हिंदू देवी की पूजा करनी पड़ी क्योंकि काशेम मानसिक रूप कमजोर हो गया था। इस बात का असर उसकी सेहत पर पड़ने लगा।”
रिपोर्ट के अनुसार, काशेम साल में एक बार देवी काली की पूजा करता है। इसके अलावा वह बाकी के दिनों में अपने परिवार के साथ इस्लाम धर्म का पालन करता है। मोहन मियां ने आगे कहा कि वह सालों से अन्य मुस्लिमों की तरह दिन में पांच बार नमाज़ और अन्य सभी नियमों का पालन करता है।
पड़ोसी सुकुमार रुद्रपाल का कहना है कि मस्लिम होने की वजह से काली पूजा के कारण काशेम को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। समुदाय के लोगों ने मस्जिद में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है और उन्हें समाज से अलग कर लिया है। यहां तक कि परिवार को कई इस्लामिक समूहों से लगातार धमकियां मिल रही हैं।
समाज के लोगों ने उनसे उसी दिन से रिश्ता खत्म कर लिया है जिस दिन से उन्होंने मां काली की पूजा की। काशेम को हर साल मुस्लिम नेताओं से पूजा न करने का आदेश मिलता है लेकिन हर बार उन्होंने इससे इनकार कर दिया। यह परिवार हर साल मां काली की पूजा करता है। इसे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म को लोगों ने स्वीकार नहीं किया।