Elections: देश में इस वक्त चुनावी मिजाज अपने चरम पर है। मिजोरम में मतदान हो चुका है, जबकि छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण और मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना में अभी वोटिंग होनी है। ऐसे में इन चुनाव में बीजेपी का खास फोकस महिलाओं पर हैं, यह वजह है कि पिछले महीने ही केंद्र की मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल यानी नारी वंदन अधिनियम पास कर एक एक बड़ा संदेश देने की कोशि की है।
यह पहली बार है कि महिला अधियनियम के पास होने के बाद पहली बार देश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इस अधिनियम को बीजेपी ने इन विधानसभा चुनावों में भुनाने की खूब कोशिशें की, लेकिन इस बार चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में पार्टी किस स्थान पर है और 2018 के मुकाबले क्या बैठ रहे हैं इस बार के समीकरण आइए इस पर एक नजर डालते हैं।
हिंदी पट्टी के तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। जबकि तेलंगाना में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा बीआरएस भी चुनावी दौड़ में है, जहां अभी राज्य में बीआरएस की ही सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री केसीआर हैं। इसके अलावा मिजोरम में यह पहली बार है जब चुनावी लड़ाई दो क्षेत्रीय पार्टियों जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेपीएम) मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के बीच है।
चुनावी पांचों राज्यों की सीटों पर नजर दौड़ाएं तो मध्य प्रदेश में 230, राजस्थान में 200, तेलंगाना में 119, छत्तीसगढ़ में 90 और मिजोरम में 40 सीटों पर चुनाव होने हैं। प्रत्याशियों को देखकर यही लगता है कि बीजेपी ने टिकट वितरण में नारी वंदन विधेयक को ध्यान में नहीं रखा है।
200 सीटों वाले राजस्थान में जहां कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है। वहीं सीएम फेस उजागर न करके बीजेपी फिर नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद लगाए बैठी है। वहीं कैंडिडेट्स पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 28, बीजेपी ने 20 और आप ने 19 महिलाओं को टिकट दिया है। हालांकि राज्य में नारी वंदन विधेयक कोई बड़ा मुद्दा नहीं माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी पेपर लीक, कानून व्यवस्था, ध्रुवीकरण और भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाकर पेश कर रही है। हालांकि कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी जैसे मुद्दों से निपटने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस, शहरी रोजगार गांरटी, सरकारी कर्मचारियों के लिए वृद्धा पेंशन स्कीम की शुरुआत करने जैसी कई योजनाओं का ऐलान कर चुकी है।
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में 230 सीटों के साथ मध्यप्रदेश सबसे बड़ा राज्य है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी, लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई। हालांकि अब बीजेपी फिर सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है।
हालांकि, राज्य में शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं का काफी फोकस किया है। जिसमें उनकी ‘लाडली बहना योजना’ की काफी चर्चा है। हालांकि, शिवराज को भरोसा है कि वो महिलाओं वोटरों के जरिए फिर से सत्ता के मुकाम को हासिल करेंगे।
राज्य में जब टिकट वितरण की बात आती है तो पार्टी इसमें कांग्रेस से पीछे नजर आती है। मध्यप्रदेश में टिकटों पर एक नजर डालें तो बीजेपी ने 230 में से 30 सीटों पर महिला उम्मीदवार, कांग्रेस ने 28 और आप ने 10 सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाकर उतारा है। राज्य में बीजेपी के पास तो महिलाओं के नाम पर उमा भारती जैसे बड़े चेहरे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास कोई महिला चेहरा नहीं है।
90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत वोट बैंक आदिवासियों का है। यहां दो चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण की वोटिंग 7 नवंबर को हो चुकी है, जबकि दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को होगी। राज्य में सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की बीच है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने 15 साल से छत्तीसगढ़ की मुख्यमंत्री की सीट पर बैठे रमन सिंह को हराकर भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया था। राज्य में कांग्रेस का दावा है कि उसने महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। हालांकि जब टिकट वितरण की बात आती है तो राज्य में कांग्रेस ने 18 और बीजेपी की 15 महिलाओं को ही मैदान में उतारा। यहां भी महिलाओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने कई तरह के वादे किए हैं।
तेलंगाना में बीजेपी और कांग्रेस को राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं राज्य में टिकट वितरण पर नजर डालें तो राज्य में बीआरएस ने 117 में 8 सीटों, कांग्रेस ने 114 में से 10 और बीजेपी ने 100 में से 14 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारा है। तेलंगाना मौजूदा पार्टी कई योजनाएं महिलाओं को केंद्र में रखकर चला रही है. जिसमें रायतु बंधु, दलित बंधु, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लाई गई कल्याण लक्ष्मी योजना और मिशन भागीरथ जैसी योजनाएं शामिल हैं. वहीं कांग्रेस ने जीतने के बाद 6 ग्यारंटी योजनाएं चलाएगी, लेकिन फिर भी राज्य में टिकट वितरण में महिलाओं को कितनी बराबरी दी गई ये आंकड़े साफ बताते हैं।
40 सीटों वाले मिजोरम में फिलहाल मिजो फ्रंट (एमएनएफ) सत्ता में है। वहीं मणिपुर में लंबे समय से जातीय हिंसा जारी है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि इस बार के चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा। राज्य में हजारों की संख्या में कुकी, जोमी और हमार समुदाय के लोगों ने शरण ली हुई है। इसी बीच राज्य में मणिपुर मुद्दे को लेकर बीजेपी और एमनएनएफ के बीच दरार देखने को मिल रही है। इसके अलावा मणिपुर में जातीय हिंसा, बेरोजगारी और ढांचागत विकास की कमी बड़े मुद्दे बनकर उभरे हैं। साथ ही राज्य के लोगों को ये भी डर बना हुआ है कि मणिपुर में लगातार जारी हिंसा का असर मिजोरम में भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी के सख्त कदम न उठाने से पार्टी के खिलाफ लोगों में खासी नाराजगी देखी जा रही है।
वहीं महिलाओं पर नजर डालें तो राज्य में महिलाओं को आगे लाने की मांग हमेशा से उठती रही है, लेकिन राज्य में पितृसत्तामक सोच के कारण वो नहीं हो पा रहा। टिकटों पर नजर डालें तो राज्य में बीजेपी ने तीन, जेडपीएम ने दो और एमएनएफ ने दो महिलाओं को मैदान में उतारा है।
200 सीटों वाले राजस्थान में जहां कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है। वहीं सीएम फेस उजागर न करके बीजेपी फिर नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद लगाए बैठी है। वहीं कैंडिडेट्स पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 28, बीजेपी ने 20 और आप ने 19 महिलाओं को टिकट दिया है। हालांकि राज्य में नारी वंदन विधेयक कोई बड़ा मुद्दा नहीं माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी पेपर लीक, कानून व्यवस्था, ध्रुवीकरण और भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाकर पेश कर रही है। हालांकि कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी जैसे मुद्दों से निपटने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस, शहरी रोजगार गांरटी, सरकारी कर्मचारियों के लिए वृद्धा पेंशन स्कीम की शुरुआत करने जैसी कई योजनाओं का ऐलान कर चुकी है।
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में 230 सीटों के साथ मध्यप्रदेश सबसे बड़ा राज्य है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी, लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई। हालांकि अब बीजेपी फिर सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है।
हालांकि, राज्य में शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं का काफी फोकस किया है। जिसमें उनकी ‘लाडली बहना योजना’ की काफी चर्चा है। हालांकि, शिवराज को भरोसा है कि वो महिलाओं वोटरों के जरिए फिर से सत्ता के मुकाम को हासिल करेंगे।
राज्य में जब टिकट वितरण की बात आती है तो पार्टी इसमें कांग्रेस से पीछे नजर आती है। मध्यप्रदेश में टिकटों पर एक नजर डालें तो बीजेपी ने 230 में से 30 सीटों पर महिला उम्मीदवार, कांग्रेस ने 28 और आप ने 10 सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाकर उतारा है। राज्य में बीजेपी के पास तो महिलाओं के नाम पर उमा भारती जैसे बड़े चेहरे हैं, लेकिन कांग्रेस के पास कोई महिला चेहरा नहीं है।
90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत वोट बैंक आदिवासियों का है। यहां दो चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण की वोटिंग 7 नवंबर को हो चुकी है, जबकि दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को होगी। राज्य में सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी की बीच है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने 15 साल से छत्तीसगढ़ की मुख्यमंत्री की सीट पर बैठे रमन सिंह को हराकर भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया था। राज्य में कांग्रेस का दावा है कि उसने महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। हालांकि जब टिकट वितरण की बात आती है तो राज्य में कांग्रेस ने 18 और बीजेपी की 15 महिलाओं को ही मैदान में उतारा। यहां भी महिलाओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने कई तरह के वादे किए हैं।
तेलंगाना में बीजेपी और कांग्रेस को राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं राज्य में टिकट वितरण पर नजर डालें तो राज्य में बीआरएस ने 117 में 8 सीटों, कांग्रेस ने 114 में से 10 और बीजेपी ने 100 में से 14 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारा है। तेलंगाना मौजूदा पार्टी कई योजनाएं महिलाओं को केंद्र में रखकर चला रही है. जिसमें रायतु बंधु, दलित बंधु, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लाई गई कल्याण लक्ष्मी योजना और मिशन भागीरथ जैसी योजनाएं शामिल हैं. वहीं कांग्रेस ने जीतने के बाद 6 ग्यारंटी योजनाएं चलाएगी, लेकिन फिर भी राज्य में टिकट वितरण में महिलाओं को कितनी बराबरी दी गई ये आंकड़े साफ बताते हैं।
40 सीटों वाले मिजोरम में फिलहाल मिजो फ्रंट (एमएनएफ) सत्ता में है। वहीं मणिपुर में लंबे समय से जातीय हिंसा जारी है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि इस बार के चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा। राज्य में हजारों की संख्या में कुकी, जोमी और हमार समुदाय के लोगों ने शरण ली हुई है। इसी बीच राज्य में मणिपुर मुद्दे को लेकर बीजेपी और एमनएनएफ के बीच दरार देखने को मिल रही है। इसके अलावा मणिपुर में जातीय हिंसा, बेरोजगारी और ढांचागत विकास की कमी बड़े मुद्दे बनकर उभरे हैं। साथ ही राज्य के लोगों को ये भी डर बना हुआ है कि मणिपुर में लगातार जारी हिंसा का असर मिजोरम में भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी के सख्त कदम न उठाने से पार्टी के खिलाफ लोगों में खासी नाराजगी देखी जा रही है।
वहीं महिलाओं पर नजर डालें तो राज्य में महिलाओं को आगे लाने की मांग हमेशा से उठती रही है, लेकिन राज्य में पितृसत्तामक सोच के कारण वो नहीं हो पा रहा। टिकटों पर नजर डालें तो राज्य में बीजेपी ने तीन, जेडपीएम ने दो और एमएनएफ ने दो महिलाओं को मैदान में उतारा है।