बिहार विधानसभा में गुरुवार को आरक्षण संशोधन बिल पास कर दिया गया। दो दिन पहले ही नीतीश कैबिनेट से इसे मंजूरी मिली थी। आरक्षण में 9 संशोधन हैं। जाति गणना के सामाजिकऔर आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट जारी करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 फीसदी तक करने का प्रस्ताव दिया था। इसे कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है।
बिहार की नीतीश सरकार ने आज विधानसभा में आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया। हालांकि, इस दौरान सीएम नीतीश कुमार सदन में मौजूद नहीं थे। इस बिल के मुताबिक, बिहार में अब पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को 65% आरक्षण मिलने का प्रावधान है। फिलहाल बिहार में इन वर्गों को 50% आरक्षण मिलता है। जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश करने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में 65% आरक्षण करने का ऐलान किया था।
बिल पास होने के बाद बिहार में अब अनारक्षित कोटा मात्र 25% बच गया है। शीतकालीन सत्र के चौथे दिन आरक्षण संशोधन विधेयक पारित हो गया। राज्य में 75 फीसदी रिजर्वेशन लागू करने का रास्ता साफ हो गया। सदन में किसी भी सदस्य ने इसका विरोध नहीं किया। भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने भी इसका समर्थन किया।
राज्य में ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण में मौजूदा 50 फीसदी की लिमिट को बढ़ाकर 65 फीसदी किया जाएगा। इसके अलावा ईडब्लूएस का 10 फीसदी आरक्षण बना रहेगा। यह संशोधन राज्य सरकार के नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए है। इसके बाद अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण बीस और दो प्रतिशत होगा। वर्तमान में उन्हें सोलह और एक प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा हैं। वहीं ओबीसी और ईबीसी को अब अठारह और पच्चीस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया हैं। उन्हें वर्तमान में बारह और अठारह प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है।
नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि भाजपा इस विधेयक का समर्थन करती है। भाजपा की मांग है कि शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को इस आरक्षण बिल में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इसका लाभ भी एक खास वर्ग और जाति के लोग ले लें।