दिल्ली इस समय भयंकर धुंए की जद में फंसी हुई है, सांस लेना तो दूर, लोग घर से बाहर नहीं निकल सकते हैं। हर साल नवंबर आते ही राजधानी में प्रदूषण वाले ये दिन देखने पड़ जाते हैं। कोरोना काल को छोड़ दिया जाए तो दिल्ली ने हर साल इस धुएं को अपने अंदर लिया है। सरकार दावे बड़े करती है, प्रदूषण बढ़ने के बाद कुछ फैसले भी करती है, लेकिन वो हमेशा अस्थाई रहते हैं, सिर्फ कुछ समय तक के लिए ही स्थिति को सुधार सकते हैं।
अब देश में कई ऐसी कमेटियां हैं जिनकी रिपोर्ट इस समय वायरल हो रही हैं, कहा जा रहा है कि उनमें दिए गए सुझावों को अगर मान लिया जाए तो दिल्ली फिर कभी धुंआ-धुंआ नहीं होगी। लेकिन किसी ने सही कहा है कि ऐसे समाधान या सॉल्यूशन ज्यादा कारगर साबित होते हैं जिनका इस्तेमाल पहले भी किया गया हो, जिनका असर जमीन पर देखा जा चुका है। अब प्रदूषण के मामले में भी दुनिया के सामने दो देश ऐसे खड़े हैं जिन्होंने ना सिर्फ इस प्रदूषण के खिलाफ सफल जंग लड़ी है, बल्कि कहना चाहिए काफी हद तक उसे जीता भी है।
एक देश चीन है तो दूसरा महाशक्ति अमेरिका। इन दोनों ही देशों ने अपने दौर में भयंकर प्रदूषण देखा है, रिकॉर्ड AQI ने वहां पर हालात को बद से बदतर बनाया है। लेकिन ये सब पुरानी बाते हैं, अब उस प्रदूषण को इन दोनों ही देशों ने पीछे छोड़ दिया है। 100 प्रतिशत सुधार तो कही नहीं हो सकता, लेकिन इतना परिवर्तन जरूर दिख रहा है कि इन दोनों ही देशों में लोगों की जीने का दर बढ़ गया है। कई रिपोर्ट्स इस बात की पुष्टि करती हैं, बताती हैं कि अगर तय रणनीति के तहत काम किया जाए तो प्रदूषण को भी हराया जा सकता है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चीन के मॉडल की चर्चा की जाती है जिसने अपने सबसे प्रदूषित शहर को भी अब टॉप 10 से बाहर कर दिया है।
अब चीन ने प्रदूषण को हराया कैसे, ये समझने के लिए वहां पर ये समस्या कितनी गंभीर और विस्फोटक थी, ये समझना ज्यादा जरूरी हो जाता है। साल 2007 के बाद से चीन के लोग प्रदूषण को लेकर खुद तो जागरूक बने ही, उनकी तरफ से सरकार पर भी दबाव बढ़ाना शुरू किया गया। वो एक ऐसा दौर था जब चीन में लोगों की जीने की दर पांच साल तक कम हो चुकी थी। इसका कारण कोई बीमारी या वायरस नहीं था, बल्कि बढ़ते प्रदूषण ने ही लोगों की सेहत पर इतना खराब प्रभाव डालना शुरू कर दिया था।
इस समय दिल्ली का PM2.5 देखकर अगर लोग चिंता में आ जाते हैं, तो ये याद रखना चाहिए चीन ने इससे ज्यादा स्तर पर PM2.5 देख रहा है। 2013 में बीजिंग में PM2.5 WHO के तय मानकों से 17 प्रतिशत ज्यादा दर्ज किया गया था। इसी तरह शंघाई में वो 9.1 फीसदी ज्यादा चल रहा था। लोगों की उम्र को कम करने के लिए ये प्रदूषण तब काफी था। बड़ी बात ये थी कि उस समय चीन की सरकार भी प्रदूषण को लेकर बुहत ज्यादा गंभीर नहीं थी, जब भी सवाल उठते थे, उसे फॉग बताकर टरका दिया जाता था। लेकिन जब लोग जागरूक हुए और उसके ऊपर देश छोड़कर जाने की प्रथा शुरू हुई, पहली बार चीनी सरकार की आंख खुली और वो प्रदूषण को लेकर कुछ गंभीर दिखी।
इसके बाद ही चीन ने एक पांच साल का एक्शन प्लान तैयार किया, यानी कि 2013 से 2018 तक के लिए। उस एक्शन प्लान के तहत कई कदम उठाने का फैसला हुआ जिससे आने वाले सालों में प्रदूषण में भारी कमी देखने को मिली। चीन ने जो कदम उठाए वो इस प्रकार थे-
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उस समय तर्क दिया गया कि इस योजना के दम पर सभी अमेरिकी नागरिक को साफ हवा मिलेगी, साफ पानी मिलेगा और सभी सुरक्षित रहेंगे। अब उस एक योजना के फायदे आंकड़ों को देख साफ समझे जा सकते हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पहले 20 साल में अमेरिका में दो लाख के करीब बच्चों की समय से पहले हो रही मौतों को रोक दिया था। तर्क दिया गया कि इस योजना पर अगर एक डॉलर भी खर्च किया जा रहा था, तो रिटर्न में 40 डॉलर मिलता था।
यहां ये समझना भी जरूरी है कि दिल्ली की तरह 1970 तक अमेरिका में भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण वाहन से होने वाला धुंआ था। लेकिन अब जब क्लीन एयर एक्ट के 50 साल से ज्यादा हो चुके हैं, अमेरिका में चल रहीं गाड़ियां 99 फीसदी ईको फ्रेंडली हैं। इसी तरह गैसोलीन पर बैन लगाकर भी साफ हवा के लिए अमेरिका ने कई साल पहले ही रास्ता खोल दिया था। इसी वजह से लैड जो काफी खतरनाक माना जाता है, उसकी हवा में उपस्थिति ना के बराबर हो चुकी है।
अब चीन और अमेरिका ने साफ कर दिया है कि अगर एक रोडमैप के हिसाब से चला जाए, अगर तय रणनीति के तहत काम हो, तो कुछ सालों में तो नहीं लेकिन लंबे समय में उसके परिणाम अच्छे ही निकलते हैं। ये नहीं भूलना चाहिए कि चीन को प्रदूषण को काफी हद तक हराने में 15 साल लग गए, इसी तरह अमेरिका ने भी कई दशक बाद खुद को बेहतर स्थिति में लाया है। ऐसे में दिल्ली भी इस धुंए से मुक्त हो सकती है, लेकिन इसके लिए सिर्फ पटाखों पर बैन या ऑड ईवन से काम नहीं चलने वाला है। ना ही पाबंदियां इसका रास्ता बन सकती हैं, लंबे समय के लिए कई ऐसी योजनाओं पर काम करना पड़ेगा जिससे हवा में जा रहा जहर कुछ कम हो सके। फिर चाहे अधिकारियों के खिलाफ सख्ती दिखाई जाए या फिर सड़क पर चल रहे वाहनों की चेकिंग बढ़ाई जाए। अगर समय रहते ये सब करना शुरू कर दिया गया तो आने वाले सालों में चीन-अमेरिका के साथ भारत का जिक्र भी जरूर किया जाएगा।