जयंतीलाल भंडारी
इस समय देश में ‘गिग’ यानी अनौपचारिक श्रम को लेकर दो महत्त्वपूर्ण तथ्य उभर रहे हैं। एक तो इसमें रोजगार के मौके तेजी से बढ़ रहे हैं और दूसरे, इसमें सामाजिक सुरक्षा की भारी कमी दिखाई दे रही है। हालांकि देश में गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 अधिनियमित हो चुकी है, लेकिन अभी तक प्रभावी नहीं है।
यह संहिता सरकार को जीवन और विकलांगता सुरक्षा, दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा और क्रेच लाभ प्रदान करने के लिए गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं तैयार करने में सक्षम बनाती है। हालांकि गिग श्रमिकों को आमतौर पर कंपनियां अनुबंध के आधार पर काम पर रखती हैं, लेकिन उन्हें कर्मचारी नहीं माना जाता है। उन्हें वैसे लाभ नहीं मिलते, जो एक नियमित कर्मचारी को मिलते हैं।
उनके लिए श्रम कल्याण परिलब्धियों जैसे पेंशन, ग्रेच्युटी आदि का प्रावधान नहीं हैं। गिग श्रमिक की वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए उनके पास कोई उचित शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध नहीं है। विभिन्न राज्यों द्वारा गिग सामाजिक सुरक्षा संहिता के संबंध में नियम बनाना अभी शेष है और बोर्ड की स्थापना के संबंध में भी अधिक कुछ नहीं किया गया है।
गिग अर्थव्यवस्था का मतलब है, अनुबंध आधारित या अस्थायी रोजगार वाली अर्थव्यवस्था। गिग अर्थव्यवस्था के तहत श्रमिक परियोजना-दर-परियोजना आधार पर अपनी सेवाएं देते हैं। व्यापक तौर पर कोविड-19 के बाद डिजिटलीकरण के प्रसार ने गिग अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है।
जहां शहरी क्षेत्रों में गिग श्रमिकों को अभी तक निर्माण, विनिर्माण, सामान पहुंचाने जैसे श्रम आधारित और कम योग्यता वाले कार्यों से जोड़ कर देखा जाता रहा है, वहीं अब इसके मौके ‘वाइट कालर जाब’ यानी ऐसे कामों में भी बढ़ रहे हैं, जहां उच्च स्तर के कौशल और शिक्षा की जरूरत होती है। कोविड-19 के बाद बड़ी संख्या में देश और दुनिया की कारोबार गतिविधियां आनलाइन हो गई हैं और घर से काम करने की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर मिली स्वीकार्यता से ‘आउटसोर्सिंग’ को बढ़ावा मिला है।
उच्च स्तर के कौशल और शैक्षणिक योग्यता के साथ काम के ऐसे मौके ई-कामर्स, फिनटेक, हेल्थटेक, लाजिस्टिक्स, आतिथ्य, बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे हैं। गिग अर्थव्यवस्था के तहत आइटी, भर्ती, स्टाफिंग, शिक्षा और एडटेक जैसे क्षेत्रों में भी मौके बढ़ रहे हैं।
खास बात यह है कि गिग अर्थव्यवस्था के तहत अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। महिलाओं की भागीदारी सभी क्षेत्रों में दिख रही है। कारोबार हो या वित्त-प्रबंधन, महिलाएं किसी में पीछे नहीं हैं। इसके साथ ही महिलाएं इस समय स्वतंत्र रूप से काम यानी ‘फ्रीलांसिंग’ में सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही हैं। एक रपट के मुताबिक, अप्रैल से सितंबर 2023 के बीच गिग अर्थव्यवस्था में अस्सी हजार लोग काम कर रहे थे। इनमें तीस फीसद महिलाएं थीं। दरअसल, इस दौरान ‘फ्रीलांसिंग’ में महिलाओं की हिस्सेदारी 158 फीसद बढ़ी है।
निश्चित रूप से देश में शहरी रोजगार के मद्देनजर गिग श्रमिकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसका अनुमान अक्तूबर 2023 में प्रकाशित कुछ भर्ती एजंसियों की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इनके मुताबिक जहां पिछले वर्ष सितंबर से दिसंबर के बीच त्योहारी सीजन में करीब चार लाख गिग नौकरियां सृजित हुई थीं, वहीं इस साल सितंबर से दिसंबर के बीच ऐसी नौकरियों की संख्या सात लाख तक पहुंचने की उम्मीद है। खासकर मुंबई, दिल्ली, पुणे, बंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर और चेन्नई सहित देश के छोटे-बड़े शहरों में प्रत्यक्ष और परोक्ष गिग नौकरियां निर्मित होती दिखाई देंगी।
गौरतलब है कि ‘टीमलीज सर्विस’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल त्योहारी मौसम में जबरदस्त बिक्री का असर रोजगार क्षेत्र पर भी दिख रहा है। सभी ई-कामर्स कंपनियों की इस साल त्योहारी मौसम के लिए जबरदस्त तैयारी को देखते हुए टीमलीज ने गिग श्रमिकों की नौकरियों में 25 फीसद की बढ़ोतरी की संभावना जताई है।
‘टीमलीज सर्विसेज’ की रिपोर्ट के मुताबिक ई-कामर्स, रिटेल, लाजिस्टिक और एफएमसीजी जैसी कंपनियां बंगलुरु में गिग श्रमिकों की मांग में चालीस फीसद, चेन्नई में तीस फीसद तो हैदराबाद में भी तीस फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है। टीमलीज के मुताबिक, श्रेणी-2 और श्रेणी-3 शहरों में नई नौकरियां निकलने की अधिक संभावना है। जिन जगहों पर ई-कामर्स कंपनियों के गोदाम हैं, वहां भी गिग श्रमिकों की मांग में भारी बढ़ोतरी दिख रही है।
इस संबंध में नीति आयोग के आंकड़े भी महत्त्वपूर्ण हैं। उसके मुताबिक देश में करीब 44 करोड़ लोगों का श्रमबल है। इसमें 77 लाख गिग कर्मी हैं। ऐसे कर्मियों की संख्या तेजी से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। इसका कारण है कि गिग कर्मियों की व्यवस्था फिलहाल केवल शहरी क्षेत्रों में है और मुख्य रूप से ये सेवा क्षेत्र में सक्रिय हैं। इनका दायरा बढ़ेगा तो गिग कर्मियों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी।
नीति आयोग के आकलन के अनुसार भारत में गिग श्रमिकों की संख्या 2030 तक बढ़कर 2.3 करोड़ के लगभग हो जाएगी। कंपनियां बड़ी संख्या में गिग श्रमिकों के लिए रोजगार के मौके बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि इन दिनों देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और रोजगार से संबंधित विषयों पर प्रकाशित हो रही विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि देश में गिग अर्थव्यवस्था के कारण विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में तेजी से कमी आ रही है और रोजगार के नए मौके बढ़ रहे हैं।
मगर गिग श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा, खासकर भविष्य निधि और पेंशन, बीमा संबंधी सुरक्षा और लाभों के बारे में सोचना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में नीति आयोग ने ‘इंडियाज बूमिंग गिग ऐंड प्लेटफार्म इकोनामी’ शीर्षक से एक रपट जारी की है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ गिग श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की गई, जिसमें बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं शामिल हैं।
अब देश में गिग श्रमिकों के लिए ऐसी योजनाएं और नीतियां बीमा कंपनियों के साथ साझेदारी में आगे बढ़ानी होंगी, जो सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत परिकल्पित हों। दुनिया के कई देशों में गिग श्रमिकों को ‘श्रमिकों’ के रूप में वर्गीकृत करके जो माडल लागू किया गया है, उस पर ध्यान देना होगा। देश में गिग श्रमिकों को केवल कुछ ही कंपनियां काम की जगह पर दुर्घटना बीमा प्रदान करती हैं, इसे सभी नियोक्ताओं द्वारा प्रदान किया जा सकता है। कामगारों को संकटपूर्ण समय या सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने में मदद करना भी कंपनियों को गंभीरता से लेना होगा।
सरकार द्वारा शिक्षा, वित्तीय सलाह, विधिक कार्य, चिकित्सा या ग्राहक प्रबंधन क्षेत्रों जैसे उच्च कौशल गिग श्रमिकों के लिए ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी, जिससे भारतीय श्रमिकों के लिए वैश्विक बाजारों तक पहुंच सुगम बनाई जा सके। इसके साथ ही, सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की जिम्मेदारी साझा करने के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र स्थापित करने के लिए सरकारों, गिग मंचों और श्रम संगठनों के बीच सहयोग की भी आवश्यकता होगी। निश्चित रूप से देश में अगर सामाजिक सुरक्षा की छतरी प्रदान की जाए, तो गिग श्रमिकों के रूप में काम कर रही देश की नई पीढ़ी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ सकेगी और देश इनके अधिकतम योगदान से तेज विकास की डगर पर आगे बढ़ेगा।