CASTE CENSUS PITCH: पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों की जाति जनगणना की मांग प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। इस मुद्दे की पृष्ठभूमि में आरएसएस एक “सामाजिक समरसता” (सामाजिक सद्भाव) का कार्यक्रम लेकर आई है। जिसको आरएसएस के एक प्रोजेक्ट के तौर पर देखा जा रहा है। आरएसएस की इस योजना के तहत उसके कार्यकर्ता गांव में घूमकर हिंदू एकता की भावना को बढ़ावा देना का काम करेंगे। इस योजना के हिस्से के रूप में आरएसएस कार्यकर्ता जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता (छूआछूत) के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए गांवों में लोगों, स्कूलों और मंदिरों तक पहुंचेंगे।
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने मंगलवार को कहा कि इस मुद्दे पर संघ की दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक के दौरान चर्चा की गई। इस बैठक को गुजरात के भुज में आयोजति किया गया था। बैठक में आरएसएस द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर भी मंत्रणा हुई। बैठक में आरएसएस के सभी शीर्ष नेताओं के अलावा इसके सभी 45 प्रांतों (क्षेत्रों) और अन्य सहयोगियों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।
होसबाले ने आरएसएस के समापन दिवस पर मीडिया से कहा, ‘बैठक में हमने पांच सूत्री कार्यक्रम पर चर्चा की है, जिसे संघ के शताब्दी समारोह के मद्देनजर पूरा करने की जरूरत है। इनमें सामाजिक समानता शामिल है, यानी अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को दूर करना… हम सब एक साथ हैं और एक समाज हैं… हमें यह संदेश लेना होगा और जन्म के आधार पर भेदभाव को खत्म करना होगा।’
लोगों से जुड़ने के अलावा, होसाबले ने कहा, “हम मंदिरों, स्कूलों और अन्य सामाजिक संस्थानों में भी जा रहे हैं ताकि उनसे चर्चा की जा सके कि हम उनके अपने क्षेत्र में सामाजिक समरसता पर कैसे काम कर सकते हैं।”
आरएसएस के सूत्रों ने कहा कि पिछले एक साल में संघ ने अलग-अलग कुओं और श्मशान घाटों और मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर प्रतिबंध के संदर्भ में जातिगत भेदभाव की व्यापकता का पता लगाने के लिए 13,000 से अधिक गांवों के मामलों की स्टडी की है। सूत्रों ने कहा कि सामाजिक समरसता परियोजना की जिम्मेदारी संघ की शाखाओं को सौंपी गई है। आरएसएस के अनुसार, वर्तमान में देश में उसकी 95,528 शाखाएं चल रही हैं, जिनमें 37 लाख हर रोज भाग लेते हैं।
इस साल मार्च में अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की बैठक के दौरान संघ ने स्वयं के विचार को बढ़ावा देने वाला एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भारत की ‘सही नैरेटिव’ तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया और सामाजिक मेलजोल पर जोर दिया गया।
एक आरएसएस नेता ने कहा, ‘हालांकि यह स्पष्ट है कि लोग जाति के आधार पर ऊपर उठकर नरेंद्र मोदी को वोट दे रहे हैं, लेकिन ऐसी ताकतें हैं जो सोचती हैं कि उन्हें हराने का एकमात्र तरीका हिंदू समाज को पहचान के आधार पर विभाजित करना है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि आरएसएस अधिक ताकत के साथ एक राष्ट्रीय पहचान की भावना पैदा करने के लिए अपना जमीनी स्तर पर काम जारी रखे।’
80 के दशक के उत्तरार्ध में सामाजिक न्याय दलों के उद्भव के बाद से लगभग उसी समय जब राम मंदिर आंदोलन ने आकार लेना शुरू किया था, मंडल और कमंडल की विचारधाराओं के बीच संघर्ष हुआ है, जिसके बाद से राष्ट्रीय राजनीति के विभिन्न चरणों में एक ने दूसरे को पीछे छोड़ दिया। विपक्षी खेमे की ओर से राष्ट्रीय जाति जनगणना की बढ़ती मांग से हिंदी पट्टी में फिर से लड़ाई शुरू होने का खतरा है और इसलिए इस मुद्दे पर संघ का संज्ञान महत्वपूर्ण है।
आरएसएस की वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 में भी सामाजिक भेद-भाव पैदा करने के प्रयासों को रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत की एकता और प्रगति की विरोधी ताकतें नये-नये षडयंत्र रचती रहती हैं और गलत बयानबाजी देकर या भ्रम फैलाकर समाज को तोड़ने की कोशिश करना…उनका एजेंडा बन गया है। जिसके कारण समाज की किसी भी स्थिति या घटना को बहाना बनाकर भाषा, जाति या समूह में कलह भड़काना और अग्निपथ जैसी किसी भी सरकारी योजना के खिलाफ युवाओं को भड़काना, विभिन्न स्थानों पर आतंक, विद्वेष, अराजकता, हिंसा की घृणित घटनाएं हुईं।’
हाल के महीनों में संघ के शीर्ष नेताओं ने लगातार जाति के विषय को उठाया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सितंबर में कहा था कि लोगों को 2,000 वर्षों के जातिगत भेदभाव से निपटने के लिए 200 और वर्षों के आरक्षण के लिए तैयार रहना चाहिए। तब से भागवत अपने लगभग सभी भाषणों में यही दावा करते रहे हैं। उन्होंने कहा था कि भारत की कहानी “अनेकता में एकता” नहीं है, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र के बारे में है जिसकी “एकता में विविधता है”, जिससे यह रेखांकित होता है कि “हिंदू समाज की एकता निर्विवाद है”।
सितंबर में पुणे में आयोजित आरएसएस समन्वय बैठक में, “सामाजिक समरसता” पर संघ से जुड़े सभी निकायों के कार्यों के समन्वय का मुद्दा चर्चा के लिए अपने एजेंडे में शीर्ष पर था।
भारत हिंदू राष्ट्र कब बनेगा? इस सवाल के जवाब में होसबले ने कहा, ‘भारत पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र है और अयोध्या में राम मंदिर उस चेतना की अभिव्यक्ति है। कहा कि हम पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र हैं और हम भविष्य में भी एक हिंदू राष्ट्र बने रहेंगे।’ उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार (आरएसएस संस्थापक) ने कहा था कि जब तक इस भूमि पर एक भी व्यक्ति हिंदू है, यह हिंदू राष्ट्र रहेगा। हालाँकि, होसबले ने स्पष्ट किया कि यह संविधान द्वारा परिभाषित भारतीय राज्य के संदर्भ में नहीं था। उन्होंने कहा कि संविधान द्वारा परिभाषित राज्य प्रणाली अलग है, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हम एक हिंदू राष्ट्र हैं।’ उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि जब अंग्रेज यहां थे, तो यह ब्रिटिश राज था, लेकिन हिंदू राष्ट्र था।’
हालांकि, आरएसएस नेता ने सुझाव दिया कि केवल हिंदू राष्ट्र का अस्तित्व ही पर्याप्त नहीं है और इसके अस्तित्व को भी महसूस किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान की अभिव्यक्ति है। यह (विचार) इस देश में हमेशा से था। उन्होंने कहा कि सोमनाथ मंदिर यहीं बनना चाहिए और डॉ. राजेंद्र प्रसाद यहां आए…क्यों? उस राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाना है। जय सोमनाथ एक राष्ट्रीय नारा बन गया।
होसबले ने इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदुत्व और कुछ नहीं, बल्कि राष्ट्र, समाज और संस्कृति के लिए कुछ करने के लिए प्रतिबद्ध होने का विचार है। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हर मंडल में पांच से छह लोग हों, जो इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हों। संघ जो कार्य कर रहा है वह मात्र हिन्दू राष्ट्र की चेतना जागृत करना है। हमें हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की जरूरत नहीं है। हम एक हिंदू राष्ट्र हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि आरएसएस का “हिंदू” का विचार समावेशी था। उन्होंने कहा, ‘ऐसे हिंदू भी हैं जो मंदिर नहीं जाते। कुछ लोग किसी विशिष्ट मंदिर में जाते हैं। फिर ऐसे लोग भी हैं जो गुरुद्वारों सहित सभी मंदिरों में जाते हैं। हमारे अनुसार, आप मंदिर जाएं या न जाएं, आप हिंदू बने रह सकते हैं। हमारा एकमात्र अनुरोध यह है कि यदि आप किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं, तो वहां की परंपरा का पालन करें।’
होसबले ने कहा कि आरएसएस एक “राष्ट्रीय आंदोलन” था जिसने कई मुद्दों को राष्ट्रीय विमर्श में लाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान और राष्ट्रीय अस्मिता को लेकर एक आंदोलन चल रहा है। यह अयोध्या में राम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण है। यह काम पूरा हो रहा है और 22 जनवरी (2024) को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम है।’
होसबले के मुताबिक, मंदिर का निर्माण कर रहे रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए पीएम मोदी और भागवत को आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा कि देशभर के आरएसएस कार्यकर्ता अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे हैं। अब उसका ऐतिहासिक क्षण आ गया है। उन्होंने कहा कि हमने ट्रस्ट से कहा है कि 1 जनवरी से 15 जनवरी के बीच, हम एक राष्ट्रव्यापी संपर्क अभियान चलाएंगे। मकर संक्रांति के दिन से हम मंदिर के गर्भगृह (गर्भगृह) में पूजा करेंगे। इन प्रार्थनाओं के आखिरी दिन 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का कार्य पूरा किया जाएगा। देश भर से संत वहां पहुंचेंगे।
होसबले ने कहा, चूंकि सभी आरएसएस कार्यकर्ता 22 जनवरी के समारोह में शामिल नहीं हो सकते हैं, इसलिए उन्हें देश भर में घर-घर जाने और लोगों को भगवान राम और मंदिर की एक तस्वीर देने और उन्हें बाद की किसी तारीख में इसे देखने के लिए आमंत्रित करने का काम सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि विचार एक व्यापक राष्ट्रव्यापी सार्वजनिक पहुंच बनाने का है। हमने बैठक में इस कार्यक्रम के विवरण पर चर्चा की है।’