पोकरण का नाम लेते ही नाम लेते ही दिमाग में परमाणु परीक्षण की तस्वीर उभर आती है। राजस्थान के यह दूर दराज का इलाका परमाणु परीक्षण की बरसी के अलावा सिर्फ चुनावों में ही सुर्खियों में आता है। राजस्थान की पोकरण विधानसभा सीट पर साल 2018 में हुए चुनाव में हार जीत का फैसला सिर्फ 872 वोट के अंतर से हुआ था। यहां इस बार मुकाबला एक हिंदू महंत और मुस्लिम धर्म गुरु के बेटे के बीच है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक सालेह मोहम्मद को उम्मीद है कि लोग उनके विकास कार्यों के लिए वोट करेंगे, न कि धार्मिक आधार पर।
सालेह मोहम्मद ने PTI से बातचीत कहा, “इस बार चुनाव विकास के बारे में है। कांग्रेस सरकार ने ऐतिहासिक विकास कार्य किये हैं और धर्म कोई मुद्दा नहीं है। चुनाव में हिंदू-मुस्लिम कोई कारक नहीं है।” कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके या सरकार के खिलाफ कोई ‘सत्ता विरोधी लहर’ नहीं है। राज्य की अशोक गहलोत सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सालेह ने कहा कि BJP के बड़े-बड़े नेता प्रचार के लिए आएंगे तो धर्म के आधार पर भाषण देंगे, लेकिन इसका अब लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इस सीट से BJP उम्मीदवार और महंत स्वामी प्रताप पुरी जोर देकर कहते हैं कि विकास कार्यों पर कांग्रेस पार्टी के दावे मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले की गई घोषणाएं हैं। उन्होंने PTI से कहा, “मैं पिछले पांच वर्षों से लोगों से जुड़ा हुआ हूं। कांग्रेस अपने काम की बात तो कर रही है लेकिन उनमें से ज्यादातर सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित हैं और चुनाव से ठीक पहले की गई घोषणाएं केवल लोगों को लुभाने का प्रयास भर है।”
BJP नेता ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए “मामूली” काम की तुलना केंद्र के काम से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, “कांग्रेस सरकार काम तो शुरू करती है लेकिन वह काम पूरा होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।”
पुरी और सालेह मोहम्मद दोनों का अपने अपने समाज पर प्रभाव है। पुरी राजपूत समाज के नेता और बाड़मेर जिले में तारातारा मठ के धार्मिक प्रमुख यानी महंत हैं जबकि सालेह मोहम्मद के भारत में और सीमा पार पाकिस्तान में बड़ी संख्या में समर्थक हैं। अपने पिता गाजी फकीर की मृत्यु के बाद वह अब पाकिस्तान में सिंधी मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख पीर पगारो के प्रतिनिधि हैं।
राजस्थान के सीमावर्ती जिले जैसलमेर में पोकरण निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 2.22 लाख मतदाता हैं जिनमें से अधिकांश मुस्लिम या राजपूत हैं। यहां करीब 60,000 मुस्लिम, 40,000 राजपूत, 35,000 अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, 10,000 जाट, 6,000 बिश्नोई, 5,000 माली और 3,000 ब्राह्मण मतदाता हैं। वैसे तो दोनों नेता अपने धार्मिक वोट बैंकों पर भरोसा कर रहे है जबकि अन्य समुदायों का समर्थन उम्मीदवारों का भाग्य तय कर सकता है। स्थानीय मुद्दे और पिछले पांच वर्षों में लोगों के साथ नेताओं के व्यक्तिगत संबंध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पोकरण के स्थानीय निवासी जाकिर खान ने कहा, “निस्संदेह, निर्वाचन क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में विकास कार्य हुए हैं। लेकिन ऐसे भी उदाहरण रहे जब विधायक ने अपने समुदाय के लोगों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरों के लिए काम किया।” एक अन्य स्थानीय निवासी अकबर खान ने कहा, “लोग धार्मिक आधार पर वोट करते हैं लेकिन हमेशा धर्म पर वोट नहीं दिए जाते है। जब मतदान की बात आती है तो समाज के मुद्दे और लोगों से जुड़ाव भी मायने रखता है।”
चाय विक्रेता मनोहर सिंह ने कहा कि यह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच स्पष्ट लड़ाई है। उन्होंने कहा, “हिंदू BJP को वोट देंगे जबकि मुस्लिम कांग्रेस को वोट देंगे। अन्य समुदाय परिणाम तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।’’ एक निवासी गीतू देवी ने कहा ,”हम उस उम्मीदवार को वोट देंगे जिसका लोगों से बेहतर जुड़ाव होगा।” उन्होंने गहलोत सरकार के कार्यकाल को “ऐतिहासिक” बताया और इसकी कल्याणकारी योजनाओं की सराहना की।
स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक मनोहर जोशी ने कहा कि क्षेत्र में चुनाव आमतौर पर सिर्फ उम्मीदवारों के प्रदर्शन के बारे में नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि पोकरण को कॉलेज मिले हैं, गांवों के लिए बेहतर सड़क संपर्क, एक बेहतर जिला अस्पताल, एक परिवहन पंजीकरण कार्यालय और अन्य चीजें मिली हैं। उन्होंने कहा, “यहां लोग अपने धर्म के आधार पर वोट देते हैं और बाकी सब चीजें पीछे रह जाती हैं।”
उन्होंने कहा कि हालांकि, पिछले वर्षों के विपरीत इस बार कांग्रेस सरकार के खिलाफ कोई ‘सत्ता विरोधी लहर’ नहीं है, लेकिन चूंकि दोनों उम्मीदवार धार्मिक नेता हैं, इसलिए वोट उसी आधार पर विभाजित होंगे।
पोकरण में पिछले तीन चुनावों में से दो में कांटे की टक्कर रही है। 2008 में सालेह मोहम्मद ने भाजपा के शैतान सिंह को 339 वोटों से हराया था। परिसीमन प्रक्रिया के बाद यह सीट 2008 में अस्तित्व में आई। वहीं 2013 के चुनाव में शैतान सिंह ने सालेह मोहम्मद को 34,444 के भारी अंतर से हराया। 2018 में जब भाजपा ने पुरी को मैदान में उतारा तो वह मोहम्मद से महज 872 वोटों से हार गए। (इनपुट- भाषा)