अमित बैजनाथ गर्ग
वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। यह खतरा दुनिया भर में असमान रूप से फैला हुआ है। हालांकि वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर इसका अधिकांश प्रभाव दुनिया के छह देशों- बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में सबसे ज्यादा है। वर्तमान में जो देश वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं, उनके पास उन मूलभूत उपकरणों और संसाधनों का अभाव है, जिनसे वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। शिकागो विश्वविद्यालय की ताजा रपट के अनुसार, 2021 में जैसे-जैसे वैश्विक प्रदूषण बढ़ा, वैसे-वैसे मानव स्वास्थ्य पर इसका बोझ भी बढ़ता चला गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के नए दिशा-निर्देश कहते हैं कि वायु प्रदूषण को स्थायी रूप से कम करके प्रति व्यक्ति जीवन प्रत्याशा में तेईस वर्ष तक की वृद्धि की जा सकती है। इससे दुनिया में संयुक्त रूप से करीब 17.8 अरब लोगों का जीवन प्रति वर्ष बचाया जा सकता है।
दरअसल, कई देशों में बुनियादी ढांचे का अभाव है। एशिया और अफ्रीका महाद्वीप इसके सबसे प्रभावी उदाहरण हैं। यहां प्रदूषण के कारण जीवन अवधि करीब 92.7 फीसद तक कम या फिर खत्म हो रही है। एशिया और अफ्रीका की सरकारें अपने नागरिकों को क्रमश 6.8 फीसद और 3.7 फीसद स्वच्छ वायु गुणवत्ता ही प्रदान कर पा रही हैं। एशिया और अफ्रीका के कई देशों ने माना है कि उनके यहां 4.9 फीसद से लेकर 35.6 फीसद तक वायु प्रदूषण है, जिसके कारण उनका बुनियादी ढांचा कमजोर होता जा रहा है।
एचआइवी, मलेरिया और तपेदिक जैसे रोगों के उन्मूलन के लिए दुनिया के पास एक बड़ा वैश्विक कोष है, जिसके तहत प्रति वर्ष चार अरब अमेरिकी डालर का वितरण किया जाता है। वहीं वायु प्रदूषण के लिए पूरे अफ्रीका महाद्वीप को परोपकार निधि के तहत तीन लाख अमेरिकी डालर से भी कम मिलते हैं। चीन और भारत के बाहर, एशिया को केवल 14 लाख अमेरिकी डालर मिलते हैं। ‘क्लीन एयर फंड’ के अनुसार यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा को कुल 3.4 करोड़ अमेरिकी डालर प्राप्त होते हैं।
दुनिया में वायु प्रदूषण की वजह से 2019 में दुनिया भर में लगभग नब्बे लाख लोगों की समय से पहले ही मौत हो गई। इसका खुलासा एक वैश्विक रपट में हुआ था। वर्ष 2000 के बाद से ट्रकों, कारों और उद्योगों से आने वाली गंदी हवा के कारण मरने वालों की संख्या में 55 फीसद का इजाफा हुआ है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले सबसे ज्यादा हैं। यहां हर वर्ष लगभग 22 से 24 लाख मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से 66.7 लाख लोगों की मौत हुई।
वहीं लगभग 17 लाख लोगों की जान खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल की वजह से गई। ‘द लांसेट’ की रपट के अनुसार, कुल प्रदूषण से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार शीर्ष दस देश पूरी तरह से औद्योगिक देश हैं। वर्ष 2021 में अल्जीरिया ने पेट्रोल में लेड यानी सीसा पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुख्य रूप से लेड-एसिड बैटरी और ई-कचरे की पुनर्चक्रण प्रक्रिया के कारण लोग इस जहरीले पदार्थ के संपर्क में रहते हैं। ज्यादातर गरीब देशों में इस प्रकार से होने वाली मौतों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। लेड यानी सीसे के संपर्क में आने से लगभग सभी शुरुआती मौतों का कारण हृदय रोग रहता है। इसके संपर्क में आने से धमनियां सख्त हो जाती हैं। यह मस्तिष्क के विकास को भी नुकसान पहुंचाता है।
वैश्विक संगठन ईपीआइसी के अनुसार, वायु गुणवत्ता कार्यक्रम सहयोगात्मक रूप से बुनियादी ढांचे का निर्माण कर वित्त पोषण बढ़ाते हुए बेहतर लक्ष्य प्राप्त करने में अहम भूमिका निभा रहा है। वायु प्रदूषण का घातक प्रभाव एशिया के चार सबसे प्रदूषित देशों- बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में अधिक दिखाई देता है। प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर इन देशों के निवासियों की औसत आयु पांच वर्ष तक कम हो गई है। अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो, रवांडा और बुरुंडी में भी सर्वाधिक वायु प्रदूषण है। पिछले कुछ वर्षों में इन देशों में प्रदूषण का स्तर बारह गुना तक बढ़ गया है। इसके चलते यहां के लोगों का जीवन 5.4 वर्ष तक कम हो रहा है।
लैटिन अमेरिका में सबसे प्रदूषित क्षेत्र ग्वाटेमाला, बोलीविया और पेरू में लोगों की औसत आयु तीन वर्ष तक कम हो रही है। वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वच्छ वायु अधिनियम पारित होने से पहले 1970 की तुलना में 64.9 फीसद कम वायु प्रदूषण हो रहा है। हालांकि हालात यहां भी बहुत अच्छे नहीं हैं। यूरोप में लोगों को लगभग 23.5 फीसद कम प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी यूरोप का 98.4 फीसद हिस्सा अब भी डब्लूएचओ के नए दिशा-निर्देशों को पूरा नहीं करता है। खराब हवा के कारण यूरोप के निवासी सात महीने कम जीवन जी रहे हैं।
भारत में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व में सर्वाधिक है, जो देश के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए भारी खतरा है। भारत की लगभग पूरी आबादी अपने चारों ओर हवा में हानिकारक स्तर पर मौजूद पीएम 2.5 कणों के संपर्क में है, जो सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक है और विभिन्न स्रोतों से निकलकर हवा में फैल रहा है। एक अनुमान के अनुसार, घर के भीतर मौजूद प्रदूषित हवा के कारण वर्ष 2019 में सत्रह लाख भारतीयों की अकाल मृत्यु हो गई।
वायु प्रदूषण के कारण हुई घातक बीमारियों के चलते खोए हुए श्रम की लागत 30 से 78 अरब डालर थी, जो भारत की जीडीपी का लगभग 0.3 ले 0.9 फीसद है। यहां करीब 67.4 फीसद जनसंख्या उन प्रदूषित क्षेत्रों में निवास करती है, जहां वार्षिक औसत का प्रदूषण स्तर बहुत अधिक है। वायु प्रदूषण के कारण हृदय संबंधी बीमारियां औसत भारतीय जीवन को कम कर रही हैं। बच्चों में कुपोषण के कारण करीब 4.5 वर्ष और मातृ कुपोषण के कारण महिलाओं में 1.8 वर्ष तक जीवन प्रत्याशा कम हो रही है। समय के साथ वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
वर्ष 2013 से 2021 तक दुनिया में 59.1 फीसद वायु प्रदूषण बढ़ा है, जिसमें भारत का भी उल्लेखनीय योगदान है। विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबों के लिए सस्ते, स्वच्छ खाना पकाने के चूल्हे और ईंधन की सुविधा प्रदान करने से वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है। काम की तलाश में लाखों भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जा रहे हैं। इस आधार पर वायु प्रदूषण के कुल प्रभाव को मापना बहुत कठिन है। शहरों में जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ रहा है।
अधिक से अधिक लोग खराब हवा के संपर्क में आते जा रहे हैं, इसलिए वायु प्रदूषण से होने वाले कुल खतरों में बढ़ोतरी होने की आशंका है। उद्योग-धंधों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित कर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। कम आय वाले परिवारों को वायु प्रदूषण से मृत्यु का खतरा अधिक है, इसलिए खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन भारत में वायु प्रदूषण से समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है। इस दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा, तभी हम वायु प्रदूषण के खतरों से प्रभावी ढंग से निपट पाएंगे। अगर भारत को वायु प्रदूषण कम करना है तो डब्लूएचओ के निर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा।