एक ‘हमासी जिहादी’ अपने पिता से कहता दिखता है कि वाट्सएप खोलो और देखो, मैंने अपने हाथों से दस यहूदियों को मारा है। एक और खबर इतनी ही असह्य महसूस होती है जब वह बताती है कि किसी ‘हमासी जिहादी’ द्वारा एक ‘शिशु’ को एक ‘ओवन’ में भून दिया गया। फिर एक दिन एक दक्षिणी राज्य में एक इस्लामी संगठन द्वारा आयोजित रैली को ‘हमास’ का एक बड़ा नेता ‘वर्चुअली’ संबोधित करता दिखता है कि हमें एक होना है, दुनिया से यहूदी धर्म और हिंदू धर्म को मिटाना है।
इतना खुला जनतंत्र और फिर भी कुछ रोते रहते हैं कि जनतंत्र बचाना है! कुछ के लिए ‘हमास’ को ‘बचाना’ जनतंत्र को बचाना है! ऐसे ही एक दिन अमेरिका के ‘जनतंत्र’ में एक ‘हमासी जिहादी’ सीन दिखता है। अमेरिका में अमेरिकी विदेश सचिव इजरायल के पक्ष में बोल रहे हैं तो उनके ठीक पीछे एक युवती ‘हमास’ के पक्ष वाला पोस्टर लिए इजरायल के विरोध में देर तक चिल्लाती रहती है। पुलिस उसे दूर ले जाती है तो भी वह चिल्लाती जाती है।
उधर एक ‘असफल प्रेमकथा’ का नायक कहता दिखता है कि मैं कोई ठुकराया हुआ प्रेमी नहीं। मुझे डराया जाता था। इस ‘डर’ ने ही इस ‘लव स्टोरी’ के अंदर चलती ‘सवाल के बदले नकदी’ कहानी को सबसे हिट कहानी बनाने में मदद की। इसी बीच ‘रामलला’ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या राममंदिर ट्रस्ट के न्यासी प्रधानमंत्री को न्योता देकर एक बड़ी खबर बनाते हैं। फिर यह खबर लगभग हर चैनल पर छाई रहती है और ‘हमास जिहादी’ कहानियां कुछ देर के लिए पीछे हो जाती हैं।
रामलला की मूर्ति की स्थापना 22 जनवरी को होगी। यह खबर आते ही कई एंकर मुग्ध होते दिखे। एक स्वघोषित राष्ट्रवादी चैनल ने एक के बाद एक पंक्ति लगाई कि यह भारत के लिए सबसे बड़ा क्षण है, यह भारत की सभ्यता के इतिहास के लिए एक बड़ा पल है कि 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की उनके जन्मस्थान पर सैकड़ों वर्ष बाद प्रतिष्ठा की जाएगी।
इसके बाद शुरू हुआ उसी पुरानी तर्ज का विवाद कि ‘भक्त’ कहिन कि वे तो राम के होने को ही नहीं मानते, तब अब क्यों कह रहे हैं कि हमें क्यों नहीं बुला रहे? हमको क्यों नहीं न्योता दिया गया? फिर एक नेता ने एक दिन अपने दल के आंसू पोंछते हुए कि कहा कि मत भूलिए कि ‘राम जन्मभूमि’ पर लगे ताले को हमारे दल के प्रधानमंत्री ने ही खुलवाया था। फिर बोले कि राम मंदिर ‘राष्ट्र की धरोहर’ है, किसी एक दल की नहीं है।
दूसरे चैनल ने बहस के बीच एक ‘मौसमी रामभक्त’ पर बार-बार कटाक्ष किया कि एक ओर एक बड़े विपक्षी दल के बड़े नेता स्वयं कह चुके हैं कि वे गर्वीले ‘शिवभक्त’ हैं, लेकिन ‘आइएनडीआइए’ के सहयोगी दलों में से एक तो ‘सनातन’ को कोविड, कैंसर, टीबी जैसी बीमारी बता चुके हैं और उसे खत्म करने का आह्वान भी कर चुके हैं। ऐसे ‘राम के बैरियों’ से यह कैसी दोस्ती भाई? गठबंधन प्रवक्ता का जवाब रहा कि हमारे यहां सबके अपने अपने विचार हो सकते हैं।
एक अन्य एंकर ‘भक्तिभाव’ से ‘भर कर’ बताने लगा कि पांच सौ बरस बाद ये पल आया है, फिर भी सनातन को सांप्रदायिक कहते हैं। बताइए पांच सौ साल से रामभक्ति के गीत गाने वाले संत भक्त कवि क्या सांप्रदायिक थे? इस बीच ‘असफल प्रेमकथा’ ने फिर से वापसी की और बहसों में छाई रही। लोकसभा की आचार समिति ने ‘सवाल के बदले पैसे’ को लेकर पूछताछ के लिए एक फरीक को बुलाया और पूछताछ की तो बड़ी खबर बनी।
फिर ‘सवाल के लिए पैसे’ की बाबत शिकायत करने वाल सांसद से भी पूछताछ की। यह खबर भी छाई रही। लेकिन उसी शाम एक एंकर ने एक चैनल पर ‘सवाल के बदले पैसे’ की आरोपी सांसद से लंबी बातचीत दिखाई, जिसमें प्राय: हर सवाल का जवाब ‘सवाल’ से ही आया कि आरोपों के प्रमाण कहां हैं? इसके साथ ही ‘चीरहरण’ और ‘रण’ की तुक भी लगाई जाती दिखी! संकेत साफ थे कि आचार समिति में क्या होने वाला है, लेकिन संकेत को कायदे से पढ़ा नहीं गया और हुआ भी लगभग वैसा ही, जिसकी आशंका थी।
कहते हैं कि ‘ईथिक्स कमेटी’ की बैठक में की जाती ‘पूछताछ’ पूरी भी न हुई थी कि ‘वाकआउट’ हो गया और ‘वाकआउट’ की कहानी प्रमुख बन गई। ‘सवाल के बदले पैसे’ लेने के लिए आरोपी सांसद महोदया के साथ समिति के कई ‘विपक्षी सदस्य’ भी वाकआउट करते दिखे। आरोपी कहती दिखीं कि समिति के अध्यक्ष के सवाल बेहूदे थे, मुझे ‘वस्त्रहरण’ जैसी घटना का शिकार बनाया गया, निजी टिप्पणियां की गर्इं।
आरोपी ने अपनी आंखों के नीचे अंगुली लगा कर उनको बड़ा बनाकर दिखाते हुए एक पत्रकार के जवाब में कहा कि क्या मेरी आंखों में ‘आंसू’ हैं? ‘वाकआउट’ करने वाले अन्य सांसदों ने भी समिति के व्यवहार को ‘गलत’ माना, जबकि समिति के अध्यक्ष सिर्फ यह कहते दिखे कि उन्होंने पूछताछ में सहयोग नहीं किया। अब क्या करेगी ‘ईथिक्स कमेटी’?
चुनाव जो न कराए, सो थोड़ा। मतदान के कुछ ही दिन पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के खिलाफ ‘ईडी’ ने आरोप लगाकर बड़ी खबर बनाई कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को ‘महादेव एप’ ने 508 करोड़ रुपए दिए। इस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का यही जवाब रहा कि चुनाव से ऐन पहले उनके दुश्मन उनकी छवि को बिगाड़ना चाहते हैं, कि सत्तादल आजकल हर चुनाव ईडी, सीबीआइ आदि के माध्यम से लड़ता है।