अभिषेक कुमार सिंह
पदार्थ और प्रति-पदार्थ को लेकर ब्रह्मांड के जन्म से जुड़ी अहम पहेली यह है कि महाविस्फोट के दौरान जब एक-दूसरे के विपरीत प्रकृति वाली इन दो चीजों का निर्माण हुआ, तो कायदे से ये दोनों मिलकर एक-दूसरे को रद्द कर देते और तब प्रकाश के सिवा कुछ नहीं बचता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सृष्टि ने जन्म के उन शुरुआती क्षणों में किसी तरह पदार्थ ने प्रति-पदार्थ पर विजय प्राप्त कर ली।
यह तय है कि एक दिन ब्रह्मांड के वे बहुत से रहस्य खुलेंगे, जिनका आज हमारे विज्ञान के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। खासकर इस ब्रह्मांड के सृजन और इसके अंतहीन विस्तार से जुड़ी उन गुत्थियों के उत्तर भी हमें मिलेंगे। मसलन, एक पहेली यह है कि आखिर इस कायनात को रचने वाला इतना अधिक पदार्थ कहां से आया कि सदियों से असंख्य तारामंडल, आकाशगंगाएं और मंदाकिनियां बनती जा रही हैं, लेकिन यह पदार्थ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
एक रहस्य यह भी है कि आज से करीब 13.6 अरब साल पहले महाविस्फोट (बिगबैंग) की घटना के वक्त जिस तरह उप-परमाणविक कणों (सब-एटामिक पार्टिकल्स) का गर्म सूप ठंडा होकर पदार्थ के रूप में तारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं में तब्दील हुआ था, उसी तरह प्रति-पदार्थ भी पैदा हुआ था। वैज्ञानिक अवधारणाओं के मुताबिक यह प्रति-पदार्थ या एंटीमैटर पदार्थ के ठीक उलट है, जो कमोबेश हमारी पकड़ से बाहर और आंखों से ओझल रहा है।
इसे प्रति-पदार्थ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन कणों में अंदर की हर चीज पदार्थ के उलट है। जैसे अणु में धनात्मक आवेश वाले न्यूक्लिअस और ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रान होते हैं। जबकि प्रति-पदार्थ में ऋणात्मक आवेश वाले न्यूक्लिअस और धनात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रान होते हैं। इस प्रति-पदार्थ से जुड़ी नई सूचना यह है कि एक प्रयोगशाला में प्रति-पदार्थ को गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ पदार्थ की तरह प्रतिक्रिया देते हुए दर्ज किया गया है। पहले माना जाता था कि पदार्थ तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में नीचे गिरता है, जबकि प्रति-पदार्थ इसके उलट ऊपर की दिशा में जाएगा। मगर नए प्रयोग में दोनों को गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ एक ही तरह की प्रतिक्रिया देते हुए पाया गया है। इससे प्रति-पदार्थ और इससे जुड़े तमाम सवालों के हल मिलने की उम्मीद बढ़ी है।
पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक नए शोध में बताया गया है कि जेनेवा स्थित दुनिया की सबसे बड़ी कण भौतिकी प्रयोगशाला सर्न के एक शोध दल ने प्रति-पदार्थ के संबंध में अब तक कायम रही प्रस्थापनाओं को उलट दिया है। अपने प्रयोगों के दौरान इस शोध दल ने देखा कि प्रति-पदार्थ के कण गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में पहले की मान्यताओं के मुताबिक ऊपर जाने के बजाय पदार्थ के अणुओं की तरह नीचे गिरने लगे।
अपने समय के अन्य सिद्धांतकारों से अलग, प्रख्यात भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन ने सौ साल से भी पहले वर्ष 1915 में सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत में कहा था कि प्रति-पदार्थ को पदार्थ की तरह ही व्यवहार करना चाहिए और गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में नीचे की ओर गिरना चाहिए। आइंस्टीन की इस स्थापना को अब सर्न के शोधकर्ताओं ने सही साबित कर दिया है।
हालांकि प्रति-पदार्थ से जुड़ी अभी कई और जटिलताओं के उत्तर मिलने शेष हैं। जैसे कि कहा जा रहा है कि सिर्फ इसलिए कि एंटीमैटर ऊपर नहीं गिरता, इसका मतलब यह नहीं है कि यह पदार्थ की समान दर से नीचे गिरता है। यानी जिस गति से एक जमाने में पेड़ पर लगा सेब न्यूटन के सिर पर गिरा था, हो सकता है कि बराबर वजन का प्रति-पदार्थ अलग दर और गति से नीचे गिरे।
पदार्थ और प्रति-पदार्थ को लेकर ब्रह्मांड के जन्म से जुड़ी अहम पहेली यह है कि महाविस्फोट के दौरान जब एक-दूसरे के विपरीत प्रकृति वाली इन दो चीजों का निर्माण हुआ, तो कायदे से तो ये दोनों मिलकर एक-दूसरे को रद्द कर देते और तब प्रकाश के सिवा कुछ नहीं बचता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सृष्टि ने जन्म के उन शुरुआती क्षणों में किसी तरह पदार्थ ने प्रति-पदार्थ पर विजय प्राप्त कर ली।
इस तरह प्रकाश के साथ मंदाकिनियों, आकाशगंगाओं, ग्रह-नक्षत्रों के रूप में पदार्थ और न दिखने वाला प्रति-पदार्थ- दोनों ही बच गए। आखिर पदार्थ और प्रति-पदार्थ ने एक-दूसरे को समाप्त क्यों नहीं किया- यह सबसे बड़ा वैज्ञानिक रहस्य बन गया। उम्मीद है कि इससे जुड़ा रहस्य भी आगे चलकर खुलेगा, लेकिन अभी की जो उपलब्धि है- वह कोई कम उल्लेखनीय नहीं है।
सर्न प्रयोगशाला में प्रति-पदार्थ पैदा करने और उसके व्यवहार को जांचने की पूरी प्रक्रिया काफी जटिल रही है, जिसकी शुरुआत यह जानने से होती है कि आखिर पदार्थ क्या है। यह एक बुनियादी प्रश्न है और इसका आसान उत्तर यह है कि हमारी दुनिया में हर चीज पदार्थ से बनी है। हरेक द्रव्यमान उन छोटे-छोटे कणों की विविध संरचनाओं में बंधकर तैयार होता है, जिन्हें परमाणु कहा जाता है। इनमें सबसे सरल परमाणु हाइड्रोजन है। हमारा सूर्य अधिकतर इसी से यानी हाइड्रोजन से बना है। हाइड्रोजन परमाणु मध्य में धनावेशित प्रोटान और उसकी परिक्रमा करने वाले ऋणावेशित इलेक्ट्रान से बना होता है। प्रति-पदार्थ के साथ, विद्युत आवेश इसके विपरीत होते हैं।
सर्न प्रयोगशाला में जो प्रति पदार्थ पैदा किया गया, वह एंटी-हाइड्रोजन है। यह प्रयोगों में प्रयुक्त किए जाने वाले हाइड्रोजन का प्रति-पदार्थ संस्करण है। इसके बीच में एक नकारात्मक आवेश वाला प्रोटान (एंटीप्रोटान) होता है और इलेक्ट्रान का एक सकारात्मक संस्करण (पाजीट्रान) इसकी परिक्रमा करता है। ये एंटीप्रोटोन सर्न के ‘एक्सेलेटर्स’ में कणों के आपस में टकराने से उत्पन्न होते हैं।
वे तकरीबन प्रकाश की गति से एक पाइप के माध्यम से प्रति-पदार्थ प्रयोगशाला में पहुंचते हैं। चूंकि यह गति शोधकर्ताओं के प्रयोग के नजरिए से बहुत अधिक होती है, इसलिए सबसे पहले उनकी रफ्तार को धीमा करना होता है। इसके लिए शोधकर्ता प्रति-पदार्थ के कणों को एक रिंग के चारों ओर चक्कर लगाने के लिए भेजते हैं। इससे उन कणों की ऊर्जा इतनी कम हो जाती है, जितने के स्तर पर उनकी गति का प्रबंधन किया जा सके। फिर एंटीप्रोटान और पाजीट्रान को एक विशाल चुंबकीय क्षेत्र में भेजा जाता है, जहां वे मिश्रित होकर एंटी-हाइड्रोजन के हजारों परमाणु बनाते हैं।
यह विशाल चुंबकीय क्षेत्र बना लेता है, जिसमें एंटी-हाइड्रोजन के कण फंस जाते हैं। इस दौरान अगर यह एंटी-हाइड्रोजन चुंबकीय क्षेत्र के कंटेनर के किनारों को छू जाएं तो यह (प्रति-पदार्थ) तुरंत नष्ट हो सकता है, क्योंकि प्रति-पदार्थ हमारी दुनिया के संपर्क में नहीं रह सकता है। इसी गतिविधि के दौरान जब चुंबकीय क्षेत्र का संचालन रोक दिया जाता है, तो एंटी-हाइड्रोजन परमाणु मुक्त हो जाते हैं।
इसी चरण में आकर सेंसरों ने तेजी से यह पता लगाया कि वे ऊपर गिरे हैं या नीचे। पता चला कि वे पदार्थ की भांति नीचे गिरे हैं। इस गतिविधि का खुलासा निश्चय ही एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अब चुनौती अनुसंधान के अगले चरण में यह जानने की है कि पदार्थ के मुकाबले प्रति-पदार्थ के गिरने की दर में अंतर है या नहीं। इससे प्रति-पदार्थ के कार्य-व्यवहार को लेकर और स्पष्टता आएगी और तब संभव है कि इसका ठोस उत्तर मिले कि आखिर यह ब्रह्मांड दो विपरीत स्वभाव वाले कणों की उपस्थिति के बावजूद कैसे अस्तित्व में आया।
दशकों से दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर शोध और प्रति-पदार्थ को प्रयोगशालाओं में बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि प्रयोगशाला में प्रति-पदार्थ का निर्माण काफी महंगा है। कुछ साल पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी- नासा ने एक ग्राम एंटीमैटर की कीमत साढ़े 62 खरब डालर लगाई थी, जो अब 90 खरब डालर बताई जाती है। ऐसी स्थिति में प्रति पदार्थ से संबंधित प्रयोगों का संचालन भी आसान नहीं है। फिर भी जब बात ब्रह्मांडीय रहस्यों की थाह लेने की हो, कुछ वैज्ञानिक और देश इसके लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे।