कुछ दिन पहले ही हरियाणा सरकार ने 17 गांवों का नाम बदल दिया। नाम किसी स्थान की पहचान होते हैं और यह स्वाभाविक रूप राजनीतिक कार्य भी बनता जा रहा है। गांवों के नामों का अध्ययन करते समय 2011 की जनगणना से पहले जारी गांवों की निर्देशिका के आधार उत्तर प्रदेश में 1.07 लाख गांवों में से 3% से थोड़ा कम यानी 2,865 के नाम प्रमुख जाति समूहों के नाम पर हैं।
हालांकि यह अधिकांश हिंदी भाषी राज्यों के लिए सच है। उत्तर प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या थोड़ी अधिक है। यूपी में बाभनपुर, शुक्लागंज, ठकुराई और हरिजनपुर जैसे गांव हैं जिनका नाम ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, कायस्थ, यादव, जाट, गुज्जर, कुर्मी, लोधा और दलितों की जातियों, कुलों और उपजातियों के नाम पर रखा गया है।
यूपी के 1,159 गांवों में ब्राह्मण, शुक्ला, तिवारी, मिश्रा, दीक्षित, अवस्थी, अग्निहोत्री, पांडे, पंडित, चौबे और दुबे जैसे ब्राह्मण उपनाम हैं। राजपूत या ठाकुर कम से कम 770 गांवों में अपने उपनाम रखते हैं जैसे तोमर, सोलंकी, कछवाह, गहरवार, चौहान, बैस और बिसेन। जाट उपनामों से कम से कम 265 गांव हैं और इनमें से कई गांवों के नाम चौधरी उपनाम के नाम पर हैं। 269 गांवों के नामों में यादव या अहीर उपनाम हैं जबकि 49 में कुर्मी उपनाम और 52 में गुर्जर उपनाम हैं। ब्राह्मण या ठाकुर उपनाम वाले गांव पूरे यूपी में पाए जा सकते हैं वहीं अन्य जाति समूहों के नाम वाले गांव ज्यादातर उन क्षेत्रों में स्थित हैं जहां ये समूह पाए जाते हैं।
तथाकथित उच्च और अगड़ी जातियों के लिए उनकी जाति के नाम गर्व का विषय हो सकते हैं, लेकिन उन लोगों के लिए ऐसा नहीं है जिनका जाति व्यवस्था द्वारा शोषण किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह उनकी सामाजिक स्थिति की बार-बार और अपमानजनक याद दिलाती है। इसे ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम ने “सार्वजनिक दृश्य के भीतर किसी भी स्थान पर जाति के नाम पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी भी सदस्य का दुरुपयोग को दंडनीय अपराध बना दिया। लेकिन यूपी में कम से कम 176 गांवों के नाम अभी भी दलित समूहों या उपसमूहों के नाम पर हैं।
1967 में यूपी के सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद चौधरी चरण सिंह ने फैसला किया कि सरकारी अनुदान प्राप्त करने वाले सभी शैक्षणिक संस्थानों को या तो जाति के नाम हटा देने चाहिए अन्यथा लाभ से वंचित किया जायेगा। इस फैसले का कुछ आंतरिक विरोध था क्योंकि वह 20 दलीय गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन वह अपने रुख पर अड़े रहे और जीत हासिल की। लेकिन दलित और पिछड़े समूहों की दावेदारी की बढ़ती राजनीति के बावजूद, जातियों के नाम वाले गांवों का नाम नहीं बदला गया है। जब यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी तब इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है और फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया।