अथ ‘हमास’ पर इजराइल के जवाबी हमले के उन्नीस दिन और ‘हमास’ की हिमायत के दिन! इन दिनों की खबरों और चर्चा में कुछ के लिए ‘हमास’ ‘आतंकवादी जिहादी संगठन’ है तो कुछ के लिए वह गाजा के ‘फ्रीडम फाइटर्स’ का संगठन है। एक बड़े वैश्विक, लेकिन बेदम संगठन के प्रमुख को भी हमास ‘विक्टिम’ दिखा जिसके जवाब में इजराइल ने सीधे कह दिया कि ये चीफ होने लायक नहीं। कई इस्लामी देशों की धमकियों के बावजूद इजराइल कहता दिखता है कि हम हमास को निपटा के ही दम लेंगे तो हमास-हिमायती कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे, उल्टे वह तुमको निपटा देगा। चर्चा में हमास के पीछे ‘ईरान’ के हाथ का जिक्र भी बार बार आता है।
चैनलों में कई दल हमास को विक्टिम मानकर उसके पक्ष में दलीलें देते दिखते हैं और इजराइल को ‘नाजीवादी’ बताते हैं! एक दिन कुछ चैनल हमास के एक जिहादी आतंकवादी का अपने पिता से ‘वाट्सऐप’ पर बात करता आडियो सुनवा देते हैं जिसमें वह जोर-जोर से कहता सुनाई पड़ता है कि ‘वाटसऐप’ खोलकर देखो… मैंने दस यहूदियों को मार डाला है! कई एंकर चीखते हैं कि बताइए इससे ज्यादा खूंखारियत कहीं हो सकती हैं और तब भी कुछ के लिए हमास विक्टिम है?
एक चैनल पर गजब की बहस है। एक कहता है कि हमास की खूंखारियत अक्षम्य है तो उतना ही आक्रामक जवाब आता है – इस सबके लिए इजराइल ही दोषी है। इसके आगे सारी बहस ‘मूलवादी’ हो उठती है कि मूल कारण देखो। मूल कारण ‘इजराइल’ है। न इजराइल होता न हमास होता, न ये हिंसा होती। एक वक्ता जवाब देता है कि सर जी! यहूदी तो धरती पर तीन हजार साल से हैं, तब इस्लाम था कहां? और तब ‘मूल’ की बात क्या?
इजराइल हमास के युद्ध को लेकर दुनिया विभाजित है। इसे देख कुछ चैनल तीसरे ‘विश्व युद्ध’ को अभी से ‘देखने दिखाने’ लगे हैं और नहीं तो कुछ इसे ‘महायुद्ध’ ही बताने लगे हैं। तिनके का ताड़ बनाने की कला कोई हमारे कुछ हिंदी चैनलों से सीखे!
पता नहीं क्यों, लेकिन इस सप्ताह जाति जनगणना की कहानी कुछ पिटी- पिटी सी नजर आती रही। कई चैनल अपने सर्वे के जरिए जाति गणना को लेकर जनता की जटिल प्रतिक्रियाओं को कुछ इस तरह बताते रहे जैसे कि जाति गणना का पैंतरा उल्टा भी पड़ सकता है। दुर्गा पूजा से दशहरे के दिन तक सत्तादल के बड़े-बड़े नेता किसी न किसी रामलीला के ‘मुख्य अतिथि’ बनकर अपने तीर को रावण की नाभि में मारकर कर उसका दहन करते दिखे। अयोध्या की राम मंदिर कमेटी द्वारा प्रधानमंत्री को नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रित किया गया।
इसे लेकर कुछ एंकर विपक्षी दलों पर कटाक्ष करते रहे कि जो दल या नेता कल तक राम के अस्तित्व को ही नहीं मानते थे, जिन्होंने राम मंदिर निर्माण को अटकाने-लटकाने में कोई कसर न छोड़ी, ऐसों को कौन बुलावा भेजे जो राम के अस्तित्व को ही नकारते रहे! एक बड़े विपक्षी रामभक्त ने कहा कि राममंदिर किसी दल का होकर ‘राष्ट्र’ का है… तब भी कई एंकर पूछते रहे कि जो अब तक राम के न हुए, वे किस काम के?
एक अंग्रेजी चैनल इस अवसर को सनातन की आलोचना करने वाले कुछ दाक्षिणात्य नेताओं के ‘सनातन विरोधी’ कुबोलो को उद्धृत करके पूछता रहा कि जो गठबंधन के चुनावी रामभक्त हैं, वे सनातन के दुश्मनों से दोस्ती क्यों रखे हैं? इसी सप्ताह गठबंधन की एकता में फांस पड़ी। सीट साझा करने पर एक गठबंधनवादी नेता ने झिड़क दिया कि छोड़ो अखिलेश-वखिलेश… इसके जवाब में होता रहा ‘चिरकुटिए’! सच! जो मैं ऐसा जानती प्रीति किए दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय!
इसीलिए नेता जी कहिन में जो तुमने हमारे संग मध्य प्रदेश में किया, वह हम तुम्हारे संग उत्तर प्रदेश में करेंगे। मजे लेने वाले एंकर ले उड़े और कहने लगे कि बताइए, जब अभी से मुहब्बत की दुकान में इतनी लड़ाई है तो आगे का रास्ता तो और भी मुश्किल है। ‘सवाल के बदले माल’ वाली ‘फजीहतवादी’ कहानी इस सप्ताह भी शीर्ष पर रही। इस कहानी के एक पात्र ने बड़ा नाम कमाया।
इसी बीच एक चैनल कहानी के ‘मालदाता’ से ‘बातचीत’ को ‘हाइप’ किए जा रहा था। जब ‘मालदाता’ ने बार-बार यह कहा कि जो कहा वह हलफनामे में हैं तो चैनल के सारे शोर पर पानी फिर गया। बहरहाल, अब आचार समिति की पूछताछ शुरू कर चुकी है, अब जो कहानी आएगी, बाद में ही आएगी। ऐसी मनोहर कहानियों के बीच ‘अफसरों को प्रभारी बनाने ’ या मोहन भागवत के भारत के ‘स्व’ की तलाश, एनसीईआरटी की ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ कर देने के खयाल को चैनल कैसे भाव देते? हां, एक चैनल पर एक सवाल बार-बार उठता रहा कि जाति गणना के बाद आप करेंगे क्या!