शुरू में कहना जरूरी समझती हूं कि जबसे हिंदुओं के हृदय सम्राट, नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री बने हैं तबसे भारत के मुसलमानों को लगने लगा है कि उनको दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश हो रही है। उनकी सभ्यता, उनके रहन-सहन, उनका मजहब, मुसलिम नाम के शहर, सबको निशाने पर रखा है मोदी के मुख्यमंत्रियों ने, उनके मंत्रियों ने और उनके सोशल मीडिया वाले भक्तों ने। ऊपर से भीड़ द्वारा हत्याएं और लव-जिहाद की नई प्रथाएं। यहां याद दिलाना चाहती हूं कि इसका मैंने बहुत बार विरोध किया है इसी जगह। इसलिए जो कहने जा रही हूं, उसे बहुत दुख के साथ कह रही हूं।
दुख इस बात का है मुझे कि भारत के मुसलमानों से अभी तक हमास के खिलाफ एक शब्द नहीं सुना है मैंने। ऐसा क्यों हुआ है मेरी समझ के बाहर है। लेकिन सवाल बार बार मन में आया है जबसे हमास के सिपाहियों ने इजराइल में घुस कर निहत्थे लोगों पर आतंक ढाया सात अक्तूबर के दिन। पिछले सप्ताह इजराइल ने कुछ ऐसे वीडियो सार्वजनिक किए जिनको देख कर ऐसा लगता है कि जो लोग हमास की तरफ से भेजे गए थे उनको इंसान कहना गलता होगा।
निजी तौर पर मुझे इन सारे वीडियो क्लिप में से सबसे डरावना वह लगा, जिसमें हमास का एक हत्यारा अपने पिता को फोन करके कह रहा है कि ‘मैंने 10 यहूदी मारे हैं अपने हाथों से’ और उसके पिता का जवाब है ‘शाबाश बेटा, अच्छा किया तुमने’। मैंने पहली बार इस तरह की शाबाशी सुनी है किसी आतंकवादी को मिलते हुई।
सोचा था इसको सुनने के बाद कि वो मुस्लिम बुद्धिजीवी कुछ कहेंगे, जो रोज ऊंची आवाज में साबित करना चाहते हैं कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं मोदी के राज में क्योंकि हिंदुत्ववादी आतंक से उनको दिन-रात खतरा रहता। कम से कम वो लोग तो कुछ कहेंगे हमास की बर्बरता के खिलाफ। कुछ नहीं कहा उन्होंने। उल्टा इन बुद्धिजीवियों ने अपना पूरा दम लगाया यह साबित करने में कि हमास ने जो किया उसका दोष भी इजराइल के सिर है।
कहते हैं ये लोग कि इजराइल ने दशकों से इतना जुल्म ढाया है फिलिस्तीनियों पर कि हमास को एक आतंकवादी संस्था नहीं स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखा जाना चाहिए। क्या भारत के मुसलमान अभी तक समझे नहीं हैं कि इस तरह की बातें करके वो खुद अपने ही दुश्मन बन रहे हैं? क्या समझे नहीं हैं कि फिलिस्तीनियों के लिए वे जितने आंसू बहाएंगे- कम होंगे। लेकिन साथ में एक दो आंसू बहा सकते हैं उन 1400 इजरायलियों के लिए, जिनको हमास के दरिंदों ने जानवरों की तरह बेरहमी से मार दिया। छोटे बच्चों के सामने उनके माता पिता की हत्या की।
इस लेख का विशेष मुद्दा न इजराइल है न ही हमास। इस लेख का विशेष मुद्दा है- भारत के मुसलिम समाज की सोच और उनकी अजीब आदत बाकी देश की सोच से अलग रखने की। सर्वेक्षण बताते हैं कि आम भारतीय का समर्थन, उसकी सहानुभूति इजराइल के साथ है। इसका कारण है कि जिहादी हमले भारत में इतने हुए हैं कि उसका घिनौना चेहरा हमने बार-बार देखा है।
इन हमलों की बर्बरता की निंदा कई बार देश की मुसलिम संस्थाओं और राजनेताओं ने की है तो इस बार क्या वजह है कि उनके मुंह से सिर्फ फिलिस्तीनियों के लिए हमदर्दी सुनने को मिलती है? एक मुसलिम राजनेता से जब टीवी पर पूछा गया तो उसने जवाब दिया कि उसकी आस्था को चोट पहुंची है गाजा में इजराइल की बमबारी देख कर।
अपने हम-मजहब के लोगों के लिए हमदर्दी रखना अच्छी बात है लेकिन यह सवाल बार- बार पूछा जा रहा है आज कि चीन में जो वीगर लोगों के साथ होता आ रहा है वर्षों से उनके लिए क्यों नहीं भारत से उठी है मुसलमानों की आवाज? क्या इसलिए कि असली बात यह है कि भारत के मुसलमान शुरू से अमेरिका को दुश्मन मानते आए हैं और चीन और रूस को अपने खास दोस्त? यहां याद रखना जरूरी है कि चेचेन्या में जो व्लादिमीर पुतिन ने किया था मुसलमानों के साथ वो अमानवीय था हर तरह से, लेकिन उस समय भी भारत के मुसलमान चुप थे।
मुसलमान इस बार चुप रह कर हिंदुओं से दूरियां बढ़ा तो रहे हैं लेकिन एक और चीज कर रहे हैं जिससे उनको भविष्य में बहुत नुकसान हो सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने हमास के हमले के बाद कहा था कि ऐसा लगने लगा है कि विश्व में दो खेमे बन रहे हैं जिनकी वजह से इतिहास में एक नई करवट आ सकती हैं और इस पर हम सब को ध्यान देना होगा।
एक खेमे में हैं – अमेरिका, इजराइल, यूरोप और इन लोकतांत्रिक देशों के साथ खड़े हैं दुनिया के बाकी लोकतांत्रिक देश और दूसरे में हैं – ईरान, रूस, चीन जैसे देश जिन में लोकतांत्रिक प्रणाली नहीं तानाशाही है। क्या भारत के मुसलिम देख नहीं सकते हैं कि भारत के सामने एक ही रास्ता है और वो है लोकतांत्रिक खेमे में अपनी जगह बनाना? क्या देख नहीं सकते हैं मुसलिम राजनेता कि जिस खेमे में चीन है उस खेमे में भारत नहीं रह सकेगा?
आखिर में ये कहना जरूरी समझती हूं कि मुसलमानों को गुमराह करने में बहुत बड़ा हाथ है वामपंथी राजनेताओं का जिनका दिल, जिनकी वफादारी, जिनकी सोच है उस खेमे के साथ जिस में चीन और रूस हैं। ऐसे लोगों की नजर में अमेरिका विश्व में सबसे बड़ा शैतान है। ऐसी सोच कभी भारत के शासकों की भी हुआ करती थी लेकिन अब नहीं है। देश बदल गया है बहुत, उस पुराने कांग्रेस जमाने की समाप्ति के बाद। मुसलमानों को भी बदलना होगा।