मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक वकील को ऐसा सबक सिखाया है कि वो खुद तो सारा जीवन इसे याद रखेगा उसके साथियों को भी नसीहत मिलती रहेगी। हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ ताबड़तोड़ केसेज दायर करने वाले वकील को अवमानना के मामले में दोषी मानकर चार लाख का जुर्माना लगाया गया है। जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल कुमार की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि एडवोकेट ने हाईकोर्ट के कुछ जजों के खिलाफ बेसिरपैर की याचिकाएं दायर की थीं। इससे न्यायपालिका की छवि को आघात लगा। एडवोकेट का ये काम किसी भी नजरिये से माफी के लायक नहीं है।
बेंच के तेवर इतने तल्ख थे कि जजों के खिलाफ याचिका दायर करने वाले एडवोकेट मनोज कुमार श्रीवास्तव को अपने क्लाइंट का नौकर और एजेंट तक करार दिया। बेंच का कहना था कि वकील को ये भी याद रखना चाहिए कि नौकर और एजेंट के अलावा वो कोर्ट का जिम्मेदार अफसर भी है। अदालत का कहना था कि इससे शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता कि एक वकील कानूनी प्रक्रिया में बाधा डालने का काम करे।
विक्रम विश्वविद्यालय में एक लेक्चरर की नियुक्ति के खिलाफ 2007 में दायर एक मामले को लेकर मनोज श्रीवास्तव के खिलाफ 2013 में अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी। 2012 में कोर्ट ने पाया कि उन्होंने इंदौर बेंच में हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ 14 शिकायतें की थीं। कोर्ट ने कहा कि उनमें से कम से कम चार शिकायतों या पत्रों में इस्तेमाल की गई भाषा अदालत के अधिकार को बदनाम करने और कम करने वाली है।
कोर्ट ने माना कि ये हरकत अदालत की अवमानना है। श्रीवास्तव ने अपने खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिकाओं में न्यायाधीशों को पक्षकार बनाने के लिए एक आवेदन दायर किया था। उसने 50 लाख का मुआवजा भी मांगा था। हाईकोर्ट ने कहा कि जस्टिसेज को इन आपराधिक अवमानना के केसों में एक पक्ष बनाने के लिए आवेदन दाखिल करना और आगे मुआवजे का दावा करना वकील की विकृत मानसिकता को दर्शाता है।