गुजरात हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस इस बात से खफा थीं कि एडवोकेट बीमारी का बहाना बनाकर बार-बार तारीख ले रहे हैं। उन्होंने एक आदेश जारी करके इस तरह की कवायद पर रोक लगा दी। लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि ये आदेश एक घंटे के भीतर ही चीफ जस्टिस को वापस लेना पड़ गया।
दरअसल, चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल ने ये फैसला तब लिया जब एक नए केस में एडवोकेट ने बीमारी का हवाला देकर तारीख मांगी। सुबह के सत्र में ये केस लगा था। इस वजह से चीफ जस्टिस का पारा चढ़ गया। उन्होंने कहा कि नए दाखिल केसों में इस तरह से तारीख मांगना सही नहीं है। वो कल से इस तरह की कवायद पर रोक लगा रही हैं। उन्होंने कोर्ट में अपने स्टाफ को आदेश दिया कि वो इस बाबत एक नोटिस चस्पा कर दें।
चीफ जस्टिस के इस तरह के आदेश के बाद गुजरात हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को पसीना आ गया। वकीलों ने पहले मंत्रणा की और फिर फैसला हुआ कि चीफ जस्टिस के पास जाकर दरख्वास्त की जाए कि इस तरह का आदेश जारी न करें। बार का मानना था कि कई बार तारीख लेनी जरूरी हो जाती है। इसके पीछे कई कारण होते हैं। बार ने उसके बाद लंच टाईम में चीफ जस्टिस के पास जाकर अपील की कि वो इस आदेश को वापस ले लें।
चीफ जस्टिस ने उनकी बात सुनने के बाद कहा कि फिलहाल वो इस तरह का आदेश जारी नहीं कर रही हैं। लेकिन वकीलों को भी कोर्ट की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। नए दाखिल केसों में तारीख लगने से केस की सुनवाई शुरू तक नहीं हो पाती। इस वजह से केस लंबे समय तक अटके रह जाते हैं। हालांकि इस बारे में फिलहाल कोई आदेश जारी नहीं हुआ है। लेकिन एक घंटे के भीतर चीफ जस्टिस का पहले फरमान जारी करना और फिर उसे वापस लेना चर्चा का विषय बन गया। वकीलों ने अपने पैंतरों का इस्तेमाल करके चीफ जस्टिस के कहने के बाद भी आदेश को रुकवा ही दिया।