कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों को सीख दी है कि वे ‘खुद में संयम’ रखें और कुछ देर के आनंद के लिए गलत कदम उठाने से बचें। न्यायालय ने लड़कों को सलाह दी कि वे ‘यौन इच्छाओं पर नियंत्रण’ रखना सीखें और ‘युवा लड़कियों और महिलाओं और उनकी गरिमा और शारीरिक स्वायत्तता’ का सम्मान करें। न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) पर चिंता व्यक्त की, जिसमें किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को यौन शोषण के साथ जोड़ा गया है। पॉक्सो के मुताबिक 18 साल से कम उम्र की लड़की की सहमति को वैध नहीं माना जाता है और उनके साथ यौन संबंध को बालात्कार की श्रेणी में रखा जाता है।
बार एंड बेंच’ (Bar and Bench) की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायालय ने महिला किशोरियों को सलाह देते हुए उनके लिए कुछ कर्तव्य और दायित्व बताए। न्यायालय ने कहा, “प्रत्येक महिला किशोरी का कर्तव्य/दायित्व है कि वे अपने शरीर की अखंडता के अधिकार की रक्षा करें। अपनी गरिमा और आत्म-सम्मान की रक्षा करें। लैंगिक बाधाओं को पार कर अपने पूर्ण विकास के लिए प्रयास करें। यौन आग्रह/आवेग पर नियंत्रण रखें, क्योंकि समाज की नजरों में वे तब हार जाती हैं, जब मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती हैं। अपने शरीर की स्वायत्तता और उसकी निजता के अधिकार की रक्षा करें।”
न्यायमूर्ति चित्त रंजन दाश और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने ‘प्रोभात पुरकैत बनाम पश्चिम बंगाल राज्य’ केस में एक युवक को बरी करते हुए यह सलाह दी। उसे निचली अदालत से एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के लिए दोषी ठहराया गया था, और बीस साल की सजा सुनाई गई थी। दोनों का आपस में एक-दूसरे से ‘अफेयर’ था।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव दिया। न्यायालय ने कम उम्र में यौन संबंधों से उत्पन्न होने वाली कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए किशोरों के लिए व्यापक अधिकार आधारित यौन शिक्षा का भी आह्वान किया।
इसी तरह पुरुष किशोरों के लिए जरूरी हिदायतें दीं। न्यायालय ने कहा कि यौन इच्छा हमारी अपनी क्रियाओं से जागृत होता है। हम जो देखते हैं, सुनते हैं, करते हैं और महसूस करते हैं, उससे ऐसी भावनाएं उत्तेजित होती हैं। न्यायालय ने कहा, ”किसी युवा लड़की या महिला का सम्मान करना एक किशोर पुरुष का कर्तव्य है और उसे अपने दिमाग को एक महिला, उसकी आत्म-मूल्य, उसकी गरिमा और गोपनीयता और उसके शरीर की स्वायत्तता के अधिकार का सम्मान करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।”