Writer : Maulshree Seth
लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी दिलचस्प नजर आ रही है। जहां समाजवादी पार्टी की सियासत पर काफी चर्चा है। इस चर्चा में बिहार का जातिगत आरक्षण सर्वे और ओबीसी वर्ग को लेकर समाजवादी पार्टी का रुख देखा जा रहा है। पिछले दिनों हिन्दू दक्षिणपंथ पर हमला करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के एक के बाद एक बयान और अखिलेश यादव की चुप्पी को लेकर भी कई तरह की सवाल उठ रहे हैं। इससे समाजवादी पार्टी के भीतर भी बेचैनी की भावना पैदा हो गई है, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह ओबीसी पर भाजपा की पकड़ को तोड़ने और साथ ही पार्टी के मुस्लिम-यादव आधार को खुश रखने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है।
स्वामी प्रसाद मौर्य जिन्होंने इस साल की शुरुआत में रामचरितमानस को लेकर टिप्पणी की थी, जिसके बाद काफी विवाद देखा गया था और हिन्दू दक्षिणपंथी काफी नाराज दिखाई दिए थे। स्वामी प्रसाद मौर्य आज अपनी एक नई टिप्पणी को लेकर चर्चा में हैं, मौर्य ने रविवार को यह आरोप लगाकर एक और विवाद खड़ा कर दिया कि विभाजन के लिए मुहम्मद अली जिन्ना नहीं, बल्कि हिंदू महासभा जिम्मेदार थी। जहां भाजपा और हिंदू दक्षिणपंथी समूहों ने पूर्व राज्य मंत्री के विवाद का विरोध किया वहीं सपा और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मौर्य से जुड़े पिछले विवादों की तरह ही चुप्पी साध रखी है।
स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम लिए बिना राज्य विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज कुमार पांडे ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कभी-कभी मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय मानवीय दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसे बयान सपा या अखिलेश की मान्यताओं से मेल नहीं खाते। मनोज कुमार ने कहा, “चाहे लोहिया जी हों, नेता जी मुलायम सिंह यादव हों या अखिलेश जी हों, हम सभी सभी धर्मों को सम्मान देने में विश्वास करते हैं। समाजवादी पार्टी किसी की आस्था या धर्म पर किसी भी प्रकार के हमले का समर्थन नहीं करती है। यदि कोई व्यक्ति राजनीतिक रूप से कमजोर है तो उसे किसी के धर्म पर हमला करने के अलावा अन्य रास्ते अपनाने चाहिए। सपा की असली लड़ाई बेरोजगारी के खिलाफ है।
नाम न छापने की शर्त पर कुछ सपा नेताओं ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य की टिप्पणियां यह स्थापित करने की रणनीति का हिस्सा थीं कि ब्राह्मणों के अलावा भाजपा के हिंदू धर्म के विचार में किसी के लिए जगह नहीं है।
कुछ सपा नेता कहते हैं, “हमने पिछले चुनावों में देखा है कि बीजेपी सभी जातियों को एक साथ लाकर हिंदुत्व के नाम पर वोट मजबूत करने में सफल रही है। इस तरह के बयानों का उद्देश्य ओबीसी, दलितों, सिखों को यह याद दिलाना है कि कैसे हिंदू धर्म सभी को समायोजित नहीं करता है और इस प्रकार इन वोटों को फिर से ओबीसी, दलितों और उनकी उप-जातियों में अलग करने और उन्हें अल्पसंख्यक वोटों के साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है।”
विपक्षी दल पर निशाना साधते हुए राज्य भाजपा उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक ने कहा, “जिस तरह के बयान स्वामी प्रसाद मौर्य के आ रहे हैं और उनके पार्टी प्रमुख की चुप्पी से पता चलता है कि केवल दो संभावनाएं हैं। या तो सपा इस बात को लेकर पूरी तरह से भ्रमित है कि उसका क्या मतलब है या वह अतीत की तरह एक बड़ी रणनीति के तहत ऐसा कर रही है, ताकि भीतर के विरोधाभासों को बोलकर विभिन्न वर्गों को खुश रखा जा सके। मुलायम सिंह यादव ने यही किया और अब अखिलेश यादव भी इसका अनुसरण कर रहे हैं।”