हाल के वर्षों में परंपरागत रीति-नीति से जुड़े संबंधों में ही नहीं, मनमर्जी से चुने रिश्तों में भी उलझनें बढ़ी हैं। चिंतनीय है कि वैवाहिक जीवन से इतर सहजीवन हो या करीबी मित्रता, मनचाहे संबंधों में भी न केवल अमानवीय मामले सामने आ रहे हैं, बल्कि दोषारोपण का खेल भी खूब खेला जा रहा है। मन से चुने साथ को जीते हुए आपराधिक घटनाओं तक को अंजाम दिया जा रहा है।
यही वजह है कि इन उलझते रिश्तों को लेकर आ रहे कानूनी निर्णय भी बहुत विचारणीय हैं। ऐसे मामलों को देखते हुए ही बीते दिनों उच्चतम न्यायालय ने हर विफल रिश्ते पर बलात्कार की चिप्पी चिपकाने के खिलाफ चेतावनी दी है। गौरतलब है कि उच्चत्तम न्यायालय द्वारा यह टिप्पणी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध दायर अपील की सुनवाई के दौरान की गई। इस मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति के विरुद्ध बलात्कार के मामले को निरस्त कर दिया था, जिस पर कथित तौर पर शादी के झूठे बहाने पर एक महिला से यौन संबंध बनाने का आरोप था।
शीर्ष अदालत ने ऐसे आरोपों से यौन उत्पीड़न के वास्तविक मामलों को नुकसान पहुंचने की बात कहते हुए कहा कि ‘विफल रिश्ते के हर उदाहरण को बलात्कार के रूप में पेश करने की कोशिश यौन उत्पीड़न के असल मामलों पर गलत प्रभाव डाल सकता है।’ खुलेपन के इस दौर में उलझते रिश्तों को देखते हुए अदालत ने यह रेखांकित करने योग्य बात भी कही कि ‘या तो आप पारंपरिक तरीके से जिंदगी गुजारें या फिर जीवन जीने का अपना तरीका चुनें। बड़े शहरों में कई युवा बाद वाले विकल्प को चुन रहे हैं। ऐसे में जब आप अपने मुताबिक जिंदगी गुजारना चाहते हैं, तो आपको सभी संभावित परिणामों का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जो युगल सहमति से शारीरिक संबंध बनाना चाहते हैं, उन्हें भी तैयार रहना चाहिए, क्योंकि हो सकता है कि उनकी शादी न हो पाए।’
दरअसल, बीते कुछ वर्षों में ऐसे झूठे आरोपों और दोषारोपण के मामले बढ़ गए हैं। मनचाहे रिश्तों में कई महिलाओं ने रजामंदी से बनाए संबंधों को शोषण का नाम दे दिया, तो कहीं बरसों के साथ के बाद कई पुरुष अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने से भी नहीं चूके। एक ओर झांसा देने के कई आरोप आगे चलकर निराधार साबित हुए, तो दूसरी ओर वास्तविक पीड़िताओं का शोषण करने वाले बचकर निकलते रहे। इसके चलते ऐसे झूठे मामले पीड़ा भोगने वाली महिलाओं से जुड़ी घटनाओं को भी शंका के दायरे में लाने वाले उदाहरण बन गए।
आखिर क्यों प्रगतिशील सोच वाले परिपक्व आयु के महिला-पुरुष भी अपने मन से चुने संबंधों की जवाबदेही लेने से चूक जाते हैं? निबाह की सोच के बिना साथ चलने का मार्ग चुनते ही क्यों हैं? आत्मीयता का भाव आगे चलकर किसी आपराधिक घटना या आरोप के रूप में क्यों सामने आता है? स्थिति यह हो चली है कि सामाजिक-पारिवारिक मोर्चे पर हैरान-परेशान करने वाले ऐसे प्रकरण अब कानून के लिए भी पेचीदा साबित हो रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कई कानूनों पर भी सवाल उठने लगे हैं। नतीजतन, निराधार आरोप लगाने वाले मामलों के सामने आने से ऐसे संबंधों में शोषण के हर मामले में आंख बंद कर पुरुष को ही दोषी नहीं माना जा सकता।
गौरतलब है कि ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ताजा निर्णय भी विचारणीय है। प्रेम प्रसंग के मामले में अदालत ने कहा है कि आरोपी और पीड़िता के बीच लंबे समय से संबंध थे। पीड़िता के साथ-साथ उसके परिवार वालों को भी इस रिश्ते के बारे में पता था। इसलिए इस तरह के रिश्ते के टूटने के बाद आपसी जुड़ाव के दौरान लंबे समय तक बना शारीरिक संबंध बलात्कार के दायरे में नहीं आता, भले ही पुरुष किसी कारण से महिला से शादी करने से इनकार कर दे।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय में भी महिला द्वारा पुरुष के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का फैसला करने से पहले दोनों पांच वर्ष तक एक साथ थे। इसीलिए इसे बलात्कार नहीं, बल्कि शारीरिक संबंधों के साथ पांच वर्ष के रिश्ते का एक उदाहरण माना गया, जो अब खराब हो गया। लाजिमी भी है क्योंकि ऐसी उलझाऊ स्थितियां शोषण भर नहीं होतीं। इनके पीछे कई स्वार्थ और रिश्ते से बाहर आने की राह खोजने से जुड़े सामाजिक कारण भी होते हैं।
कई साथी तो रिश्ते की शुरुआत अपनी सीमाओं और अपेक्षाओं को बता-जताकर करते हैं। आने वाले समय में भावनात्मक, आर्थिक या सामाजिक पहलू पर कई कारण इस जुड़ाव में दुविधा पैदा करते हैं। अंतरंगता उलाहनों में बदल जाती है। स्नेह और संवाद की जगह शिकायतें डेरा जमाने लगती हैं। अनिश्चय के इस मोड़ पर आपसी समझ से अलग रास्ता न चुनने वाले लोगों में अपनी इच्छा थोपने की चाह बलवती हो जाती है। इसके चलते असमंजस की स्थितियां कानूनी पेचीदगियों तक पहुंचा देती है।
ऐसे में उच्चत्तम न्यायालय की यह टिप्पणी महिलाओं और पुरुषों को व्यावहारिक और जागरूक सोच अपनाने का संदेश देती है। आज के युवकों-युवतियों को समझना होगा कि बिना जवाबदेही वाले संबंधों में भावनात्मक, सामाजिक और पारिवारिक सुरक्षा मिल पाना मुश्किल है। इसीलिए या तो अपने चुने हुए रिश्तों के प्रति जवाबदेह बनें या इस जुड़ाव के फेर में न पड़ें। इतना ही नहीं, ऐसे संबंधों के दुष्परिणाम और शारीरिक-मानसिक शोषण से बचने के लिए महिलाओं को स्वयं एक सजग व्यक्तित्व बनना ही होगा। समय रहते शोषण के इस जाल को समझना होगा। वहीं पुरुषों को भी शोषण करने की मानसिकता से संबंध जोड़ने से पहले मानवीय ही नहीं, कानूनी पक्ष पर भी गहराई से विचार करना चाहिए।
जिस रिश्ते में दायित्वबोध का भाव ही न हो, उसकी शुरुआत ही क्यों की जाए? अविश्वास और अस्थिरता की नींव पर कोई संबंध क्यों बनाया जाए? दुखद है कि ऐसे रिश्तों की उलझती गुत्थियां बहुत से कानूनों का दुरुपयोग बढ़ा रही हैं। आमतौर पर लंबे समय तक साथ रहने के बाद एक-दूसरे पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं। इसीलिए ऐसे मामले कानून और समाज दोनों के लिए विचारणीय हो चले हैं। हालांकि अब समाज और कानून दोनों यह मानने लगे हैं कि जब साथ रहना है और बिना विवाह के भी ऐसे संबंधों को जीना है तो फिर इन रिश्तों को बलात्कार का मामले नहीं माना जा सकता। खासकर तब, जब कोई जोर-जबरदस्ती न की गई हो।
खुलेपन के इस दौर में महिला हो या पुरुष, दोनों को अपने फैसलों की जिम्मेदारी लेनी होगी। बिना किसी भय या दबाव के इन संबंधों में हिस्सेदार बनने वाले लोगों को इनके परिणाम भी स्वीकार करने ही होंगे। व्यक्तिगत चुनाव और जुड़ाव में आगे चलकर पैदा होने वाली उलझनें आरोप-प्रत्यारोप का खेल न बनें तो बेहतर है। आज बदलती जीवनशैली और स्वार्थपरक सोच ने मन-जीवन से जुड़ी जटिलताएं बढ़ा दी हैं। संबंधों में ठहराव कम और भटकाव ज्यादा देखने को मिल रहा है। मन-मुताबिक चुने इन रिश्तों की उलझनों को सुलझाने के लिए परिजनों का साथ भी नहीं मिलता। ऐसे में समझ और संयम किसी भी संबंध को जोड़ने के पहले पड़ाव पर ही रखनी होगी। यह बात सदा प्रासंगिक रहेगी कि भरोसे और कर्तव्यबोध की पृष्ठभूमि के बिना किसी भी संबंध की सुखद तस्वीर नहीं उकेरी जा सकती।