हमास का आतंकवादी हमला पिछले सप्ताह इतना घिनौना था कि दुनिया के राजनेताओं ने उसकी निंदा की। इनमें नरेंद्र मोदी भी हैं। हमले के घंटों बाद जब मालूम हुआ कि हमास ने बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं और राह चलते आम लोगों को इतनी बेरहमी से मारा कि दरिंदगी और बर्बरता की सारी सीमाएं लांघ डाली थीं भारत के प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके कहा कि इस आतंकवादी हमले ने उनको निशब्द कर दिया है। बाद में एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि भारत खड़ा है इजराइल के साथ।
रही बात कांग्रेस पार्टी की तो 24 घंटे लगे उनको तय करने के लिए कि क्या बोलना चाहिए। उसके बाद एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने कहा कि जो हुआ बहुत बुरा हुआ लेकिन कांग्रेस पार्टी दशकों से फिलिस्तीनियों के अधिकारों के लिए बोलती आई है और अभी भी बोलती रहेगी। राहुल गांधी अभी तक कुछ नहीं कह पाए हैं बावजूद इसके कि उनका दावा है कि उन्होंने ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोली है’। तो क्या जो इजराइल में हुआ वह मोहब्बत करने वालों ने किया था?
इस तरह चुप रह कर कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर साबित किया है कि मुसलमानों के वोट बटोरने के लिए वो तब भी नहीं बोलेंगे जब जिहादी आतंकवाद के खिलाफ जोर से आवाज उठाने का समय आया है। लेकिन ऐसा करके कांग्रेस के आला नेता यह साबित कर रहे हैं कि उनकी नजरों में हरेक मुसलमान जिहादी मिजाज का है। साबित ये भी कर रही है कांग्रेस पार्टी कि उसकी राजनीति वोट बैंकों पर आधारित है। अफसोस कि कांग्रेस के खेमे में सारे वामपंथी दल वाले हैं और वो लोग जो अपने आपको मानव अधिकार के रक्षक कहलाना पसंद करते हैं।
अजीब हाल है वामपंथियों का दुनिया भर में। जो अपने आपको नास्तिक मानते हैं वो कैसे जा बैठे हैं उन जिहादियों के साथ जो अपनी दहशत जब फैलाते हैं धार्मिक नारे लगाना नहीं भूलते हैं? इस टोली में वो भी लोग शामिल हैं जो गर्व से अपने आपको उदारवादी लोकतंत्र के पहरेदार मानते हैं। पिछले सप्ताह हार्वर्ड विश्वविद्यालय की कई छात्र संस्थाओं ने बयान जारी किया कि जो इजराइल के साथ हुआ उसका दोष वे लोग इजराइल को ही देते हैं। ये इतना शर्मनाक वक्तव्य था कि विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष लैरी समर्ज ने इसका खुलकर विरोध किया ये कह कर कि पहली बार उनको हार्वर्ड से जुड़े रहने से तकलीफ हुई है।
यहां याद रखना जरूरी है कि जब बजरंग दल या कोई हिंदुत्ववादी संस्था किसी आतंकवादी घटना को अंजाम देती है उसकी निंदा करने में सबसे पहली कतार में जो खड़े होते हैं, वही वामपंथी और उदार मिजाज के लोग जिहादियों के खिलाफ चूं तक नहीं करते हैं। ऐसा क्यों है? मैंने जब भी अपने किसी ‘लिबरल’ दोस्त से ये सवाल किया है तो जवाब उसके पास या तो होता नहीं है या फिर जवाब यही मिलता है कि अमेरिका ने दुनिया में इतना आतंक फैलाया है कि जब भी अमेरिका किसी का साथ देता है तो वो फौरन दूसरा पक्ष लेते हैं। यहां तक कि यूक्रेन पर जब रूस के तानाशाह ने हमला किया तब भी इन लोगों ने दोष अमेरिका को दिया था। इन ढोंगियों का ढोंग अब बाकी दुनिया में समझदार लोग पहचानने लगे हैं लेकिन अफसोस के साथ कहना होगा कि अपने भारत महान में अभी तक नहीं।
विशेष तौर पर ढोंगी लिबरल मिलते हैं भारत के आला अधिकारियों में। सो बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री ने खुल कर इस मुश्किल दौर में इजराइल का साथ दिया है स्पष्ट शब्दों में, अपने विदेश मंत्रालय का वक्तव्य कांग्रेस के जैसा था। यूक्रेन पर जब व्लादिमीर पुतिन ने अपना नाजायज युद्ध शुरू किया उस समय मुझे कूटनीति के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ मिले जिन्होंने कहा कि मोदी यूक्रेन की तरफदारी अगर खुल कर करते तो विदेश मंत्रालय में बगावत हो जाती। लगता है कि ऐसा कुछ इस बार भी हो रहा है वरना क्यों इतना संकोच है आतंकवाद को आतंकवाद कहने में?
हमास ने जितना नुकसान फिलिस्तीनियों का किया है शायद ही किसी और ने किया होगा। इस संस्था की सोच और आइएस की सोच में रत्ती भर का फर्क नहीं है। ये ऐसी संस्थाएं हैं जिन्होंने इस्लाम का मतलब यही समझा है कि जो लोग मुसलिम नहीं हैं उनके साथ बर्बरता करने से अल्लाह खुश हो जाते हैं। खास तौर पर अगर ये दूसरे लोग यहूदी हों।
मेरे कई मुसलिम दोस्त हैं और जब भी बात आती है यहूदियों की वो अक्सर उनको इस्लाम के दुश्मन कहते हैं इसलिए कि इस्लाम के रसूल के खिलाफ थे यहूदी। ये नफरत इतनी पुरानी है और इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इजराइल के विरोध में शिया ईरान और सुन्नी हमास में सारे मतभेद समाप्त हो जाते हैं।
अभी तक पूरी तरह ये बात तय नहीं हुई है लेकिन अंदेशा सारी दुनिया को होने लगा है कि हमास को पैसे, हथियार और अन्य किस्म की मदद इस आतंकवादी हमले में ईरान से मिले हैं। कहना मुश्किल है अभी कि इसका नतीजा क्या होगा निकट भविष्य में। लेकिन इतना अभी से दिखने लग गया है कि ये आतंकवादी हमला विश्व युद्ध का रूप ले सकता है।
इसको रोकने के लिए अब हमास के हमदर्द कहने लग गये हैं कि इजराइल को बातचीत शुरू करनी चाहिए शांति लाने के लिए लेकिन उनसे क्या बातचीत हो सकती है जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि इजराइल का नाम-ओ-निशान मिटाना उनका मकसद है? वास्तव में हमास अमन-शांति चाहता है तो उनका अगला कदम होना चाहिए उन इजराइली बंधकों को रिहा करना जिनको उन्होंने मानव कवच बनाने के लिए अगवा किया है। जो भी हो ये कहना जरूरी है कि मोदी ने अच्छा किया है।