मार्च का वाकया है। सऊदी अरब और ईरान एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो रहे थे। दोनों के बीच सुलह कराने में अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी पसीने आ रहे थे। शी जिनपिंग ने मोर्चा संभाला और दोनों के बीच एक ऐसी डील करा दी जिससे विवाद काफी हद तक थम गया। इस वाकये के बाद चीन को पीसमेकर जैसा समझा जाने लगा। एक ऐसी इमेज जिसे हासिल करने के लिए खुद जिनपिंग भी काफी लालायित थे। रूस यूक्रेन वार में पुतिन की तरफदारी के लिए उनको वैश्विक स्तर पर एक तरह से विलेन समझा जाने लगा था। सऊदी-ईरान की डील से वो तोहमत हटने लगी थी।
सऊदी- ईरान के बीच डील में जिनपिंग खुद एक्टिव हुए थे। उन्होंने पहले क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बात की और फिर ईरान के तानाशाह इब्राहिम रईसी से उनकी गुफ्तगू हुई। सऊदी- ईरान की डील ने अमेरिका को भी सकते में दिया था। इस समझौते के बाद एक बात साफ होकर आई कि मिडिल ईस्ट को अब अमेरिका जैसे देश की जरूरत नहीं है। कोई और भी है जो उनकी दिक्कतें हल कर सकता है। अमेरिका के लिए ये खतरा था। उसकी बादशाहत को चीन ने खुले तौर पर चुनौती दी थी और अपने हितों को साधने में जिनपिंग बखूबी कामयाब भी रहे।
लेकिन इसी बीच इजरायल पर हुए हमास के हमले के बाद जिनपिंग की कलई खुलने लगी है। हमास के आतंकी हमले के बाद चीन ने जिस तरह का रवैया दिखाया है उससे लगने लगा है कि वो अपने हितों के हिसाब से राजनीति करता है। अभी तक चीन या उसके राष्ट्रपति जिनपिंग ने हमास का नाम तक नहीं लिया है। ग्लोबल पीसमेकर बनने की जुगत भिड़ा रहे जिनपिंग ने अभी तक ऐसा फार्मूला भी नहीं दिया है जिससे इजरायल और हमास के बीच शांति स्थापित कराई जा सके। हमास के हमले के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने दो पेज का बयान जारी करके अपनी बात सामने रखी थी।
चीनी सरकार का कहना था कि दोनों ही उसके दोस्त हैं। उसने अपनी उस पुरानी मांग को भी दोहराया जिसमें फिलीस्तीन को अलग देश के तौर पर मान्यता देने को कहा गया था। लेकिन उसने इजरायल पर हमले के लिए हमास की आलोचना तक नहीं की। इजरायल ने इस बात के लिए चीन की तीखी आलोचना भी की कि उसके निर्दोष नागरिकों पर हमला करने वाले हमास के बारे में चीन एक शब्द तक नहीं बोल रहा है।
हालांकि जून में जब फिलीस्तीन के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्बास चीन दौरे पर गए तो जिनपिंग सरकार ने कहना शुरू कर दिया कि इजरायल और उसके पड़ोसी के विवाद को उनका देश ही हल करा सकता है। 2014 से दोनों के बीच बातचीत तक नहीं हुई। इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू भी छह साल बाद चीन के दौरे पर जाने वाले हैं। ऐसे में इस बात की आशंका बलवती हुई कि चीन दोनों के बीच डील कराकर अमेरिका को झटका दे सकता है। लेकिन हमास के हमले के बाद स्थिति बदली है।
जानकार कहते हैं कि हमास को चीन अपने हिसाब से कंट्रोल कर सकता है, क्योंकि वो ईरान का दोस्त है। ईरान से चीन की खासी नजदीकी है। लेकिन इजरायल के मामले में ऐसा नहीं है। नेतन्याहू का देश अमेरिका के करीब है। हमास के हमले के बाद से ही अमेरिका इजरायल की खुलकर मदद कर रहा है। यही वजह है कि चीन ने इस विवाद में ना तो कुछ खुलकर कहा और ना ही शांति स्थापित करने का कोई फार्मूला दिया। चीन को पता है कि इजरायल को काबू करना उसके बूते की बात नहीं। यानि इस विवाद में चीन की कलई खुल गई है।