एआईएडीएमके और भाजपा के बीच अब गठबंधन नहीं रहा है। संगठन सचिव और पूर्व मंत्री डी. जयकुमार ने 18 सितंबर को घोषणा की थी कि भाजपा अब उनकी पार्टी की सहयोगी नहीं है। एआईएडीएमके ने को गठबंधन तोड़ने का एलान करते हुए कहा था कि 2024 लोकसभा चुनावों में वो अपनी जैसी सोच वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करेगी। अब गठबंधन टूटने के बाद अटकलें इस बात की है कि क्या यह फैसला सभी की सहमति से लिया गया था या एकतरफा कदम था। दोनों पार्टियों के गठबंधन टूटने से क्या फर्क पड़ने वाला है, समझिए।
जब दोनों पार्टियां अलग हो गई तो ऐसे में एआईएडीएमके को क्या फर्क पड़ने वाला है, इस सवाल पर चर्चा भी तेज हो गई है। एक तरह से यह तमिलनाडु में भाजपा के लिए एक नई शुरुआत होगी, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई के नेतृत्व में अपना भाग्य आजमाने के लिए तैयार दिखाई दे रही है।
ऐसा माना जाता है कि 22 सितंबर को नई दिल्ली का दौरा करने वाले अन्नाद्रमुक प्रतिनिधिमंडल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपनी नारजगी की वजह बताई थी। ये गठबंधन तोड़ने का एलान ऐसे वक़्त में हुआ था, जब राज्य में पार्टी की पकड़ ढीली होती जा रही है. बीते दो चुनावों में पार्टी ने अल्पसंख्यक वोट बैंक को खोया है।
दोनों दलों के बीच आई दरार के बाद चर्चा एआईडीएमके के बीच इस फैसले को लेकर दिखाई दी निराशा पर भी है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह दरार तमिलनाडु की राजनीति में काफी असर डालेगी। भाजपा अब अपना दायरा बनाने की कोशिश करेगी। इसमें एक नुकसान एआईडीएमके के लिए यह भी है कि पार्टी के कई नेता केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर भी आ सकते हैं।