इजरायल में फिलीस्तीन के आतंकी संगठन हमास के हमले के कारण अब तक 700 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 2100 से अधिक लोग अभी भी घायल हैं। इजरायल के तेल अवीव-याफो में रहने वाली 41 साल की भारतीय मूल की नर्स प्रमीला प्रभु अभी वहीं पर हैं। उन्होंने बताया कि वहां का हाल कैसा है। उनका कहना है कि भारत ने मुझे जन्म दिया है और इजराइल ने जिंदगी… इसलिए इस मुश्किल घड़ी में भाग नहीं सकती।
मैं भारत अपने देश नहीं लौट सकती। इस मुश्किल दौर में मैं इजराइल के साथ हूं। जरूरत पड़ी तो मैं इजरायली सरकार की हर संभव मदद करूंगी। हमारे सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने प्रमीला प्रभु से फोन पर बात की। उन्होंने फोन पर बताया कि फिलहाल इजरायल का क्या हाल है। कैसे लोग घबराए हुए हैं।
प्रमीला प्रभु के अनुसार, 7 अक्टूबर को इजराइल के अवीव-याफो में रात के लगभग 8.30 बजे थे वे अपने घर पर खाना खा रही थीं। उन्होंने अपना खाना खत्म ही किया तब तक उन्होंने इमरजेंसी सायरन बजने की आवाज सुनी। वे फौरान दौड़कर अपने बेसमेंट के बंकर में पहुंची। अब तक वे ऐसा तीन बार कर चुकी हैं।
दरअसल, प्रमीला प्रभु कर्नाटक के उडुपी जिले की रहने वाली हैं। वे छह साल से इजराइल में काम कर रही हैं। उनका कहना है कि इससे पहले कभी उन्होंने इतनी हिंसा नहीं देखी। वे कहती हैं “मैं तेल अवीव-याफ़ो में रहती हूं। युद्ध में यह इलाका सबसे कम प्रभावित है। हालांकि शनिवार को अपार्टमेंट से एक किलोमीटर की दूरी पर बम विस्फोट हुए। यहां हर हाउस, कमर्शियल और गवर्मेंट ऑफिसों में बंकर हैं। ये बंकर सभी जगहों पर पाए जाते हैं। एक बार सायरन बजने पर 15-20 सेकंड में बमबारी होती है और हमें बंकर्स में जाना होता है।”
प्रमीला का कहना है कि तेल अवीव-याफो में दुकानें बंद हैं। सड़कों पर बहुत कम लोग हैं। हालात के कारण नागरिक घरों में किराने का सामान जमा कर रहे हैं। उनकी बहन प्रवीना येरुशलम भी अस्पताल में नर्स हैं।
प्रमीला का कहना है कि वह करीब 25-30 अन्य लोगों के साथ एक अपार्टमेंट में रहती है। वे कहती हैं “मैंने खाना, पानी, टॉर्च और जरूरत की सभी चीजें जमा कर ली हैं। बेसमेंट का दरवाजा हमेशा खुला रहता है। जब मैं सायरन सुनती हूं तो मैं अपना मोबाइल फोन लेता हूं और बेसमेंट में भाग जाती हूं। सायरन बंद होने पर हम लौट आते हैं। हम बंकर के अंदर लगभग 20-30 मिनट रहते हैं।”
प्रमीला का जन्म उडुपी के हर्गा गांव में हुआ है। उन्होंने अपनी पढ़ाई मैसूरु से पूरी की। इसके बाज उन्होंने उडुपी और बेंगलुरु के मणिपाल अस्पतालों में काम किया। 35 साल की उम्र में वे नर्स का काम करने के लिए इजराइल चली गईं। उनके 13 और 9 साल के दो बच्चे हैं। वे आगे कहता हैं “इजराइल में फ़िलिस्तीन द्वारा हमला कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार जो हुआ वह कल्पना से परे है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे हालात को देखते हुए भारत लौटना चाहती हैं। इस पर वे कहती हैं कि वे वहीं रहना चाहती हैं। उन्होंने कहा “भारत ने मुझे जन्म दिया और इजराइल ने जिंदगी… मैं इस कठिन समय में अपने देश नहीं जा सकती। यदि जरूरत पड़ी तो मैं इजरायली सरकार की मदद करने के लिए तैयार हूं।” वे कहती हैं कि भारत से उनके परिजर दिन में कई बार उन्हें फोन करते हैं। उनका कहना है कि बच्चों से दूर रहना उनके लिए आसान नहीं है। उनके बच्चे भारत में हैं। “मुझे उनकी याद आती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे यहां के हालात देखकर भाग जाना चाहिए। एक बार सब नॉर्मल हो जाए तो मैं इसके बारे में सोचूंगी।”