हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होना है और राजस्थान में लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव होना है। हरियाणा में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी जेजेपी के रिश्तों में उठा-पटक की खबर जब-तब आती रहती है लेकिन अब सूत्रों से खबर है कि हरियाणा से सटे राजस्थान में सियासी मजबूरियां दोनों के ब्रेक-अप को अभी तक थामे हुए हैं। हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी दोनों ही पार्टियां अपने दम पर राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने दृढ़ हैं।
फिलहाल हालात ये हैं कि बीजेपी की नेशनल लीडरशिप पर लगातार लोकल नेताओं की तरफ से दुष्यंत चौटाला से गठबंधन तोड़ने के लिए कहा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो BJP के राष्ट्रीय नेतृत्व ने शुरू में हरियाणा यूनिट को JJP के समर्थन के बिना मनोहर लाल खट्टर सरकार बरकरार रखने के तरीके खोजने का संकेत दिया था, लेकिन राजस्थान में भीषण चुनावी लड़ाई को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने रुख की समीक्षा की है।
BJP के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भगवा खेमा JJP को नाराज नहीं करना चाहता। इसकी वजह हरियाणा से सटे राजस्थान के सीमावर्ती जिले हैं, जहां जेजेपी कुछ इलाकों में प्रभाव डाल सकती है। राजस्थान के सात जिले हनुमानगढ़, झुंझुनू, चुरू, सीकर, जयपुर, अलवर और भरतपुर हरियाणा के साथ सीमा साझा करते हैं।
JJP पड़ोसी राज्यों में अपना विस्तार करने को उत्सुक है, ऐसे में उम्मीद है कि दुष्यंत चौटाला राजस्थान में कम से कम 30-35 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। अगस्त में इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज प्रोग्राम में हरियाणा के डिप्टी सीएम ने कहा था कि उनकी पार्टी राजस्थान में 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बना रही है। राजस्थान BJP ने एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि कड़े मुकाबले वाले चुनाव में कई बार छोटी पार्टियां सत्ता विरोधी वोटों को बांट देती हैं और इससे हमारी उम्मीदें खराब होने की संभावना है। इसलिए, भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि वोट विभाजित न हों।
लेकिन इन मजबूरियों की वजह से हरियाणा की सभी संसदीय और विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने पर पार्टी के रुख में बदलाव की संभावना नहीं है, जो वर्तमान में BJP के पास हैं। हरियाणा बीजेपी के इंचार्ज और त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिपल्ब देव ने इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि अमित शाह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि सभी 10 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार होंगे। हमारे पास राज्य में एक मजबूत संगठन है, सभी 10 सीटें हमारे पास हैं, हमारे पास शासन का अच्छा रिकॉर्ड है और जनादेश मांगने के लिए लोगों के पास जाने का हमारा भविष्यवादी दृष्टिकोण है। हरियाणा के हर कोने में लोग (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी को पसंद करते हैं, जो भाजपा के पक्ष में भी जाएगा।
आपको बता दें कि जून में अमित शाह ने सिरसा में एक रैली के दौरान कहा था, “हरियाणा के आप लोगों ने दो बार राज्य की सभी 10 सीटें देकर नरेंद्र मोदी की जीत सुनिश्चित की है। इस बार भी मैं चाहूंगा कि आप सुनिश्चित करें कि सभी 10 सीटों पर कमल खिले और यह सुनिश्चित करें कि भाजपा 2024 में 300 से अधिक सीटें जीते।”
2019 में साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद बीजेपी-जेजेपी के बीच कई बार तनातनी का माहौल बन चुका है और दोनों ही पार्टियों के नेता गठबंधन खत्म करने के लिए अपने शीर्ष नेतृत्व पर प्रेशर डाल चुके हैं। साल 2020-21 में हुए किसान आंदोलन के दौरान गठबंधन जारी रखने पर दुष्यंत को अपनी पार्टी के भीतर आलोचना का सामना करना पड़ा और कुछ महीने पहले नूंह जिले में सांप्रदायिक हिंसा के बाद दरारें बढ़ गईं। उपमुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के नेताओं ने जुलूस से पहले जिला प्रशासन को पूरी जानकारी नहीं देने के लिए “बृज मंडल जलाभिषेक यात्रा” के आयोजकों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की।
हाल ही में, BJP के सीनियर नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने गठबंधन जारी रखने पर पार्टी छोड़ने की धमकी दी है और जेजेपी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया है। BJP नेताओं ने JJP के खिलाफ बीरेंद्र सिंह के गुस्से को खारिज नहीं किया। बीरेंद्र सिंह के परिवार और चौटाला के बीच दशकों से उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र और हिसार लोकसभा सीट के लिए प्रतिस्पर्धा रही है। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि बीरेंद्र सिंह ने बीजेपी के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने जेजेपी पर हमला बोला, इसलिए बीजेपी इसमें कुछ भी गलत नहीं मानती।
आपको बता दें कि बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र ने 2019 में दुष्यंत चौटाला को हिसार लोकसभा चुनाव में मात दी थी। विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता को उचाना कलां में मात दी थी। BJP ने स्पष्ट कर दिया है कि वह चौटाला परिवार के लिए उचाना कलां छोड़ने के मूड में नहीं है जबकि JJP चाहती है कि उसकी वरिष्ठ सहयोगी संसदीय चुनावों में भी गठबंधन के नियमों का सम्मान करे। BJP नेता हरियाणा में संसदीय चुनावों में फिर से जीत हासिल करने को लेकर आश्वस्त हैं और उनका तर्क है कि इससे राज्य चुनावों में मजबूत प्रदर्शन होगा।